डॉ. प्रताप सी. रेड्डी। भारत ने पिछले दशक में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में शानदार प्रगति दर्ज की है और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत किया है और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम किया है। देश गैर-संक्रामक रोगों से निपटा है और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच को आगे बढ़ाया गया है, लेकिन जब अंग प्रत्यारोपण (आर्गन ट्रांसप्लांटेशन) की बात आती है, तो दुर्भाग्य से एक न दिखने वाला संकट हजारों लोगों की जान ले रहा है।

अंगदान दिवस हमें याद दिलाता है कि हम बड़े पैमाने पर अंगदान की आवश्यकता को तत्काल पूरा करने के लिए कोई ठोस पहल करें। अंग प्रत्यारोपण के अभाव में जान गंवाने से बड़ी कोई त्रासदी नहीं है। अंगों की अनुपलब्धता के कारण हर साल देश में लगभग पांच लाख लोगों की जीवन रक्षक प्रत्यारोपण का इंतजार करते हुए मृत्यु हो जाती है। यह दुःखद है।

प्रत्यारोपण के लिए अंग की कमी के कारण देश के तमाम लोगों को खोना हम रोक सकते हैं। हमारे पास चिकित्सा विशेषज्ञता है। हमें बस राष्ट्रीय स्तर पर अंगों की आपूर्ति और मांग के बीच के अंतर को पाटने के लिए एक सामूहिक इच्छाशक्ति चाहिए। भारत में मरीजों की आवश्यकताओं, अंगों की उपलब्धता और प्रत्यारोपण के बीच के अंतर से स्पष्ट है कि तुरंत बदलाव की जरूरत है। लगभग अंतिम चरण के गुर्दे (किडनी) की बीमारी वाले 2,00,000 मरीज, 50,000 गंभीर लिवर (यकृत) विफलता वाले मरीज और 50,000 गंभीर हृदय रोग वाले मरीजों को अपनी जान बचाने के लिए प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत हर साल केवल लगभग 1,600 किडनी, 700 लिवर और 300 हृदय प्रत्यारोपित किए जाते हैं। हर दिन कम से कम 15 मरीज अंग के इंतजार में दम तोड़ देते हैं।

हर 10 मिनट में प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची में एक नया नाम जुड़ जाता है और हर एक की जान खतरे में होती है। अंतिम चरण की किडनी की बीमारी वाले पांच प्रतिशत से भी कम मरीजों को जीवन रक्षक किडनी का प्रत्यारोपण हासिल हो पाता है। हृदय और फेफड़ों के मरीजों की स्थिति और भी गंभीर है। भारत में विश्वस्तरीय अंग प्रत्यारोपण सर्जन तो हैं, लेकिन देश में अंगदान की दर दुनिया में सबसे कम है। प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 0.65 अंगदाता हैं। जबकि स्पेन और क्रोएशिया जैसे देशों में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर अंगदान की दर 30 से अधिक है। यह असमानता दर्शाती है कि भारत में अंगों की कमी केवल एक चिकित्सा बाधा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नीतिगत चुनौती भी है।

अंगदान केवल एक नैदानिक प्रक्रिया (क्लिनिकल ट्रायल) नहीं है। यह मानवता से जुड़ा सर्वोच्च काम है। एक अंगदाता अपना हृदय, फेफड़े, लिवर, किडनी, अग्नाशय (पैंक्रियाज) और ऊतक( टिश्यू ) दान करके आठ लोगों की जान बचा सकता है। एक अंगदाता अनंत आशा का पर्याय है। दूसरों को जीवित रखने के लिए अपने अंगदान करना शायद सबसे यादगार विरासत है, जो आसानी से अपने पीछे छोड़कर जाई जा सकती है। संजय कंडासामी की कहानी हमें याद दिलाती है कि क्या कुछ संभव है? 1998 में 20 महीने के शिशु के रूप में जब उनकी लिवर विफलता का अंतिम चरण था, तब उनके लिवर का प्रत्यारोपण हुआ। उनके पिता ने अपने लिवर का एक हिस्सा दान किया। आज संजय कंडासामी एक प्रैक्टिसिंग डाक्टर हैं और लोगों की जान बचा रहे हैं। यह सिर्फ विज्ञान की संभावना नहीं, बल्कि दूसरा मौका, नई जिंदगी मिलने और जीवन की कहानी है।

हमारे समक्ष एक चुनौती यह है कि परिवार अक्सर अंगदान पर सहमति से इन्कार कर देते हैं, भले ही वह दाता की अपनी इच्छा के अनुरूप ही क्यों न हो। जागरूकता अभियानों और नीतिगत बदलावों के साथ इसे बदलना होगा। अंगदान के लिए इन्कार की दर कम करने के लिए संभावित अंगदाता के परिवार के साथ सहानुभूतिपूर्ण संवाद करना बेहद आवश्यक है। इस आवश्यकता की पूर्ति की जानी चाहिए। अंगदान एक राष्ट्रीय आंदोलन बनना चाहिए। अंगदान के लिए एक साहसिक नीतिगत पहल की आवश्यकता होगी। प्रेज्यूम्ड कंसेंट प्रणाली को अपनाना होगा, जैसा कि सिंगापुर, क्रोएशिया, स्पेन और यूरोप के अन्य देशों में है।

प्रेज्यूम्ड कंसेंट यानी अनुमानित सहमति। इसका मतलब है कि जब तक कोई किसी कार्य, पहल या प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से विरोध न करे, तब तक यह माना जाएगा कि वह सहमत है। इसे अंगदान के मामले में अपनाना चाहिए। प्रेज्यूम्ड कंसेंट के तहत हरेक बालिग को मृत्यु के बाद अंगदाता माना जाता है, चाहे उसके रिश्तेदारों का निर्णय कुछ भी हो या फिर उन्होंने अपने अंगदान न करने के निर्णय को दर्ज न कराया हो। यूरोप में प्रेज्यूम्ड कंसेंट नीति का अंगदान दरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे अंगदान और अंगदान की इच्छा में वृद्धि हुई है। हमें राष्ट्रीय अंगदान आडिट जैसे साहसिक व्यवस्थित सुधारों को भी अपनाना होगा।

भारत ने हमेशा साहसिक विचारों के साथ नेतृत्व किया है। अब समय आ गया है कि हम लोगों की मृत्यु अंगदान के तहत किए जाने वाले अंगों के अभाव में न होने दें। अंगदान राष्ट्रीय प्राथमिकता बने। उचित सामूहिक पहल से हम ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं, जहां हर भारतीय, जिसे प्रत्यारोपण की जरूरत है, उसे अंग प्रत्यारोपण प्राप्त करने का अवसर मिल सके।

(लेखक अपोलो हास्पिटल्स समूह के संस्थापक-अध्यक्ष हैं)