सौ साल से नहीं दिखी तितलियों की 64 प्रजातियां
तितलियों के कुनबे की 64 प्रजातियों के दर्शन पिछले 100 साल से हुए ही नहीं हैं। माना जा रहा है कि तितलियों की ये प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: तितलियों के रंगबिरंगे संसार की स्याह हकीकत निकलकर सामने आई है। पता चला है कि तितलियों के कुनबे की 64 प्रजातियों के दर्शन पिछले 100 साल से हुए ही नहीं हैं। माना जा रहा है कि तितलियों की ये प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। इस बात का खुलासा तितली ट्रस्ट के अध्ययन में हुआ है। वन विभाग ने ट्रस्ट से सर्वे के लिए आग्रह किया था। अब सर्वे की रिपोर्ट वन विभाग को भेजी जा रही है। इसके अलावा बटरफ्लाईज ऑफ उत्तराखंड नाम से किताब भी तैयार की जा रही है।
तितली ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी संजय सोंधी के मुताबिक लंबे समय से तितलियों की 64 प्रजातियों का जिक्र किसी भी शोध पत्र में नहीं हो रहा था। यह आशंका थी कि तितलियों की ये प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इसकी तस्दीक करने के लिए तितली ट्रस्ट ने उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वे किया। पता चला कि इन प्रजातियों की मौजूदगी अपने प्राकृतिक वास स्थलों पर है ही नहीं। अधिक अध्ययन करने पर यह तथ्य सामने आए कि इनकी मौजूदगी एक सदी तक के अंतराल से नहीं पाई जा रही है। ये तितलियां विश्वभर में समुद्रतल से 100 मीटर से लेकर 1500 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती हैं।
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आबादी का घनत्व भी इसी ऊंचाई पर सर्वाधिक है। ऐसे में प्रबल आशंका है कि मानव दखल के चलते तितलियों के वास स्थल नष्ट होने से इनका अस्तित्व भी समाप्त हो गया। दरअसल, तितलियां खास तरह के पौधों पर ही अंडे देती हैं। किन्हीं कारणों से तितलियों के वासस्थल समाप्त हुए और अंडे देने के प्रक्रिया बाधित होने से इनका वजूद भी धीरे-धीरे खत्म हो गया।
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परागण में सहायक होती हैं तितलियां
तितलियां फूलों से फल/अनाज बनाने की प्रक्रिया परागण (पॉलीनेशन) में बेहद सहायक साबित होती हैं। इस तरह तितली प्रजातियों के विलुप्त होने से परागण की प्रक्रिया बाधित होगी और इसका असर पूरे पारिस्थितिक चक्र पर पड़ेगा।
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ये प्रमुख प्रजातियां नहीं दिख रहीं
-टाइगर हूपर (ओकस सबविटैटस)
-ब्लैक प्रिंस (रोहाना पैरासाइटिस)
-फ्रीक (कैलिनागा बुद्धा)
-ग्रेट यलो सेलर (नेप्टिस राधा)
-तिब्बतन सैट्यर (ओइनिस बुद्धा)
-स्केयर वाल (लास्युमाटा मेएरुला
-एंग्ल्डि पेइरॉट (कैलिटा डेसिडिया)
-बैंडेड लाइनब्ल्यू (प्रोसोटस एल्युटा)
-पावडर्ड ओकब्ल्यू (आरोपाला बजालस)
-फॉरेस्ट हॉपर (एस्टिकटोपटेरस जामा)
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पहली बार दिखी कीटभक्षी तितली
तितली ट्रस्ट ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि उत्तराखंड में पहली बार कोई मांसभक्षी तितली दिखी है। इसका नाम है एपफ्लाई और इससे देहरादून के मालदेवता क्षेत्र से रिपोर्ट किया गया। यह सामान्य तितलियों की तरह शाकाहारी न होकर कीड़े खाती है। पूरे देश में तितलियों की 1350 प्रजातियों में 15 के करीब ही कीड़े मकोड़े खाने वाली तितलियां हैं।
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