सृजनपाल सिंह : इंटरनेट आज आम आदमी की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। जैसे औद्योगिक युग में बिजली के इंजन ने सामाजिक और आर्थिक परिवेश को बदल दिया था, ठीक वैसे ही इंटरनेट लोगों के निजी जीवन, संगठनों के आगे बढ़ने और राष्ट्रों की राजनीति को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है, लेकिन क्या इस डिजिटल दुनिया में हम वाकई आजाद हैं या हम अभी भी उन डिजिटल प्लेटफार्म्स पर निर्भर हैं, जो पश्चिमी देशों में बनाए गए हैं और भारत जैसे देशों में विचारों को पेश कर इन्हें आगे बढ़ा रहे हैं।

सूचना मौजूदा समय की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है, जिसे दुनिया भर में पहुंचाने में डिजिटल कम्युनिकेशन चैनल का इस्तेमाल होता है और इसे साझा करने में सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म्स की अहम भूमिका है। लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने और विचार साझा करने के लिए मंच प्रदान करने के मकसद से शुरू किए गए इन इंटरनेट नेटवर्किंग प्लेटफार्म्स ने पिछले दशक में लंबा सफर तय किया है। कलाकारों, पत्रकारों, राजनेताओं, संस्थानों के लिए जनता तक अपनी बात पहुंचाने, खबरें जुटाने, लोगों से जुड़ने और मतदाताओं तक पहुंचने के लिए ऐसे प्लेटफार्म्स उपयुक्त माध्यम बन चुके हैं। अर्थात रोजमर्रा की घटनाओं को आम जनता तक पहुंचाने में ये प्लेटफार्म्स महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं।

अन्य चीजों का जहां उत्पादन नियंत्रित होता है और अनुचित तौर-तरीकों को रोकने के लिए आपूर्ति राशन के मुताबिक की जाती है, वहीं सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म्स डाटा, कंटेंट और सूचना को लगातार विस्तार देने वाले माध्यम हैं। ऐसे प्लेटफार्म्स का स्वामित्व निजी हाथों में होता है। परिणामस्वरूप यूजर्स के डाटा के दुरुपयोग के साथ-साथ विचारधारा, जाति, लिंग, पंथ जैसे विषयों पर दुष्प्रचार की संभावनाएं रहती हैं। ऐसे प्लेटफार्म अपने मूल देश के कानूनों के अधीन होते हैं, जिससे उस देश की सरकार यूजर्स के डाटा तक आसानी से पहुंच सकती है, फिर चाहे वह डाटा विदेशी यूजर्स का ही क्यों न हो।

उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के पास प्रिज्म नाम का एक ऐसा उपकरण है, जो गूगल, फेसबुक, एपल जैसी प्रमुख इंटरनेट और संचार कंपनियों के यूजर्स के डाटा को एकत्र करने के लिए प्रोटेक्ट अमेरिका एक्ट, 2007 के तहत बनाया गया था। हालांकि प्रिज्म में शामिल शीर्ष कंपनियां और अमेरिकी सरकार इसके अस्तित्व को नकारती रहीं, लेकिन करीब छह वर्षों तक, जब तक मीडिया में लीक रिपोर्ट्स के जरिये इसकी हकीकत सामने नहीं आई, तब तक प्रिज्म का अस्तित्व और विस्तार एक रहस्य बना रहा।

अब कई देशों के लिए यह मामला एक चुनौती बन चुका है, अन्य देशों के प्रति प्रबंधन की जवाबदेही बेहद कम है। इसके परिणामस्वरूप भारत में भी अपने स्वदेशी सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म्स की सख्त जरूरत महसूस हो रही है। इसके लिए पहले तो भारत का डाटा भारत में ही रहना चाहिए। हालांकि इस पर होने वाली बहस का इकलौता मुद्दा यही है कि इससे भारत सरकार की सारे डाटा तक पहुंच आसान हो जाएगी, लेकिन इसके साथ ही यूजर्स के अधिकारों के उल्लंघन पर जवाबदेही तय होने से भारतीय कारपोरेशन, यहां कि तक सरकार तक भी भारतीय यूजर्स की पहुंच आसान हो जाएगी।

इसकी वजह भारत की केंद्र और राज्य सरकारों का सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आना है, जबकि अमेरिका में ऐसा नहीं है। किसी और देश में स्थित सोशल नेटवर्किंग साइट्स कानूनों के उल्लंघन के मामले में यूजर्स को मुकदमा करने के अधिकार से वंचित कर देती हैं। ऐसे में भारत को एक स्वदेशी इंटरनेट ढांचे की जरूरत है, जो देसी और विदेशी सोशल नेटवर्क के तौर पर सेवाएं देने में सक्षम हो। तो क्या हम तकनीकी रूप से इस स्वदेशीकरण को हासिल करने में सक्षम हैं? निश्चित रूप से इसका जवाब हां है।

वर्ष 2020 में चीन के साथ तनाव के बीच केंद्र सरकार ने सुरक्षा और निजता का हवाला देते हुए टिकटाक, शेयरइट और वीचैट जैसे मशहूर मोबाइल एप समेत कई चीनी एप्स पर पाबंदी लगा दी थी। फिर जब भारत ने 321 और चीनी एप्स को गैरकानूनी घोषित किया, तब आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज की घोषणा की गई, जिसमें भारतीय तकनीकी उद्यमियों से इनके वैकल्पिक एप्स डिजाइन करने के लिए कहा गया। इसमें कई स्वदेशी कंपनियों ने तकनीक के जरिये अमिट छाप छोड़ी और फिर वह वक्त भी आ गया, जब कू जैसे स्वदेशी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ने वैश्विक स्तर पर अपना दम दिखाया।

एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च के अनुसार पिछले पांच वर्षों में भारत के इंटरनेट स्टार्टअप क्षेत्र में करीब 4.78 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया। इसमें से अकेले 2020 में लगभग 95 हजार करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। द स्टेट आफ स्माल बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक, आर्गनाइजेशन आफ इकोनामिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) और विश्व बैंक के बीच संयुक्त शोध चल रहा है। इसमें पता चला है फेसबुक इंडिया पर काम कर रहे 51 प्रतिशत लघु एवं मध्यम व्यवसायों की कम से कम एक चौथाई बिक्री डिजिटल रूप से हो रही है। भारत में करीब छह करोड़ लघु और मध्यम व्यवसाय हैं। स्वदेशी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स पर स्थानीय व्यवसाय अपने उपभोक्ताओं को अधिक सटीकता से प्रभावित कर सकते हैं। इसकी वजह वैश्विक तकनीकी कंपनियों की तुलना में देसी मंच पर खुद को बेहतर ढंग से परिभाषित करना है।

इंटरनेट मीडिया कंपनियों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। भारत में 93.1 करोड़ लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि अंग्रजी बोलने वालों की संख्या कहीं कम है। केवल स्वदेशी डिजिटल मंच ही विविधता पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं। यह सभी संस्कृतियों के लोगों को उनकी परंपराओं, भाषाओं और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मंच प्रदान कर उभर सकता है। इससे देश भर की भाषाओं के साथ, लोगों के प्रतिनिधित्व, ज्ञान और सीखने में कई गुना बढ़ोतरी होगी, जो वाकई में सभी को एकजुट करने वाला प्रयास होगा।

(लेखक कलाम सेंटर के संस्थापक हैं)