हास्य व्यंग्य: एक नेता जी का कुर्सी प्रेम, चुनाव के समय बड़े से बड़े ज्योतिष भी नहीं भांप सकते जिनकी मुखमुद्रा
जब कभी चुनाव प्रचार में जाना होता है तो वह ब्रह्ममुहूर्त में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उठते हैं। बाथरूम में ऐसे स्नान करते हैं कि जैसे कोई महा प्रकांड व्यक्ति प्रयागराज के संगम में स्नान कर रहा हो। उसमें से निकलने के बाद वह अपनी कुर्सी के सामने वास्तुशास्त्र के हिसाब से आलथी-पालथी मारकर बैठ जाते हैं। फिर उसके चारों पायों की तरफ अगरबत्ती सुलगाते हैं।
रंगनाथ द्विवेदी : किसी नेता का अपने परिवार और पत्नी से उतना संबंध नहीं होता जितना कि अपनी राजनीतिक कुर्सी से होता है। खासकर चुनाव के आसपास तो नेता जी की यह कुर्सियोचित बीमारी अपने चरम पर होती है। कहते हैं कि तब उनकी पत्नी भी उनके साथ रहने से कतराने लगती हैं, क्योंकि उस समय उनके राजनीतिक पतिदेव पर हर आधे घंटे के बाद चीख-चीखकर बोलने का दौरा पड़ने लगता है। उस समय उन्हें पूरा बेडरूम, बेडरूम की तरह नहीं दिखाई पड़ता, बल्कि राजनीतिक श्रोताओं से भरी हुई एक विशाल जनसभा की तरह दिखाई पड़ता है जिसे वह अपने लच्छेदार भाषणों से संबोधित और सम्मोहित कर रहे होते हैं। फिर कुछ देर बाद खड़ंजा और नालियों का जिक्र ऐसे करते हैं कि जैसे उनके सुंदरीकरण के लिए ही वह राजनीति में आए हैं।
इतना ही नहीं, अगर उनके चुनावी क्षेत्र में इस बीच कोई व्यक्ति गुजर जाता है तो वह उसके घर जाकर उसके घरवालों से भी कहीं ज्यादा अपनी छाती पीट-पीटकर ऐसे रोते हैं कि जैसे उनके किसी अपने की मृत्यु हो गई हो। दरअसल वह केवल चुनाव में अपने एक मतदाता के कम हो जाने के गम में इस तरह से रोते हैं, लेकिन जनता उनके इस तरह से रोने के रहस्य को नहीं जान पाती और उनके इस घड़ियाली आंसू की चपेट में आ जाती है।
उनकी पत्नी की मानें तो 'नेता जी शादी से पहले एक सामान्य पुरुष थे। विवाह के कुछ दिन बाद तक भी सारी गिड़गिड़ाहट और डर-भय उनमें भी अन्य पतियों की तरह थे, लेकिन वे सब अचानक से गायब हो गए। न जाने उनके मस्तक की कौन-सी भाग्य रेखा का भौगोलिक एक्सीडेंट हुआ कि वह देखते ही देखते एक जनप्रिय नेता बन गए। उनके नेता बनते ही हमारी और उनकी मोहब्बत की पूरी गृहस्थी रेगिस्तान की तरह बनकर रह गई। कभी-कभी तो उनका मेरे प्रति व्यवहार भी अब राजनीतिक लगने लगा है। यहां तक कि जब चुनाव काफी नजदीक आ जाता है तो उनका राजनीतिक माइलेज इतना अधिक बढ़ जाता है कि कुछ पूछिए मत! उस समय उनकी मुखमुद्रा को भांप या पढ़ पाना बड़े से बड़े ज्योतिष के वश की भी बात नहीं होती।'
कहते हैं कि उन्होंने अपने बेडरूम में एक पुरानी कुर्सी को इतने प्यार से रख रखा है कि उतने प्यार से कभी अपनी पत्नी तक को नहीं रखा होगा। दरअसल वह अपनी उस कुर्सी को अपने राजनीतिक करियर के लिए काफी लकी मानते हैं। जब कभी चुनाव प्रचार में जाना होता है तो वह ब्रह्ममुहूर्त में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उठते हैं। बाथरूम में ऐसे स्नान करते हैं कि जैसे कोई महा प्रकांड व्यक्ति प्रयागराज के संगम में स्नान कर रहा हो। उसमें से निकलने के बाद वह अपनी कुर्सी के सामने वास्तुशास्त्र के हिसाब से आलथी-पालथी मारकर बैठ जाते हैं। फिर उसके चारों पायों की तरफ अगरबत्ती सुलगाते हैं।
तदुपरांत अपने एक चौबीस कैरेट के घनघोर समर्थक द्वारा उस कुर्सी के लिए लिखे गए "कुर्सी सतसई" का लगभग सवा घंटे तक राग राजनीति में गाकर ऐसे पाठ करते हैं जैसे यह इस देश के पहले और आखिरी भजन सम्राट हों। कुर्सी सतसई का पाठ करने के बाद उसकी परिक्रमा करते हैं। फिर उसे साष्टांग प्रणाम कर अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं। रास्ते में जगह-जगह रुकते हैं और विकास एवं झूठे वादों की गंगा बहाने की बातें तथा वादे करते हैं।
उनकी पत्नी अपने विवाह के पुराने दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि 'एक समय वह भी था जब वे तमाम जिम्मेदारियों के बोझ तले किसी गधे की तरह दबे रहते थे। अपना मुंह किसी बिगड़ी हुई दीवार घड़ी की तरह लटकाए हुए घर से निकलते थे। कुछ देर बाद अस्त-व्यस्त धूल-धूसरित मुंह लिए हुए घर लौटते थे, लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। चार-चार लग्जरी वाहन, गनर, महंगे कपड़ों पर विदेशी परफ्यूम मारकर कभी इस जगह तो कभी उस जगह जाना और यह सब देखना अब मेरी इन छटपटाती आंखों की नियति बन गई है। उनको प्यार से देखने की मेरी बोहनी महीनों से नहीं हुई है। अब तो ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि वह ऐसी लड़कियों को सद्बुद्धि दे, जिनकी अभी तक शादी नहीं हुई है। उन लड़कियों को अगर घर पर देखने आए लड़के में जरा-सा भी नेता बनने का "रासायनिक गुण" दिखाई दे तो वे तत्काल ऐसी शादी करने से इन्कार कर दें, क्योंकि एक नेता का संबंध अपनी पत्नी से उतना नहीं होता जितना कि कुर्सी से।'
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