संजय गुप्त। आखिरकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत समेत 70 देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। उन्होंने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा तब की थी, जब देश की संसद में आपरेशन सिंदूर पर चर्चा हो रही थी। ट्रंप ने भारत को अपना मित्र देश भी बताया और यह भी आरोप लगाया कि उसकी टैरिफ दरें दुनिया में सबसे ज्यादा हैं।

उसी समय उन्होंने भारत पर रूस से हथियार और तेल खरीदने के कारण जुर्माना लगाने की घोषणा भी की। हालांकि फिलहाल भारत पर जुर्माने के रूप में अतिरिक्त शुल्क लगाने का कोई आदेश जारी नहीं हुआ, पर भारत से आयात होने वाली सामग्री पर 25 प्रतिशत पारस्परिक शुल्क यानी टैरिफ 7 अगस्त से लागू हो जाएगा।

ट्रंप ने भारत के खिलाफ कठोर रवैया दिखाने के साथ ही एक विचित्र काम यह भी किया कि पाकिस्तान पर कहीं कम 19 प्रतिशत टैरिफ लगाया। इसके अलावा उन्होंने यह भी थोथा दावा किया कि पाकिस्तान के पास तेल के भंडार हैं और अमेरिका उनसे तेल निकालने में उसकी मदद करेगा। साफ है कि वे भारत को चिढ़ाना चाहते हैं।

उन्होंने भारत को सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाला देश बताते हुए जैसी भाषा का इस्तेमाल किया और यहां तक कि भारत और रूस की अर्थव्यवस्था को मरती हुई अर्थव्यवस्था कहा, उसके बाद उन्हें भारत के हितैषी के रूप में नहीं देखा जा सकता। वे अपनी विचित्र भाषा के लिए जाने जाते हैं, पर उन्होंने मित्र देश भारत के प्रति जैसी भाषा बोली, वह अमेरिकी राष्ट्रपति को शोभा नहीं देती।

उन्होंने कुछ और देशों के खिलाफ भी तीखी टिप्पणियां की हैं। चीन के प्रति तो तीखी टिप्पणियां समझ आती हैं, क्योंकि अमेरिका के साथ उसका व्यापार घाटा बहुत अधिक है, लेकिन वे कई मित्र देशों के खिलाफ भी उलटा-सीधा बोलते हैं। अब ऐसे देशों में भारत भी शामिल हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति एक लंबे समय से यह झूठा प्रचार करने में लगे हुए हैं कि भारत बहुत अधिक टैरिफ लगता है और इस कारण उससे व्यापार करना कठिन है, लेकिन यह सही नहीं।

यदि भारत अपने किसानों, व्यापारियों आदि के हितों की रक्षा के लिए कुछ वस्तुओं पर ऊंची टैरिफ दरें रखता है तो ऐसा अमेरिका भी करता है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमेरिका के मुकाबले भारत आर्थिक रूप से उतना सक्षम नहीं और यहां एक बड़ी आबादी निर्धन भी है।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति अधिक से अधिक अमेरिकी वस्तुएं भारत को बेचना चाहते हैं। इनमें कुछ वे भी हैं, जिन्हें भारत लेना नहीं चाहता अथवा उन्हें अपने लिए उपयुक्त नहीं पाता। भारत अमेरिका से वे सब लड़ाकू विमान भी नहीं लेना चाहता, जो अमेरिका बेचना चाहता है। भारत का अमेरिका के साथ जो व्यापार घाटा है, वह इतना अधिक नहीं कि ट्रंप आसमान सिर पर उठा लें।

भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चल रहा है और उसे इसका अधिकार है कि किसी देश से किन वस्तुओं को खरीदे और किन्हें नहीं। ट्रंप चाहते हैं कि भारत वह सब कुछ खरीदे, जो वे उसे बेचना चाहते हैं। भारत इसके लिए तैयार नहीं, इसलिए ट्रंप चिढ़ गए हैं। उनकी चिढ़ का एक कारण भारत का रूस से तेल खरीदना भी है।

वे इससे भी खफा हैं कि भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ जो सैन्य कार्रवाई की, उस पर विराम लगाने का श्रेय उन्हें देने के लिए तैयार नहीं। वे बार-बार यह दावा करने में लगे हुए हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच तथाकथित संघर्ष विराम कराया। भारत इसे मानने के लिए तैयार नहीं। भारतीय प्रधानमंत्री ने संसद में यह साफ संकेत कर दिया कि आपरेशन सिंदूर पर ट्रंप जो कुछ कह रहे हैं, वह सही नहीं।

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी नेताओं से हुई बातचीत का हवाला देकर दो टूक कहा कि आपरेशन सिंदूर रोकने के लिए किसी देश के शासनाध्यक्ष ने कुछ नहीं कहा। इसके बाद भी ट्रंप यही रट लगाए हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच खतरनाक हो सकने वाले युद्ध को रोका। वे यह फर्जी दावा 20-25 बार कर चुके हैं।

आपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति की पाकिस्तान के नेताओं से क्या बात हुई, यह तो वही जानें, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि इस सैन्य कार्रवाई को रोके जाने के मामले में वे झूठ बोल रहे हैं। हैरानी इस पर है कि भारत के कई विपक्षी दल ट्रंप के झूठ को सच मान रहे हैं। वे भारतीय प्रधानमंत्री से अधिक अमेरिकी राष्ट्रपति पर भरोसा कर रहे हैं। संसद में आपरेशन सिंदूर पर चर्चा में विपक्ष ने जैसा रवैया दिखाया, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इस बहस से उसे हासिल क्या हुआ?

विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस ने आपरेशन सिंदूर पर बेवजह के सवाल उठाकर फजीहत ही कराई। राहुल गांधी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के डेड इकोनमी होने की ट्रंप की बेतुकी बात को सही बताकर भी अपनी फजीहत कराई। ऐसा लगता है कि उन्हें यह समझ नहीं कि वे नेता विपक्ष हैं और अपने अजीबोगरीब बयानों से अपने साथ कांग्रेस को भी शर्मसार कर रहे हैं। उनका रवैया शायद ही बदले, लेकिन भारत को ट्रंप के आगे झुकना नहीं चाहिए।

पिछले कुछ वर्षों में भारत-अमेरिकी संबंध आगे बढ़े हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक के साथ सामाजिक संबंध भी मजबूत हुए हैं। न जाने कितने भारतीय अमेरिका की नामी कंपनियों में शीर्ष पदों पर हैं। ट्रंप भारत और भारतीयों की महत्ता को स्वीकार करने से जानबूझकर इन्कार कर रहे हैं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि व्यापार समझौते पर जारी बातचीत का क्या होगा, पर इतना तो है ही कि यदि ट्रंप टैरिफ पर रवैया नहीं बदलते तो कुछ भारतीय उद्योगों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देशों पर उन्होंने भारत से कम टैरिफ लगाया है।

इससे भारतीय उद्योगों को विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमारे कारोबारियों को यह भी समझना चाहिए कि उनके उत्पादों की उत्पादकता और गुणवत्ता वैसी नहीं, जैसी आवश्यक है। कारोबारियों के साथ भारत सरकार को भी देखना चाहिए कि अपने उद्योगों की उत्पादकता और गुणवत्ता कैसे बढ़े। भारत आर्थिक रूप से सक्षम होकर ही ट्रंप की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों और अन्य समस्याओं का सामना कर सकता है।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]