राजीव सचान। जब नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए आया था तो उसे लेकर जिस झूठ का सबसे अधिक सहारा लिया गया था, वह यह था कि इसके जरिये भारतीय मुसलमानों की नागरिकता छीनने का काम किया जाएगा। इसी तरह तीन कृषि कानूनों के विरोध में यह झूठ जमकर फैलाया गया था कि इनका उद्देश्य किसानों की जमीन छीनकर उन्हें उद्योगपतियों को देना है।

अब वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर भी यह झूठ फैलाया जा रहा है कि इसके जरिये मुसलमानों की मस्जिदें, दरगाह, कब्रिस्तान छीन लिए जाएंगे। इस झूठ का सहारा रमजान के दिनों में भी लेने में संकोच नहीं किया जा रहा है। इस विधेयक के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की ओर से आयोजित प्रदर्शन के दौरान इसी झूठ को कई बार दोहराया गया।

इस दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम सिविल राइट्स के चेयरमैन मोहम्मद अदीब की ओर से यहां तक कहा गया कि जगदंबिका पाल (वक्फ अधिनियम पर विचार करने वाली जेपीसी के अध्यक्ष) को खबर कर दें कि वह यह बिल पास करके दिखाएं, फिर देखना कि हम उनका क्या हश्र करेंगे? उनकी ओर से जदयू, तेलुगु देसम जैसे दलों को भी देख लेने की धमकी दी गई।

इसी आयोजन में यह भी कहा गया कि यदि जरूरत पड़ी तो हम दिल्ली और यूपी बार्डर बंद करने के लिए भी तैयार रहेंगे। शाहीन बाग जैसा धरना देने की भी धमकी दी गई। यह ध्यान रहे कि सीएए के खिलाफ धरने के दौरान शाहीन बाग में दिल्ली को यूपी से जोड़ने वाले एक प्रमुख रास्ते पर कब्जा कर लिया गया था। तब विपक्ष के छोटे-बड़े नेता शाहीन बाग पंहुचकर इस अराजक धरने को जायज ठहराते थे।

हालांकि इस धरने से त्रस्त लोगों की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया, लेकिन उसके ढुलमुल रवैये के चलते धरना जारी रहा और अंततः कई महीनों बाद वह तब खत्म हुआ, जब कोरोना के चलते लाकडाउन लगा और वहां मुट्ठी भर लोग ही बचे।

कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समय भी कथित किसान नेता करीब साल भर दिल्ली की सीमाओं पर राजमार्गों को इसलिए बाधित किए बैठे रहे थे, क्योंकि न तो सरकार ने जबरदस्ती रास्ते रोकने वालों के खिलाफ सख्ती दिखाई और न ही सुप्रीम कोर्ट ने। तब इसकी भी अनदेखी कर दी गई थी कि ट्रैक्टर परेड निकालकर गणतंत्र दिवस मनाने के बहाने लाल किले पर कैसा उपद्रव किया गया था।

जहां सीएए और कृषि कानूनों का विरोध उन पर संसद की मुहर लगने के बाद किया गया था, वहीं वक्फ अधिनियम का विरोध उसके संसद में पेश होने के पहले ही किया जा रहा है। एक तरह से संसद को कानून बनाने से ही रोकने की कोशिश की जा रही है और वह भी संविधान की दुहाई देते हुए। कहा जा रहा है कि वक्फ अधिनियम से छेड़छाड़ संविधान से छेड़छाड़ है।

संविधान को धर्मग्रंथ जैसा भले बताया जाता हो, लेकिन वह धर्मग्रंथ नहीं होता और न होना चाहिए। उसमें संशोधन होते रहते हैं-ठीक वैसे ही जैसे, अतीत में वक्फ अधिनियम में भी होते रहे। वक्फ अधिनियम में संशोधन के विरोध में यह कुतर्क कुछ ज्यादा ही जोरदार ढंग से दिया जा रहा है कि चूंकि उसमें कोई खामी नहीं, इसलिए उसमें किसी तरह के परिवर्तन की जरूरत भी नहीं।

यह कुतर्क तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों से हैरान करने वाली उन खबरों के बाद भी किया जा रहा है, जिनके तहत यह उजागर हुआ कि वक्फ बोर्डों ने किस मनमाने तरीके से किसानों, मछुआरों, आम लोगों की जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। तमिलनाडु में तो 1500 साल पुराने यानी इस्लाम के उदय के पहले के एक मंदिर की जमीन को ही वक्फ संपत्ति बता दिया गया।

वक्फ बोर्डों के पास रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन है, लेकिन उसकी हजारों संपत्तियों को लेकर विवाद है। इनमें से अनेक विवाद अदालतों में विचाराधीन हैं। इसके बाद भी मौजूदा वक्फ अधिनियम को सही ठहराया जा रहा है। यदि इस वक्फ अधिनियम में कहीं कोई विसंगति नहीं और वक्फ बोर्ड सचमुच नीर-क्षीर तरीके से संचालित हो रहे हैं तो फिर क्यों न अन्य समुदायों के लिए भी ऐसे ही बोर्ड बना दिए जाएं?

शायद हिंदू समाज को ऐसे किसी बोर्ड की आवश्यकता सबसे अधिक है, क्योंकि उसके धार्मिक स्थलों की संपत्तियों पर कब्जा या फिर उनका दुरुपयोग होता रहता है। आखिर यह कहां का न्याय है कि एक समुदाय के धार्मिक स्थलों का नियमन-संचालन तो सरकारें करें, लेकिन अन्य समुदाय के धार्मिक स्थलों का संचालन उसके लोग खुद करें? क्या अंग्रेजों की तरह आज के शासक भी यह मानते हैं कि हिंदुओं को अपने धार्मिक स्थलों के संचालन का शऊर नहीं?

निःसंदेह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उनके साथ खड़े विपक्षी दलों को वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध का अधिकार है। यह विरोध संसद के भीतर और बाहर भी किया जा सकता है और इस अधिनियम को संसद की स्वीकृति मिलने के पहले भी, लेकिन इसकी अनुमति किसी को नहीं दी जानी चाहिए कि वह विरोध के लिए हिंसा और अराजकता का सहारा ले।

अराजकता फैलाने की धमकी देकर किसी प्रस्तावित कानून के खिलाफ मोर्चा खोलना सीधे-सीधे संविधान पर हमला ही है। इसके बाद भी इसके आसार कम हैं कि संविधान बचाओ की रट लगा रहे लोग वक्फ मामले में संविधानसम्मत तरीके से ही विरोध दर्ज कराने तक सीमित रहेंगे। सरकार और सुप्रीम कोर्ट को सावधान रहना होगा।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)