अजय कुमार। सुनीता विलियम्स और उनके सहयोगी के अंतरिक्ष में लंबे प्रवास के बाद धरती पर आगमन से भारत के अंतरिक्ष अभियानों को लेकर भी लोगों की उत्सुकता बढ़ी है। इसलिए और भी, क्योंकि भारत में पिछले कुछ समय से अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियां बढ़ी हैं। भारत की अंतरिक्ष यात्रा 1962 में इन्कोस्पार, 1969 में इसरो और 1972 में अंतरिक्ष विभाग की स्थापना के साथ शुरू हुई।

न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में कई सरकारों ने अंतरिक्ष क्षेत्र को बढ़ावा दिया है। इस क्रम में नासा, ईएसए और रोस्कोमास जैसी एजेंसियां अग्रणी हैं। एरियनस्पेस ने पिछली सदी के नौवें दशक में पहला निजी उपग्रह प्रक्षेपित किया। 1984 में यूएस कामर्शियल स्पेस लांच एक्ट आया और 1988 में निजी दूरसंचार उपग्रह लांच हुआ।

धीरे-धीरे निजी निवेश में, खासकर अमेरिका में अंतरिक्ष गतिविधियां बढ़ने लगीं। 2002 के बाद स्पेसएक्स ने लागत में कटौती करने वाले बहुत सारे नवाचारों द्वारा इस क्षेत्र में क्रांति की लहर को जन्म दिया। सुनीता विलियम्स की वापसी में मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के सहयोग की अहम भूमिका रही।

आज अंतरिक्ष निवेश में निजी क्षेत्र का हिस्सा 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है। कुछ साल पहले तक इसरो द्वारा हासिल अंतरिक्ष डाटा सीमित रूप में ही साझा किया जाता था। 2009 में इस नीति में बदलाव आया। 2020 में भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के खुलने से इस क्षेत्र में लोकतंत्रीकरण की एक नई लहर आई है। आज इस क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या 260 से अधिक हो गई है।

भारतीय स्टार्टअप इसरो के पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल के साथ स्पेसएक्स के ट्रांसपोर्टर और फ्रांस के एरियन राकेट का उपयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत में 15 से अधिक निजी उपग्रह लांच किए जा चुके हैं और आने वाले वर्षों में यह संख्या और बढ़ेगी। अंतरिक्ष क्षेत्र के लोकतंत्रीकरण की दूसरी विशेषता लागत में आई कमी है।

नासा के अंतरिक्ष यान की लागत लगभग 54,500 डालर प्रति किलोग्राम थी, जबकि स्पेसएक्स के फाल्कन 9 की कीमत लगभग 2,720 डालर प्रति किलोग्राम है। भारत में यह लगभग 30,000 डालर है। निजी भागीदारी उपग्रह प्रक्षेपण की लागत को लगभग 30-40 प्रतिशत कम कर सकती है।

स्टार्टअप्स वाणिज्यिक सप्लाई चेन माड्यूलर डिजाइनों और राइड-शेयर विकल्पों के उपयोग का लाभ उठाकर कम लागत में सैटेलाइट बना पाते हैं। इसके अतिरिक्त स्टार्टअप छोटे सैटेलाइट बनाते हैं, जिससे लागत कम हो जाती है। पिछली सदी के अंतिम दशक में 10-20 टन के जियो उपग्रह की कार्यक्षमता अब एक छोटे 800 किलोग्राम के उपग्रह में प्राप्त की जा सकती है।

इसरो का बड़े उपग्रह बनाने का इतिहास रहा है। इसके विपरीत, भारतीय स्टार्टअप छोटे उपग्रहों के विकास पर ध्यान दे रहे हैं। उदाहरण के लिए पिक्सल हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह का वजन लगभग 15 किलोग्राम है। अतीत के विपरीत जहां अधिकांश उन्नत तकनीकें इसरो द्वारा विकसित की गई थीं, वहीं स्टार्टअप अब नवाचार की सीमाओं को आगे बढ़ा रहे हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र में राज्य सरकारों की भूमिका बढ़ रही है। कई राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में निवेश और अनुप्रयोगों को आकर्षित करने और अपने स्वयं के उपग्रहों को लांच करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। कर्नाटक भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत हिस्सा हासिल करना चाहता है। केरल ने केस्पेस और स्पेस पार्क की स्थापना की है।

आंध्र प्रदेश ने एक स्पेस इनोवेशन सेंटर बनाया है। तेलंगाना ने स्पेसटेक फ्रेमवर्क बनाया है और तमिलनाडु कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट के पास स्पेस बे और एक प्रोपेलेंट पार्क स्थापित करने जा रहा है। गुजरात इनस्पेस के साथ साझेदारी में एक स्पेस क्लस्टर बना रहा है। अन्य राज्य भी अंतरिक्ष गतिविधियों का बढ़ावा दे रहे हैं।

सरकारों और व्यवसायों द्वारा उपग्रह डाटा का बढ़ता उपयोग इसके बढ़ते विकेंद्रीकरण को दर्शाता है। महाराष्ट्र में 10,000 से अधिक गांवों में फसल बीमा के लिए उपग्रह डाटा का उपयोग हो रहा है।

कर्नाटक में छह लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की निगरानी, रक्षा मंत्रालय द्वारा भूमि का सर्वेक्षण पूरा किया जाना, राजस्थान और हरियाणा द्वारा 90 प्रतिशत से अधिक भूसंपदा के भूमि रिकॉर्ड बनाना, असम में 30 जिलों में बाढ़ की चेतावनी देना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में साइक्लोन की चेतावनी का समय 50 प्रतिशत घटना, स्मार्ट शहरों में प्रापर्टी टैक्स में सुधार और मध्य प्रदेश में 77,000 वर्ग किमी वन भूमि की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी का उपयोग किया जा रहा है।

स्टार्टअप नई डाटा-आधारित सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, स्टेटश्योर कृषि ऋण देने वाले बैंकों को मूल्यवर्धित सेवाएं प्रदान कर रहा है। उम्मीद है कि भविष्य में सैटेलाइट डाटा का उपयोग न केवल सरकारों और संस्थाओं द्वारा किया जाएगा, अपितु कारोबारियों और छोटे व्यवसायों द्वारा भी किया जाएगा।

भारत के अंतरिक्ष निर्यात पर अब तक इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड का एकाधिकार था। अब स्टार्टअप्स उसके पूरक बन रहे हैं। उनके योगदान के कारण भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निर्यात का हिस्सा 0.3 अरब डालर से बढ़कर 11 अरब डॉलर होने का अनुमान है। बदलते परिदृश्य में केंद्र सरकार की भूमिका कार्यान्वयनकर्ता से बदलकर इसरो और स्टार्टअप सहित निजी खिलाड़ियों के बीच प्रमोटर, सुविधाकर्ता और मध्यस्थ की हो गई है।

इसरो ने अपनी सुविधाओं को स्टार्टअप और निजी क्षेत्र के उपयोग के लिए खोल दिया है। इस दिशा में केंद्र सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर फंड भी बनाया है। इस समय भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जो सरकार के नेतृत्व वाले क्षेत्र से एक गतिशील एवं विकेंद्रीकृत इकोसिस्टम में बदल रहा है। स्टार्टअप द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने, राज्य सरकारों द्वारा क्षेत्रीय केंद्रों को बढ़ावा देने और निजी निवेश द्वारा लागत कम करने के साथ, अंतरिक्ष अब हमसे दूर नहीं। हममें से हर कोई इससे लाभान्वित होने वाला है।

(लेखक पूर्व रक्षा सचिव एवं आईआईटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर हैं)