जागरण संपादकीय: परस्पर हितों की रक्षा से ही बनेगी बात, भारत को अपनानी चाहिए असल मुद्दों पर मोलभाव की रणनीति
विदेश मंत्री मार्को रूबियो के एक हालिया साक्षात्कार से संकेत मिला कि अमेरिका अब बहुध्रुवीय व्यवस्था को स्वीकार कर रहा है। इसलिए चीन से सीधे टकराव का जोखिम शायद न उठाए परंतु हिंद-प्रशांत और अरब सागर से लाल सागर तक के आपूर्ति मार्ग को भारत की मदद के बिना चीनी वर्चस्व से मुक्त नहीं रखा जा सकता। ईरान के चाबहार बंदरगाह का मामला भी इसी सुरक्षा से जुड़ा है।
शिवकांत शर्मा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस में एआई शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता करने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप के आमंत्रण पर अमेरिका जा रहे हैं। अपनी ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में लौटे ट्रंप के तेवर काफी बदले हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री की यह यात्रा भारत-अमेरिकी संबंधों में प्रगति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
ट्रंप ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले उन देशों पर निशाना साधना शुरू किया, जहां से बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी आ रहे हैं और जिनके साथ व्यापार घाटा हो रहा है। उन्होंने मेक्सिको और कनाडा पर 25 प्रतिशत तथा चीन पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने का एलान किया, परंतु चुनाव प्रचार में टैरिफ किंग की संज्ञा देने के बावजूद भारत पर व्यापार टैरिफ की जगह अवैध प्रवासियों के लिए निशाना साधा।
अमेरिका में मेक्सिको और अल सल्वाडोर के बाद सबसे बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी भारत से ही जाते हैं। अमेरिका में अब भारतीयों की संख्या लगभग 50 लाख हो चली है, जिनमें से 7,25,000 ऐसे हैं जो या तो अवैध (डंकी) मार्गों से घुसपैठ कर आए हैं या फिर वैध दस्तावेजों के बिना रह रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि भारत से गए अवैध प्रवासियों को अमेरिका ने पहली बार देश से निकाला हो। पिछले वर्ष ही 1,000 से अधिक भारतीयों को निकाला गया था। वर्ष 2018 से 2023 के बीच लगभग 5,500 भारतीयों को निकाला गया, जिनमें से 2,300 अकेले 2020 में निकाले गए थे। हालांकि अभी तक भारतीयों को सेना के विमान में बेड़ियां-हथकड़ियां पहना कर नहीं निकाला गया था।
किसी भी देश में अवैध मार्गों से घुसपैठ गंभीर अपराध है। भारत जैसा बड़ा देश न इसका बचाव कर सकता है और न ही इसे बढ़ावा दे सकता है। इसलिए भारत ने अपने अवैध प्रवासियों को वापस लेने में पूरा सहयोग देने की पेशकश की, परंतु भारत जैसे स्वाभिमानी देश को यह भी गवारा नहीं हो सकता कि सहयोग की पेशकश के बावजूद उसके नागरिकों को बेड़ियां-हथकड़ियां पहना कर सैनिक विमानों से भेजा जाए। ऊपर से अमेरिकी सीमा पैट्रोल के प्रमुख माइकल बैंक्स ने उनका वीडियो बनाकर पोस्ट भी किया, जिसे लेकर भारत में राजनीतिक बवाल होना स्वाभाविक था।
संसद में पहले तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे निर्वासन की स्थापित अमेरिकी प्रक्रिया बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की, मगर बढ़ते आक्रोश पर विदेश सचिव को सफाई देते हुए स्वीकार करना पड़ा कि भारत ने अमेरिकी सरकार के समक्ष अपने नागरिकों के अपमान का मुद्दा उठाया है, क्योंकि जब इसी शैली में ब्राजीली नागरिकों को वापस भेजा गया था तब ब्राजील सरकार ने भी अपना विरोध दर्ज कराया था।
