जागरण संपादकीय: बांग्लादेश को बर्बाद करते यूनुस, जिहादियों का कर रहे समर्थन
मोहम्मद यूनुस जो चाहते हैं जिहादी तत्व उन्हें वह सब मुहैया करा रहे हैं। इसी तरह जिहादियों को जो कुछ चाहिए यूनुस उन्हें वह सब दे रहे हैं। यूनुस नए सिरे से देश का संविधान बना रहे हैं। संविधान से पंथनिरपेक्षता शब्द हटाने का प्रस्ताव है। कट्टरवादी पार्टी जमाते इस्लामी के छात्र संगठन शिबिर के छात्रों ने उन्हें सत्ता में लाकर बिठाया।
तसलीमा नसरीन। बांग्लादेश में छात्रों ने अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली है। भले ही ये छात्र अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से अलग राह पर चलते दिखते हों, लेकिन उनकी पीठ पर उनका ही हाथ है। इस पार्टी में उनके अपने लोग हैं।
यूनुस चाहते हैं कि चुनाव में यही पार्टी जीते। यदि ऐसा होता है तो देश के अनुभवी राजनेता हाथ मलते रह जाएंगे और यूनुस प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सत्ता में बने रहेंगे। क्या अब यूनुस को लेकर लोगों का भ्रम टूटेगा? यूनुस ने प्रमाणित कर दिया कि नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले लोग भी कितने अनुदार हो सकते हैं।
वह नए सिरे से देश का संविधान बना रहे हैं। संविधान से पंथनिरपेक्षता शब्द हटाने का प्रस्ताव है। कट्टरवादी पार्टी जमाते इस्लामी के छात्र संगठन शिबिर के छात्रों ने उन्हें सत्ता में लाकर बिठाया। ये वे लोग थे, जो विगत जुलाई-अगस्त के छात्र आंदोलन में नेपथ्य में थे। शिक्षा परिसरों में लंबे समय से इन्होंने प्रगतिशीलों की हत्या की है। हसीना को सत्ता से हटाने के लिए छेड़े गए छात्रों के आंदोलन की मदद हिजबुत तहरीर नामक आतंकी संगठन ने की थी।
मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यूनुस का संबंध किसी भी तरह जमाते इस्लामी से हो सकता है, क्योंकि वह मुक्तियुद्ध विरोधी है और 1971 में बांग्लादेश को मिली आजादी नहीं चाहता था। वह पाकिस्तानपरस्त और भारत विद्वेषी है। मेरे जैसे असंख्य लोगों ने यूनुस की छवि शांति चाहने वाले व्यक्ति की बना रखी थी।
जिस व्यक्ति को शांति का नोबेल पुरस्कार मिल चुका हो, वह शांतिप्रिय नहीं होगा, तो भला कौन होगा, लेकिन सत्ता में आते ही उन्होंने भारत-विरोधी रुख अपनाना शुरू कर दिया। फिर वह बांग्लादेश के इतिहास को पूरी तरह खारिज करने के अभियान में लग गए।
अगर यूनुस भले आदमी होते, तो सत्ता में आते ही सबसे पहले चुनाव आयोजित कराने के बारे में सोचते और नेताओं को जिम्मेदारी सौंपकर अपना पद छोड़ देते, क्योंकि उनका क्षेत्र राजनीति नहीं है, लेकिन 84 साल की उम्र में भी वह बांग्लादेश को नष्ट करने के अपने अभियान में लगे हैं।
अवामी लीग के नेताओं-कार्यकर्ताओं को खत्म करने की मंशा से उन्होंने आपरेशन डेविल हंट नाम से एक अभियान शुरू किया। अवामी लीग के छात्र संगठन पर उन्होंने पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। अब अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की नहीं, बल्कि उसे पूरी तरह मिटा देने का उनका इरादा है।
अवामी लीग के सभी नेताओं-कार्यकर्ताओं को या तो यूनुस के सामने आत्मसमर्पण करना होगा या फिर उन्हें मिटा दिया जाएगा। जिहादी तत्वों को उन्होंने इस मुहिम में लगा दिया है।
यूनुस का मानना है कि नए बांग्लादेश का निर्माण अवामी लीग को खत्म किए बिना संभव नहीं। यूनुस जो कुछ करना चाहते हैं, जिहादी तत्व उन्हें वह सब मुहैया करा रहे हैं। दूसरी तरफ, जिहादियों को जो कुछ चाहिए, यूनुस उन्हें वह सब मुहैया करा रहे हैं।
