आशंकाओं के बीच एआइ से जुड़ी संभावनाएं, संभव है ऐसे उद्योगों का निर्माण हो जिनके बारे में किसी ने सुना भी न हो
भारत की कामकाजी आबादी जहां अगले 20 वर्षों में 16 करोड़ बढ़ जाएगी वहीं शोध संस्थान फारेस्टर के एक विश्लेषक माइकल ओ’ग्रेडी के अनुसार आटोमेशन के कारण 6.3 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी और 24.7 करोड़ नौकरियों पर समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
सृजन पाल सिंह : वैश्विक स्तर पर नौकरी और रोजगार के मामले में इस समय सबसे बड़ा परिवर्तन मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ के मोर्चे पर देखने को मिल रहा है। हाल के समय में एआइ ने ऊंची छलांग लगाई है। इस तकनीकी नवाचार ने पूरे परिदृश्य को ही बदल दिया है। एआइ की उपयोगिता ने दुनिया भर में एक नई बहस छेड़ दी है। एआइ के प्रयोग से उत्पादन की प्रक्रियाओं और ज्ञान के संचय को स्वचालित करना संभव हुआ है। यह उन लोगों के काम करने में भी सक्षम है, जिनके लिए किसी विशेष कौशल अथवा दक्षता की आवश्यकता होती है।
इतना ही नहीं, एआइ उस काम को कम कीमत पर जल्दी एवं अधिक मात्रा में करने में सक्षम है, जो किसी एक व्यक्ति के लिए अपनी शारीरिक क्षमता से कर पाना संभव नहीं। एआइ के इसी बढ़ते चलन का परिणाम है कि दिग्गज वैश्विक सलाहकार संस्था मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक दुनिया भर में आटोमेशन यानी स्वचालन से 80 करोड़ श्रमिक विस्थापित हो जाएंगे। वहीं, गोल्डमैन सैक्स ने भविष्यवाणी की है कि बीते दिनों चर्चा में आए चैटजीपीटी जैसे एआइ प्लेटफार्म्स के कारण बहुत कम समय में ही 30 करोड़ से अधिक नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
भारत एआइ के लिहाज से उन नाजुक देशों में है, जिन पर इस नई तकनीक का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है। यह कुशलता निर्भर और श्रम सघन नौकरियों के लिए एक खतरा है, क्योंकि उनमें किए जाने वाले कई काम मशीन द्वारा आसानी से किए जा सकते हैं और उनके लिए उन्नत स्वचालन की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के 80 प्रतिशत से अधिक श्रमिक अकुशल हैं, जिन्हें अपने काम का औपचारिक प्रशिक्षण न के बराबर मिला है। भूटान को छोड़ दें तो दक्षिण एशिया के सभी देशों में अकुशल श्रमिकों की संख्या हमारे देश में सबसे अधिक है। इनमें लाखों निजी सुरक्षाकर्मी, दिहाड़ी मजदूर, ड्राइवर और ऐसे श्रमिक शामिल हैं, जो अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं।
भारत की कामकाजी आबादी जहां अगले 20 वर्षों में 16 करोड़ बढ़ जाएगी, वहीं शोध संस्थान फारेस्टर के एक विश्लेषक माइकल ओ’ग्रेडी के अनुसार, आटोमेशन के कारण 6.3 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी और 24.7 करोड़ नौकरियों पर समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इनमें से अधिकांश नौकरियां वेटर, निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों और फैक्ट्री मजदूरों की होंगी, जिन कार्यों को सीखने के लिए अधिक समय नहीं लगता है।
