सुरेंद्र किशोर। कुछ हलकों में फिर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि बोफोर्स तोप घोटाले से संबंधित आरोपों का क्या हुआ? 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का क्या हुआ? उनकी दलील है कि प्रतिशोध के तहत उठाए गए मामलों का यही परिणाम होने वाला था। क्या उनका यह तर्क सही है और तथ्यों पर आधारित है? कतई नहीं। फिर भी अगले चुनाव में राजग विरोधी दल इन्हीं बोगस तर्कों के बाण चलाने वाले हैं। इसकी भूमिका तैयार की जा रही है। वैसे ये कारगर नहीं होंगे। पिछले चुनावों में भी ये तर्क नाकाम रहे, क्योंकि तथ्य इनके विपरीत हैं। इसीलिए बोफोर्स घोटाले को लेकर 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई थी। 2जी घोटाले के कारण संप्रग को 2014 के चुनाव में नुकसान हुआ था। 2जी घोटाले में सीबीआइ की अपील दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है। वैसे बोफोर्स मामले में भी अजय अग्रवाल की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। हालांकि, उस याचिका का क्या हश्र होगा, वह अनिश्चित है। किंतु 2जी घोटाला मामले के तार्किक परिणति तक पहुंचने की पूरी संभावना है।

देखा जाए तो हाल के वर्षों में सत्ता की राजनीति में एक भारी फर्क आया है। पहले की सरकारें अस्थायी होती थीं। बदलती रहती थीं। उस स्थिति में बोफोर्स और 2जी घोटाले जैसे मुकदमों को कमजोर कर देने की सुविधा निहित स्वार्थी वर्ग को मिल जाती थी, पर अब तो करीब साढ़े सात साल से केंद्र में एक ही गठबंधन की सरकार है। संभावना है कि आगे भी वह कायम रह सकती है। ऐसे में गंभीर भ्रष्टाचार के जो भी मुकदमे देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं, उनके तार्किक परिणति तक पहुंचने की आस बंधी है। कांग्रेस सहित अनेक गैर राजग नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े तमाम मामले इन दिनों अदालतों में चल रहे हैं। उन मुकदमों से संबंधित आरोपित यह उम्मीद कर रहे हैं कि जिस तरह बोफोर्स मामले में सारे सुबूतों की मौजूदगी के बावजूद मामला रफा-दफा कर दिया गया था उसी तरह केंद्र की सत्ता बदलते ही हम उन मुकदमों से मुक्त हो जाएंगे, लेकिन लगता नहीं कि उनकी उम्मीदें पूरी होंगी।

बोफोर्स तोप खरीद मामले में एक महत्वपूर्ण विसंगति हुई है। उम्मीद की जाती है कि उस ओर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जरूर जाएगा। मनमोहन सिंह के शासनकाल में भारत सरकार के आयकर न्यायाधिकरण ने कहा था कि बोफोर्स की दलाली में 41 करोड़ रुपये ओत्तवियो क्वात्रोची और विन चड्ढा को मिले। भारत सरकार ने किसी तरह की दलाली को पहले ही गैर कानूनी घोषित कर रखा था। ऐसे में न्यायाधिकरण के अनुसार उस पर भारत सरकार का आयकर बनता है। क्वात्रोची तो मनमोहन सरकार की मेहरबानी से लंदन स्थित स्विस बैंक शाखा में जमा दलाली के पैसे निकाल कर पहले ही फरार हो चुका था, पर आयकर महकमे ने विन चड्ढा के खिलाफ कार्रवाई जारी रखी। उसने सूद के साथ विन चड्ढा पर 224 करोड़ रुपये का दावा ठोका। आयकर विभाग ने 2019 में मुंबई स्थित विन चड्ढा के फ्लैट को 12.2 करोड़ रुपये में नीलाम कर दिया। विन चड्ढा के परिजनों ने इस नीलामी का विरोध तक नहीं किया।

विसंगति यह है कि दलाली के जिस पैसे पर इस देश के आयकर विभाग ने आयकर वसूल लिया, उस दलाली के मुकदमे को तार्किक परिणति तक पहुंचने ही नहीं दिया गया। यदि अग्रवाल की याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट सिर्फ इस एक बिंदु पर भी गौर करे तो यह मामला अंजाम तक पहुंच जाएगा। इस नीलामी के साथ यह प्रचार गलत निकला कि बोफोर्स तोप सौदे में कोई दलाली नहीं ली गई थी। यही बात तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी लगातार कहते रहे थे कि कोई दलाली नहीं ली गई, लेकिन उनकी बातों पर लोगों ने अविश्वास किया। नतीजतन 1989 के चुनाव में कांग्रेस हार गई। वह लोकसभा चुनाव मुख्यत: बोफोर्स तोप सौदे में हुए घोटाले को मुद्दा बनाकर लड़ा गया था।

इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में 2जी स्पेक्ट्रम तथा कुछ अन्य घोटाले मुद्दे थे, लेकिन जब तक 2जी घोटाले के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय नहीं आता है, तब तक उसकी चर्चा होती ही रहेगी। 2जी घोटाले का मामला अभी दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है। सीबीआइ की विशेष अदालत ने इसके आरोपितों को बरी कर दिया था। 2जी घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ ने की। आरोप है कि मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान सीबीआइ ने ठीक से यह केस नहीं लड़ा। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमदृष्ट्या घोटाला मानकर 122 लाइसेंस रद कर दिए थे। उन पर जुर्माना भी लगाया था। जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल हुआ। केस की सुनवाई शुरू हुई तो विशेष अदालत ने भारतीय साक्ष्य कानून की धारा-165 का इस्तेमाल तक नहीं किया। यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी नए तथ्य के सामने आने पर गवाह या पक्षकार से पूछताछ कर सकती है।

2जी मामले के अभियोजन पक्ष का यह आरोप था कि कलैगनार टीवी को रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डीबी ग्रुप ने 200 करोड़ रुपये दिए थे। उस टीवी कंपनी का मालिकाना हक करुणानिधि परिवार से जुड़ा है। विशेष अदालत को चाहिए था कि दफा-165 का प्रयोग करते हुए इस 200 करोड़ रुपये की लेनदेन के मामले में पूछताछ करती, पर अदालत ने ऐसा नहीं किया।

दरअसल बड़े घोटाले के आरोपों को लेकर कांग्रेस सरकार की यह रणनीति रही है कि पहले मामले को रफा-दफा करवा दो। फिर आरोप लगाने वालों को ही बाद में कठघरे में खड़ा कर दो। सवाल है कि क्या उसकी यह रणनीति अगले चुनाव में काम आएगी? वर्ष 2014 और 2019 में तो कोशिश के बावजूद यह तरकीब काम नहीं आई थी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)