सूर्यकुमार पांडेय: कुछ लोग होते ही ऐसे हैं। जब-तब बेमतलब की जिद पाल लेते हैं। जिस तरह किसी जानवर को पालने पर उससे प्यार हो जाता है, उसी तरह जिद पाल लेने पर उस जिद से भी प्यार हो जाता है। यह प्यार बड़ा ही गहरा होता है। इसकी तुलना आज की नई पीढ़ी के उस प्यार से नहीं की जा सकता है कि आज एक से हुआ, कल उससे ब्रेकअप हो गया, परसों दूसरी की तलाश में निकल लिए और वह मिल भी जाए तो दृष्टि में सदैव तीसरी रहा करती है।

आज के दौर का यह जिद्दी प्यार नेताओं की राजनीतिक निष्ठा जैसा भी नहीं है कि कब पाला बदल ले। अब ऐसे लोगों से मुलाकात होने पर पूछना पड़ जाता है कि आदरणीय, आप वर्तमान में किस दल में हैं? अब राजनीति के लोग भी पहले पार्टी की वर्तमान हैसियत देखते हैं और फिर उसमें अपने समृद्ध भविष्य की संभावनाएं तलाशते हैं, लेकिन यह जिद वाला प्यार स्थाई होता है।

इस जिद्दी प्यार में एक अकड़ आ जाया करती है। ऐसा इंसान चाहने लग पड़ता है कि वह जैसा सोच रहा है, सबको वैसा ही सोचना चाहिए और सब कुछ उसके इस सोच के अनुरूप ही चलना चाहिए। जहां पर कुछ औलादें अपने बाप की नहीं सुनती हैं, भाई, भाई को नहीं गांठता है, जहां पर नेता जनता की आवाज नहीं सुनते हैं और गठबंधन के साथी एक-दूसरे को संदेह भरी निगाहों से निहारते हैं। जहां पर कुछ मातहत अपने बास को पट्टी पढ़ा देते हैं, स्टूडेंट टीचर को न्यून समझते हैं, और तो और, कुछ पति अपनी पत्नी की तथा कुछ पत्नियां अपने पति की बात नहीं सुनती हैं, ऐसे समय में बेवजह की जिद ठानने को निहायत मूर्खता ही कहा जाएगा।

अब जमाना ऐसा आ चुका है कि अपना उसूल पकड़कर चलने वाले लोग धकियाएं जा रहे हैं। ऐसे माहौल में अकड़ अच्छी बात नहीं है। आदमी में लचीलापन होना चाहिए। विनम्रता उसका नैसर्गिक गुण है। मौका पड़ने पर गधे को और यदि वह न मिल पाए तो घोड़े को भी बाप बना लेने में ही समझदारी है। मेरे एक मित्र बता रहे थे कि अब गधों को भी एक मौका मिलना चाहिए कि वे इंसानों को अपना बाप बनाने का लाभ प्राप्त कर सकें। वैसे तो गधे में नैसर्गिक अकड़ हुआ करती है, किंतु इसे हम उसकी विनयशीलता ही कहेंगे कि उसने डंडे की मार खाकर भी कभी जिद का गट्ठर अपनी पीठ पर नहीं लादा और अभी तक मनुष्य को बाप बनाने के सुख से वंचित रहा है।

अब भला ऐसी जिद भी किस काम की है, जो बराबर असफलता की बंद गली में पहुंचा दे। यहां अकड़ कर किसने क्या पाया है? सांप अकड़ा रहे तो चूहे के बिल में नहीं घुस सकता है। भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। कोई प्रत्याशी अकड़कर चलेगा तो चुनाव में खुद तक का वोट नहीं मिलेगा। गिद्ध की गर्दन अकड़ी रहे तो मुर्दा पशुओं को दूसरे जानवर नोच ले जाएंगे। यह दुनिया है और यहां कदम-कदम पर झुकना पड़ता है। कई बार झुककर समझौते करने पड़ते हैं।

मेरे एक दूर के जानने वाले हैं। दूर का इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अब नजदीक के जानने वाले दुर्लभ होते जा रहे हैं। दूरसंचार के इस क्रांतिकाल में दूर के जानने वालों को ही नजदीकी मित्र कहा जाता है। जो आपकी आंख खुलते ही आपको सुप्रभात और सोने से पहले शुभरात्रि का संदेश भेजकर ही सो पाता है, वह दूर होकर भी आपके समीप होता है। उसने ही नहीं हमने भी जिद पकड़ रखी है कि अब आमने-सामने की मुलाकात समय की बर्बादी है।

इतने समय में सौ लोगों से दुआ-सलाम किया जा सकता है। हां तो वह दूर के जानने वाले मित्र एक नंबर के अकड़ू हैं। अधेड़ उम्र के हो गए हैं, लेकिन उनका बालहठ नहीं छूट पाया है। यथास्थितिवाद के हिमायती हैं। दुनिया बदल गई, लेकिन उनके पास एक चीज बची हुई है और वह है उनकी जिद। लोग कहते हैं कि मतलब की जिद व्यक्ति को सफलता की दिशा में ले जाती है, लेकिन बेमतलब की जिद आदमी के अकड़पन का कचूमर भी बना डालती है।