भारी सामानों की ढुलाई का जो काम पहले इंसान करते थे, अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले औद्योगिक रोबोट्स के जरिये तेजी से, कम खर्च में और अधिक सुरक्षित रूप से किया जा सकेगा। दुनिया भर में और भारत में भी अनेक फैक्ट्रियों ने, जैसे कि अमूल ने पिछले दशक में यही प्रयास किया है कि निर्माण में मानवीय निर्भरता को यथासंभव कम किया जाए। यह स्थिति एआइ के आगमन से एक नए आयाम पर पहुंच जाती है। अब इससे भी अधिक उन्नत प्रक्रियाएं, जैसे कि सप्लाई चेन का प्रबंधन, आइटी परिचालन, बुनियादी ढांचा डिजाइन, परियोजना की तैयारी और गोदामों के प्रबंधन का काम मानवीय निर्भरता के बिना भी कहीं अधिक सुगमता से किया जा सकता है।
गूगल और टेस्ला जैसी कंपनियां सेल्फ ड्राइविंग यानी स्वचालित कारों के अनुसंधान और विकास पर लाखों डालर का निवेश कर रही हैं। ये कारें मानवीय हस्तक्षेप के बिना अपने दम पर चलने में समक्ष होंगी, क्योंकि वे आसपास के इलाके को समझने के लिए जीपीएस, आप्टिकल कैमरे और अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीकों का उपयोग करती हैं। इससे अन्य वाहनों या यात्रियों को कोई खतरा भी नहीं होता। संभव है कि इस आविष्कार का मतलब यही होगा कि उबर या ओला जैसी कंपनियां भविष्य में सेल्फ-ड्राइविंग टैक्सियां चलाएंगी। तब शायद उन्हें ड्राइवरों की आवश्यकता ही न पड़े। ड्राइवरों को वेतन, छुट्टी और बीमा वगैरह देने से भी ये कंपनियां बची रहेंगी। ये ऐसे खर्चे हैं जिनकी आवश्यकता एक सेल्फ-ड्राइविंग कार को नहीं पड़ती। इस स्थिति में भारत में लाखों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार भारत के लगभग पांच प्रतिशत कामगार परिवहन क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिनमें दो करोड़ ट्रक ड्राइवर और हेल्पर तथा 1.2 करोड़ आटो रिक्शा ड्राइवर शामिल हैं। आटोमेशन के चलते निकट भविष्य में ऐसी नौकरियों के खत्म होने का खतरा है, क्योंकि एआइ के कारण उनकी प्रकृति ही बदल जाएगी।
एआइ एक ऐसी सुनामी की तरह है जो प्रायद्वीप के तटों को खतरे में डाल देती है। अब हमारे पास दो ही विकल्प हैं। या तो हम इसकी ताकत के आगे घुटने टेक दें और डूब जाएं, या इस लहर के वेग पर सवारी करें और पूरी दुनिया को उस ऊंचाई से देखें। अगर भारत को एआइ की अगली लहर से बचना चाहता है तो उसे भविष्य के लिए खुद को तैयार करना होगा। सबसे पहले, भविष्योन्मुखी शिक्षा केंद्रों का निर्माण करने की आवश्यकता है। छात्रों को स्कूल स्तर से ही तकनीकी शिक्षा दी जानी चाहिए और हमें ऐसे केंद्रों की स्थापना करनी होगी जहां हर तालुका में व्यक्ति अपनी कुशलता को बढ़ा सके। इससे जो लोग एआइ के कारण विस्थापित हुए हैं, वे आसानी से इसका लाभ लेकर अपनी क्षमता को बढ़ाएंगे और नौकरी के वैश्विक बाजार की योग्यता के अनुरूप प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे।
एआइ की सहायता से इंसान अपनी क्षमता को सभी बंधनों से मुक्त कर संभावनाओं के अनेक द्वार खोल सकता है। संभव है कि यह ऐसे उद्योगों का निर्माण कर दे जिनके बारे में किसी ने सुना भी न हो। इससे लाखों नागरिकों के लिए नौकरी के अवसर पैदा हो सकते हैं। बस हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को ऐसा बनाना होगा कि हम भविष्य के अवसरों के लिए तैयार रहें। ऐसी अनूठी शिक्षा का लाभ भारत के लोग तभी उठा सकेंगे जब हम भविष्य के प्रति गंभीरता दिखाकर उसी दिशा में अपनी रणनीति बनाएंगे।
(पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)














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