विनय जायसवाल। कोरोना वायरस के देशभर में उसका संक्रमण फैलने की आशंका और उससे बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के बारे में विचार करते समय यह सोचने पर आप विवश हो सकते हैं कि यदि इंटरनेट, स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और वीडियो कांफ्रेसिंग के विभिन्न फ्री एप नहीं होते, तो क्या इस महामारी के दौर में भी जिंदगी इतनी सरल होती?

दरअसल, भौतिक रूप से बहुत कम मेल-जोल के दौर में संवाद की प्रक्रिया को सरल बनाने में अगर किसी तकनीक का सबसे बड़ा हाथ है, तो निश्चित रूप से वह डिजिटल मीडिया- की तकनीक ही है। इस डिजिटल मीडिया ने लॉकडाउन के दौरान न केवल ऑफिस के काम की गति को बनाए रखा, बल्कि परिवार के सदस्यों, दोस्तों और रिश्तेदारों को कभी अकेला नहीं पड़ने दिया।

यह सही है कि डिजिटल मीडिया के जरिये कोरोना वायरस और इसके इलाज को लेकर बड़े पैमाने पर अफवाह फैलाया गया, जो इस हद तक पहुंच गया कि देश के सर्वोच्च न्यायालय को कोरोना और इसके इलाज को लेकर कोई भी खबर या सूचना प्रसारित करने या साझा करने से पहले उसकी आधिकारिक पुष्टि करने पर भी जोर देने के बारे में कहना पड़ा। इस तरह की घोर मानवीय आपदा के समय भी अगर लोग खुद से जिम्मेदार नहीं बनते हैं तो जाहिर है वे खुद अपने मौलिक अधिकारों में देश की संस्थाओं के हस्तक्षेप को आमंत्रित करते हैं।

डिजिटल मीडिया एक तरफ जहां अफवाहों का अड्डा बना हुआ था, वहीं दूसरी ओर लोगों को एक-दूसरे के साथ कनेक्ट करने के अलावा सरकारी कार्यालयों, प्रशासन, पुलिस, डॉक्टर्स, औद्योगिक उत्पादन के काíमकों और अधिकारियों समेत जरूरी सेवाओं जैसे अस्पताल, एंबुलेंस, जरूरी माल ढुलाई, किराना स्टोर, सब्जी वाले, दूध वाले आदि को भी कनेक्ट का जरिया बनकर उभरा। इंटरनेट की क्रांति के समय ग्लोबल विलेज का जो स्लोगन चल निकला था, वह इस महामारी के समय वाकई साकार रूप में सामने आया। इस दौरान तमाम सरकार और गैर सरकारी कार्यालयों के कार्मिक वाट्सएप ग्रुप के जरिये न केवल एक दूसरे से जुड़े हुए थे, बल्कि महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय लेने के लिए विभिन्न वीडियो कांफ्रेसिंग एप के जरिये आपस में सीधे संवाद कर रहे थे।

सरकार के विभिन्न मंत्रलयों ने अपने संगठनों और संस्थाओं के जरिये देशभर में न केवल राहत कार्यो को बढ़ावा दिया, बल्कि गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों और जरूरतमंद लोगों को खाना व राशन मुहैया कराने की मुहिम में भी लगे। इसके सोशल मीडिया पर निरंतर अपडेट के कारण जनमानस में भी इस तरह के जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए आगे आने की भावना और अधिक बढ़ी।

दैनिक जीवन में लॉकडाउन के दौरान आम जनता का सबसे बड़ा सहारा यही इंटरनेट, स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और वीडियो कांफ्रेसिंग के विभिन्न फ्री एप रहे। डिजिटल मीडिया के विभिन्न माध्यमों ने बड़ी क्रांतिकारी भूमिका निभाई, खासकर मीडिया से जुड़े जटिल कार्यो जैसे इंटरव्यू या लाइव टेलिकास्ट में। जहां ओवी वैन नहीं पहुंच पाए, वहां भी जूम या स्काइप के जरिये लाइव इंटरव्यू या टेलिकास्ट बड़ी आसानी से संभव हुआ। हालांकि मीडिया के लिए यह तकनीकी नई नहीं है, लेकिन इस लॉकडाउन में उसके लिए भी यह वरदान ही साबित हुई। इसके साथ ही इस मुश्किल दौर में डिजिटल मीडिया ने जो सबसे बड़ी भूमिका निभाई है, वह ऑनलाइन सíवस की, चाहे राशन हो या एजुकेशन, सेमिनार हो या गोष्ठी, संदेश हो या कवि सम्मेलन सभी ने डिजिटल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म का उपयोग करके अपने लक्षित लोगों तक पहुंच बनाए रखने में सफल रहे।

सबसे बड़ा काम शिक्षकों ने करके दिखाया है, बल्कि वे तो आज भी इसमें जुटे हैं। शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था का जिम्मा संभाले हुए हैं। कुछेक अपवादों को छोड़ दें, तो देशभर में आज भी स्कूल-कॉलेज बंद ही हैं। ऐसे में लगभग सभी शिक्षण संस्थान डिजिटल माध्यम से ही अपने छात्रों के साथ जुड़े हुए हैं। अधिकांश चिकित्सकों ने भी इस दौरान अपने मरीजों से डिजिटल माध्यम से ही संपर्क कायम रखा।

निश्चित रूप से, डिजिटल मीडिया खासकर सोशल मीडिया ने देश और दुनिया में एक बड़ी जनसंचार क्रांति को जन्म दिया है, वह अद्भुत और अभूतपूर्व है। इसने बाजार और बिजनेस को ही नहीं, जन-सामान्य को को भी बड़ी सरलता से आपस में जोड़ा है। इस विश्वव्यापी जुड़ाव का ही असर है कि आज कोरोना के खिलाफ लड़ाई का एक बड़ा हिस्सा इसी के जरिये लड़ा जा रहा है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले समय में डिजिटल मीडिया और भी अधिक मानवीय होकर उभरेगा।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]