राजीव सचान। वर्ष 2011 के वे दिन याद करें, जब अन्ना आंदोलन के दौरान भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जनलोकपाल विधेयक लाने की मांग की जा रही थी। इस आंदोलन ने सारे देश में अलख जगाई और इसका नतीजा यह हुआ कि संसद ने छुट्टी के दिन लोकपाल विधेयक पारित किया। इस आंदोलन की सफलता से उत्साहित केजरीवाल ने राजनीति में न उतरने के वादे और अन्ना हजारे की असहमति के बाद भी 2012 में राजनीतिक दल के गठन का फैसला किया।

2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इन चुनावों में आप ने जिस कांग्रेस का बेड़ा गर्क किया, उसी ने इस डर से केजरीवाल को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना दिया कि भाजपा सत्ता में न आ जाए। केजरीवाल ने जल्द ही कांग्रेस पर यह तोहमत मढ़कर इस्तीफा दे दिया कि वह जनलोकपाल बिल दिल्ली विधानसभा में नहीं लाने दे रही है।

वह इस बिल को पेश करने के पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेने को तैयार नहीं थे, जो नियमतः आवश्यक थी। केजरीवाल के इस्तीफे से उनके समर्थक नाराज हुए, मगर वह यह संदेश देने में लगे रहे कि भ्रष्टाचार से लड़ाई में कोई समझौता नहीं होगा। बाद में केजरीवाल 49 दिन में सत्ता छोड़ने के फैसले पर बार-बार माफी मांगकर 2015 के विधानसभा चुनाव में उतरे।

इस बार उन्होंने 67 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। फरवरी 2015 में उन्होंने फिर सरकार बनाई, लेकिन जल्द ही यह दिखने लगा कि उनका इरादा जो भी हो, भ्रष्टाचार से लड़ना कतई नहीं है। इसका संकेत तब मिला, जब प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे केजरीवाल से असहमत लोगों को पार्टी से निकालने या उनके स्वतः बाहर जाने का सिलसिला कायम हो गया और जो जनलोकपाल आप का सबसे बड़ा मुद्दा था, वह नेपथ्य में चला गया।

जब यह आवाज उठनी शुरू हुई कि आखिर दिल्ली में कोई लोकायुक्त क्यों नहीं तो दिसंबर 2015 में रेवा क्षेत्रपाल लोकायुक्त बनीं। जनवरी 2019 में जब क्षेत्रपाल ने केजरीवाल समेत उनके विधायकों से अपनी संपत्ति की जानकारी देने का नोटिस जारी किया तो विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा कि वह किस कानून के तहत यह जानकारी मांग रही हैं?

यह भी सनद रहे कि आप की कार्यकारिणी ने मार्च 2015 में अपने पहले आंतरिक लोकपाल को हटा दिया। इसके बाद जो आंतरिक लोकपाल बने, उन्होंने कुछ महीने बाद इस्तीफा दे दिया। फिर जो इस पद पर आए, वह तीन माह तक ही टिके। इसके बाद किसी को इस पद पर नहीं लाया गया। इस तरह न बांस रहा और न बांसुरी बजी।

दिसंबर 2015 में कथित जनलोकपाल बिल विधानसभा से पास किया गया और उपराज्यपाल के पास भेजा गया। वहां से उसे दिल्ली सरकार को वापस भेज दिया गया। इसके बाद वह कहां गया, इसका पता आज तक नहीं चला। जल्द ही दिल्ली भी भूल गई और देश भी कि एक वक्त किस तरह सारे नेताओं को चोर बताकर इसी जनलोकपाल के लिए आसमान सिर पर उठाया गया था।

रेवा क्षेत्रपाल 2020 में रिटायर हो गईं और फिर मार्च 2022 तक यानी दो साल तक लोकायुक्त पद रिक्त बना रहा। नए लोकायुक्त की नियुक्ति तब हुई, जब दिल्ली हाईकोर्ट में इसके लिए जनहित याचिका दायर की गई। 2018 में जब अपने नेताओं को राज्यसभा भेजने की बारी आई तो जाने-पहचाने चेहरों-आशुतोष, कुमार विश्वास आदि के बजाय संजय सिंह और अनजान से, लेकिन अमीर गुप्ताद्वय ने बाजी मार ली।

इनमें से एक गुप्ताजी तो एक महीने पहले कांग्रेस में थे। गुप्ताद्वय को राज्यसभा चाहे जिस कारण भेजा गया हो, हम सब जानते हैं कि कुछ लोग पैसे के बल पर राज्यसभा पहुंच जाते हैं। समय के साथ आप तेजी से अन्य दलों जैसी बनने लगी। मौकापरस्त और दलबदलू किस्म के नेता आप में शामिल होने लगे। 2020 में वह फिर से दिल्ली की सत्ता में आ तो गई, लेकिन आप नेताओं की ओर से नई तरह की राजनीति का नाम लेना बंद कर दिया गया और रेवड़ियां बांटने को सफल केजरीवाल माडल बताया जाने लगा।

जब शराब नीति घोटाला सामने आया तो आप ने कहा कि यह सर्वश्रेष्ठ शराब नीति है, लेकिन जब शोर बढ़ा तो इसी सर्वश्रेष्ठ नीति को वापस ले लिया गया। इस तरह आप ने खुद ही यह संदेह पैदा कर दिया कि दाल में कुछ तो काला है। भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करने वाला ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिर गया। रही-सही कसर मुख्यमंत्री आवास की अति विलासी साज-सज्जा ने पूरी कर दी।

आरोप लगा कि कोरोना काल में इस आवास को शीशमहल जैसा बनाने के लिए 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए। ऐसी खबरें आईं कि इस आवास में तमाम महंगे साजो-सामान के साथ आठ-दस लाख रुपये की टायलेट सीट लगाई गईं। आप की हार पर कोई फिल्म बने तो उसका नाम टायलेट-एक पराजय कथा भी हो सकता है।

जो भी हो, इस पर यकीन करना अब भी कठिन है कि जो नेता कभी साधारण सी शर्ट, हवाई चप्पल पहनता था, वैगन-आर में चलता था और डंके की चोट पर कहता था कि हम न तो बंगला लेंगे, न सुरक्षा, न बड़ी कारें, उसने राजा-महाराजा जैसी जीवनशैली अपना ली। केजरीवाल की हार पर उन्हें ही हैरानी होनी चाहिए, जो यह भूल गए हों कि नई तरह की राजनीति का नाम लेकर उन्होंने दिल्ली और देश को कैसे सुंदर सपने दिखाए थे।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)