नई दिल्ली [अनंत विजय]। हाल के दिनों में दो-तीन ऐसी खबरें आईं जो मनोरंजन की दुनिया की दशा और दिशा दोनों बदल सकती है। एक खबर है कि अमेजन प्राइम वीडियो से जुड़ीं अपर्णा पुरोहित का उत्तर प्रदेश पुलिस ने बयान दर्ज करवाया। ये बयान वेब सीरीज तांडव में आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर दर्ज कराए गए केस के संबंध में लिया गया है।

अपर्णा से लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में पुलिस ने पूछताछ की। इससे जुड़ी एक और खबर आई प्रयागराज से। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपर्णा पुरोहित को अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया। अपर्णा पर वेब सीरीज तांडव को लेकर नोएडा में भी केस दर्ज हुआ था, उस सिलसिले में वह हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत चाहती थीं। 

पिछले कई वर्षो से वीडियो स्ट्रीमिंग साइट, जिसे ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म भी कहते हैं, पर दिखाई जाने वाले वेब सीरीज की सामग्री को लेकर तो कई बार वहां दिखाई जाने वाली फिल्मों को लेकर विवाद होते रहे हैं। पिछले तीन वर्षो से इन वेब सीरीज पर दिखाई जाने वाली सामग्री में हिंसा, यौनाचार और मनोरंजन की आड़ में विचारधारा की पैरोकारी, हिंदू धर्म प्रतीकों के गलत चित्रण से लेकर अन्य कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। जब भी इन बातों को लेकर विवाद उठते थे तो सरकार से ये मांग भी की जाती थी कि ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री के संदर्भ में विनियमन नीति लागू की जानी चाहिए।

इस स्तंभ में भी लगातार इस बारे में चर्चा की जाती रही है कि इस क्षेत्र में बढ़ रही अराजकता पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश या कंटेंट के प्रमाणन की व्यवस्था करनी चाहिए। सरकार के स्तर पर विनियमन लागू करने के लिए इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ कई दौर के संवाद भी हुए थे, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर 2018 में सख्त टिप्पणी की थी, संसद में भी यह मामला कई बार उठा। सरकार ने इस पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर दिया है।  

केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश में ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री के लिए स्वनियमन की बात की गई है, लेकिन ये नियमन कैसे हो और इसका दायरा क्या हो इसको भी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी प्लेटफॉर्म भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को आघात पहुंचाने वाले दृश्य और संवाद नहीं दिखाएंगे।

कलात्मक स्वतंत्रता की आड़ में कोई भी ऐसी सामग्री दिखाने की अनुमति नहीं होगी जो कानून सम्मत नहीं है। लेकिन सरकार ने दिशा-निर्देश जारी करते हुए सेवा प्रदाताओं को इसका तंत्र विकसित करने को कहा है। अच्छी बात ये है कि सरकार ने जो व्यवस्था बनाई है, उसमें कार्यक्रमों को दिखाने के पहले किसी से अनुमति लेने की बात नहीं है यानी प्री सेंसरशिप का रास्ता सरकार ने नहीं अपनाया। सबकुछ इन प्लेटफॉर्म पर छोड़ दिया है। सेवा प्रदाता कंपनियों को खुद अपनी सामग्रियों का वर्गीकरण करना होगा।

अलग अलग उम्र की मनोरंजन सामग्रियों का वर्गीकरण कर दिया गया है। सेवा प्रदाताओं को इसका पालन करना होगा। अगर किसी को शिकायत होती है या किसी प्रकार से इन नियमों का उल्लंघन होता है तो उससे निबटने के लिए तीन स्तरीय व्यवस्था बनाई गई है। ये व्यवस्था लगभग उसी तर्ज पर है जिस तर्ज पर टीवी के कार्यक्रमों का स्वनियमन होता है। 

सरकार के इस स्वनियमन के दिशा-निर्देशों को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। फिल्म इंडस्ट्री के कुछ स्वयंभू निर्देशक इसे कलात्मक स्वतंत्रता को बाधित करनेवाला कदम बता रहे हैं। दरअसल जब वो कलात्मक स्वतंत्रता की बात करते हैं तो उनको इस बात का ध्यान नहीं रहता कि ये स्वतंत्रता असीमित नहीं है। भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं को भी स्पष्ट किया गया है।

ऐसा भी नहीं है कि इंटरनेट मीडिया पर चलने वाले इन मनोरंजन के माध्यमों के लिए दिशा-निर्देश जारी करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। कई देशों में ओटीटी के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। सिंगापुर में तो इसके लिए एक प्राधिकरण है- इंफोकॉम मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी। इसकी स्थापना ब्रॉडका¨स्टग एक्ट के तहत की गई थी। इसमें सभी सेवा प्रदाताओं को ब्रॉडका¨स्टग एक्ट के अंतर्गत इस प्राधिकरण से लाइसेंस लेना पड़ता है। 

