जीवन को ईमानदारी से जानने और समझने का प्रयास बहुत कम लोग करते हैं। ऐसे व्यक्तियों में चुनिंदा लोग ही जीवन को सही मायने में समझ पाते हैं। जीवन क्या है? यह प्रश्न जीवन से भी ज्यादा कठिन है। जीवन एक पहेली है, एक चुनौती है, एक संघर्ष है। इसे समझकर और इससे टक्कर लेते हुए ही हम आगे बढ़ सकते हैं। सार्थक जीवन जीकर किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति यदि हम कर सकें, तो वही सच्चा जीवन है। जीवन लेने के लिए नहीं, बल्कि परसेवा में देने के लिए बना है। जीवन रहते यदि हमने किसी भटके को सही राह नहीं दिखायी, किसी भूखे को भोजन नहीं कराया, किसी गिरे असहाय-निर्बल को नहीं उठाया, तो ऐसे जीने का महत्व ही क्या है।

आज समाज में हर व्यक्ति स्वार्थपूर्ति के लिए जीवन जी रहा है। लोगों की सोच संकुचित हो रही है। इसीलिए लोगों का नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। जिसने जीवन को समझ लिया, वह जीवन को एक निश्चित दिशा देता है। उसके जीवन का लक्ष्य ही बन जाता है-नि:स्वार्थ सेवा करना। उसके लिए जीवन मजबूरी नहीं, महोत्सव बन जाता है। जीवन व्यथा नहीं, बल्कि मनुष्य की सच्ची कथा होनी चाहिए। उसके लिए जीवन के कांटे भी फूल ही दिखते हैं। फूल सरीखी जिंदगी बनाने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी की हुई पुरानी गलतियों में सुधार कर आगे बढ़ें। सतर्कता, सजगता और सावधानी जैसे मूलमंत्रों का सहारा लेकर हम जीवन को सफल बना सकते हैं। प्रसन्न रहना, संतुष्ट रहना, शांत रहना, हमेशा कर्म करने के लिए उत्साहित रहना, प्रेममय वातावरण रखना, ये जीवन को प्रसन्न रखने के सूत्र हैं। आज हमारे पास समस्त भौतिक संसाधन हैं, किंतु कहीं न कहीं कोई अभाव कई बार जरूर खटकता है। बिखरे जीवनक्रम को व्यवस्थित कर हम इसे संवार सकते हैं। ईश्वर के प्रति आस्था, लोगों के प्रति आपसी प्रेम व भाईचारे के सहारे हमारा जीवन सफल हो सकता है। जीवन में एक अच्छी सोच का होना नितांत आवश्यक है। कहा गया है,जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अच्छे विचारों से मानव देवता बनकर जीवन को बुलंदियों की तरफ ले जा सकता है, तो वहीं बुरे विचारों से उसका जीवन बर्बाद भी हो सकता है। इसलिए अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को आबाद करना सीखें, बर्बाद करना नहीं। जीवन का सच्चा अर्थ शायद यही है।

[अशोक भाईजी]