कोलंबिया के वामपंथी राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो तो इतना नाराज हुए थे कि अमेरिकी सैनिक विमान के अपनी धरती पर उतरने को प्रभुसत्ता का अतिक्रमण बता कर विमान को उतरने नहीं दिया था और बाद में ऊंचे टैरिफ की धमकी से घबराकर अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अपने विमान भेजे थे।
मेक्सिको, कनाडा, चीन और कोलंबिया के खिलाफ ट्रंप की आवेश भरी घोषणाओं के बाद के घटनाक्रम को देखा जाए तो मामूली मोलभाव के बाद ट्रंप ने अपने कदम रोक लिए हैं या वापस ले लिए हैं। ऐसा लगता है कि वह अमेरिकी राजनीति और विश्व व्यवस्था पर अपनी छाप छोड़ने की जल्दबाजी में हैं, इसलिए ध्यान खींचने के लिए सनसनीखेज घोषणाएं करते रहते हैं और मामूली सी रियायत हासिल होने पर भी अपनी जीत बताकर पीछे हट जाते हैं।
इसलिए लगता है भारत ने अमेरिका के साथ उत्तरोत्तर प्रगाढ़ होते संबंधों की खातिर संयम से काम लेकर सही किया है। गीदड़ भभकी से डराकर मोलभाव की बाजीगरी के इस खेल की हकीकत अमेरिका के सबसे बड़े व्यापार साझेदार कनाडा, मेक्सिको और चीन समझ चुके हैं। दूसरे देशों के कूटनयिकों और मीडिया को भी इसे समझना होगा।
अवैध प्रवासियों की बात करें तो अमेरिका में उनकी संख्या एक करोड़ से भी अधिक पहुंच गई है। पुलिस औसतन 2,000 को रोज पकड़ रही है, जिनमें से अधिकांश पर्याप्त संसाधनों के अभाव में वापस नहीं भेजे जा रहे। ट्रंप ने सत्ता संभालने के बाद सैनिक विमानों और अतिरिक्त अफसरों को इस काम पर लगाया है।
एक तो इस काम में नागरिक विमानों की तुलना में दस गुना से अधिक खर्च आता है और दूसरे यदि 3,000 को भी रोज वापस भेजा जाए तब भी इतने लोगों को निकालने में दस साल से ऊपर लगेंगे। इसलिए सैनिक विमानों में बेड़ी और हथकड़ी पहनाकर भेजने का नाटक जिन देशों से अवैध प्रवासी आ रहे हैं, उनमें आतंक और राजनीतिक आक्रोश फैलाने के लिए खेला जा रहा है।
ब्रिटेन में भी सुनक सरकार ने अवैध मार्गों से आने वाले शरणार्थियों की बाढ़ को रोकने के लिए उन्हें रवांडा भेजने की योजना बनाई थी, जिसका उद्देश्य यही था। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारतीय दल भी ट्रंप प्रशासन के नाटकीय कदमों और बयानों में उलझे बिना अपना विरोध जताकर असल मुद्दों पर मोलभाव की रणनीति अपनाएगा।
ट्रंप को अपना व्यापार घाटा कम करने की चिंता है, जिसका समाधान भारत उससे नई रक्षा और क्रिटिकल तकनीक का सामान और गैस खरीद के बदले कर सकता है। बदले में भारत को अपना व्यापार बढ़ाने, निवेश आकर्षित करने और रणनीतिक एवं सामरिक साझेदारी और मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत अमेरिका का प्रमुख सामरिक साझेदार है। वह क्वाड का अहम सदस्य है और उसके सहयोग के बिना चीन के विस्तार पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
विदेश मंत्री मार्को रूबियो के एक हालिया साक्षात्कार से संकेत मिला कि अमेरिका अब बहुध्रुवीय व्यवस्था को स्वीकार कर रहा है। इसलिए चीन से सीधे टकराव का जोखिम शायद न उठाए, परंतु हिंद-प्रशांत और अरब सागर से लाल सागर तक के आपूर्ति मार्ग को भारत की मदद के बिना चीनी वर्चस्व से मुक्त नहीं रखा जा सकता। ईरान के चाबहार बंदरगाह का मामला भी इसी सुरक्षा से जुड़ा है। उस बंदरगाह के प्रयोग के लिए भारत को मिली छूट का मामला ट्रंप ने रूबियो को सौंप रखा है। भारत को सुनिश्चित करना है कि ट्रंप प्रशासन उसे प्रतिबंधों के दायरे में न डाले।
(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)
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