ओटीटी, वीडियो ऑन डिमांड और विशेष सेवाओं के लिए एक विशेष कंटेंट कोड है। इसमें सामग्रियों के वर्गीकरण की व्यवस्था है। सिंगापुर की संबंधित अथॉरिटी को अधिकार है कि वह ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई जानेवाली सामग्री को अगर कानून सम्मत नहीं पाती है तो उसका प्रसारण रोक दे। नियम विरुद्ध सामग्री दिखाने पर जुर्माना लगाने का भी प्रविधान है। 

ऑस्ट्रेलिया में भी इस तरह के प्लेटफॉर्म पर नजर रखने के लिए ई-सेफ्टी कमिश्नर हैं। उनका दायित्व है कि वे डिजिटल मीडिया पर चलनेवाली सामग्रियों पर नजर रखें। वहां विनियमन इस हद तक है कि ई-सेफ्टी कमिश्नर अगर पाते हैं कि किसी मनोरंजन सामग्री का वर्गीकरण अनुचित है या गलत तरीके से किया गया है तो वो दंड के तौर पर उसे प्रतिबंधित भी कर सकते हैं।

यहां भी ओटीटी पर चलनेवाली सामग्री की शिकायत मिलने पर उसके निस्तारण की एक तय प्रक्रिया है। इसके अलावा भी दुनिया के अन्य कई देशों में किसी न किसी तरह के दिशा-निर्देश लागू हैं। हमारे देश में अब तक ओटीटी की सामग्री को लेकर किसी तरह का नियमन नहीं था। इसका नतीजा यह था कि कई प्लेटफॉर्म पर तो बेहद अश्लील सीरीज भी परोसे जा रहे थे, बिना किसी वर्गीकरण के। कहीं किसी कोने में छोटा सा 18 प्लस लिख दिया जाता था, लेकिन किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं थी। कोई भी उसको देख सकता था। 

जहां तक कलात्मक स्वतंत्रता बाधित करने की बात है तो उसको लेकर जो लोग प्रश्न खड़े कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि हमारे देश में फिल्मों को भी रिलीज करने के पहले प्रमाणन करवाना होता है। क्या इस प्रमाणन की व्यवस्था से फिल्मों की कलात्मक स्वतंत्रता बाधित हुई? टीवी चैनलों को लेकर स्वनियमन लागू है, तो क्या टीवी पर दिखाई जानेवाली सामग्रियों में कलात्मक स्वतंत्रता बाधित दिखती है? 

दरअसल इस तरह के नियमनों से अराजकता पर रोक लगती है। ये कौन सी कलात्मक स्वतंत्रता है जिसमें वेब सीरीज की आड़ में राजनीति की जाती हो, भारतीय सेना की छवि को धूमिल किया जाता हो, कश्मीर में सेना के क्रियाकलापों को गलत तरीके से पेश किया जाता हो। हिंसा, गाली गलौच और यौनिकता के दृश्यों को प्रमुखता से दिखाया जाता हो।

कोई भी माध्यम समाज सापेक्ष होना चाहिए। समाज और संस्कृति से निरपेक्ष होकर कला का विकास नहीं हो सकता है। समाज और संस्कृति को छोड़कर कोई भी कला अपने उच्च शिखर को प्राप्त नहीं कर सकती है। और इस मामले में तो सरकार ने बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा की कि ओटीटी प्लेटफॉर्म अपनी तरफ से कोई स्वनियमन की नीति बनाकर देंगे, लेकिन जब उनके बीच सहमति नहीं बन सकी तो सरकार ने दिशा-निर्देश जारी कर दिए। जो लोग इसको बाधा मान रहे हैं उनको यह पता होना चाहिए कि कला भी अनुशासन की मांग करती है।

सरकार ने ओटीटी के लिए दिशा-निर्देश जारी करने में थोड़ी देरी अवश्य की, लेकिन अब जब यह जारी हो गया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ओटीटी पर गाली गलौच नहीं होगी और अश्लीलता की सीमाएं भी नहीं टूटेंगीं।

केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर ने डिजिटल समाचार संगठनों और इंटरनेट मीडिया समेत ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित जाने वाले कंटेंट को विनियमन के दायरे में लाने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिया है।

पिछले कुछ वर्षो से कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से निरंतर ऐसे कंटेंट प्रसारित किए जा रहे थे, जिन्हें हमारी संस्कृति और सामाजिक स्वरूप के लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे में इस पर अंकुश लगाना जरूरी हो गया था