हालांकि बीच-बीच में वह कुछ ऐसे बयान भी दे रहे हैं, जिनसे जनता उन्हें भलामानुष समझे। जिहादियों को किसी बात की चिंता नहीं है। वे सिर्फ तोड़ना और नष्ट करना जानते हैं। उनकी मंशा प्रकाशकों पर हमला करने की थी, तो उन्हें वह मौका उपलब्ध कराया गया। वे पुस्तक मेले में स्टाल बंद करना चाहते थे तो उन्हें हरी झंडी दी गई।
महिलाएं सैनिटरी नैपकिन की दुकान चला रही थीं। जिहादी उसे बंद कराना चाहते थे तो वह बंद करा दी गईं। जिहादी वैलेंटाइन डे पर फूलों की दुकान पर हमला करना चाहते थे। वे इसमें सफल रहे। मकर संक्रांति पर आयोजित पतंग उत्सव बंद करने के लिए उन्होंने सुनियोजित ढंग से पतंगों की दुकानों पर धावा बोला। जिहादी देश भर में आयोजित होने वाला वसंत उत्सव खत्म करना चाहते थे, सरकार ने उनकी मदद की।
लालन फकीर की स्मृति में आयोजित होने वाले उत्सव को भी उन्होंने बंद करा दिया। नाट्य उत्सव पर भी उनका हमला सफल रहा। इसके पहले जिहादियों ने 1971 के मुक्तियुद्ध से जुड़े तमाम स्मारकों और संग्रहालयों पर हथौड़ा चलाने की इजाजत मांगी तो वह भी उन्हें मिल गई।
बांग्लादेश में जारी ध्वंस पर विराम के लिए लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर शक्तियों को परस्पर सहानुभूतिशील होना पड़ेगा। यह याद रखना होगा कि अशुभ शक्तियों को परास्त करने और बांग्लादेश को उसके शिकंजे से मुक्त करने के लिए अपने तुच्छ हितों को भूलकर मुक्तियुद्ध के पक्ष में लड़ने वाली तमाम शुभ शक्तियों को एकजुट होना पड़ेगा।
बांग्लादेश में बड़ा राजनीतिक बदलाव हो गया, लेकिन उसका सुफल नहीं मिला। असल में हसीना और यूनुस में चौंकाने वाली समानताएं हैं। हसीना सत्ता नहीं छोड़ना चाहती थीं। यूनुस भी गद्दी नहीं छोड़ना चाहते। हसीना बदला लेने से कभी नहीं चूकतीं थीं। यूनुस का भी यही स्वभाव है। हसीना जब सत्ता में थीं, तब तमाम गलतियों का ठीकरा विपक्षी दल बीएनपी पर फोड़ती थीं।
ठीक इसी तरह बांग्लादेश में आज जो कुछ भी गलत हो रहा है, यूनुस उस सबके लिए शेख हसीना और अवामी लीग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। शेख हसीना इस्लामी कट्टरवादियों का तुष्टीकरण करती थीं। यूनुस भी उनके साथ खड़े हैं। हसीना के समय प्रेस की स्वतंत्रता नहीं थी, लेकिन मीडिया उनके स्तुतिगान में लगा रहता था। यही यूनुस चाहते हैं। हसीना भी मुझे बांग्लादेश नहीं आने देना चाहती थीं। यूनुस भी यही चाहते हैं।
बांग्लादेश में तमाम कारखाने बंद हो गए हैं। नतीजतन अनेक स्त्री-पुरुष बेकार घूम रहे हैं। बेरोजगार पुरुष चोरी-डकैती तो मजबूर औरतें वेश्यावृत्ति कर रही हैं। ऐसे में मजहब के कारोबारी मजे में हैं। यही एक धंधा है, जो खूब चल रहा है। इसके साथ-साथ देश में कट्टरता बढ़ रही है। पूरा बांग्लादेश डरा हुआ है। सजग लोग अगर अब भी खड़े नहीं हुए, तो बांग्लादेश रसातल में जाता रहेगा, जलता रहेगा और यूनुस साहब हंसते रहेंगे।
वह सत्तालोभी, स्वार्थी, अनुदार, ईर्ष्यालु, क्रूर व्यक्ति हैं। नोबेल पुरस्कार से उन्होंने सम्मान पाया था, लेकिन बांग्लादेश की सत्ता का संचालन करते हुए वह निंदा के पात्र बन चुके हैं। वह बांग्लादेश में कट्टरता, हिंसा, चोरी, डकैती और दुष्कर्म पर अंकुश लगाने के जरा भी इच्छुक नहीं दिखते।
(लेखिका बांग्लादेश से निर्वासित साहित्यकार हैं)
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