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    उत्‍तराखंड: दो करोड़ रुपये में 310 बंदरों की नसबंदी

    By gaurav kalaEdited By:
    Updated: Tue, 13 Sep 2016 06:00 AM (IST)

    आपको हैरत इस बात की होगी कि उत्‍तराखंड में चले बंदर नसबंदी योजना के तहत दो करोड़ रुपये में सिर्फ 310 बंदरों की नसबंदी हो पाई।

    देहरादून, [हरीश कंडारी]: हिमाचल समेत देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी बंदरों की लगातार बढ़ रही संख्या मुसीबत बनने लगी है। नियंत्रण के लिए वन महकमे के पसीने छूट रहे हैं। लेकिन आपको हैरत इस बात की होगी प्रदेश में चले बंदर नसबंदी योजना के तहत दो करोड़ रुपये में सिर्फ 310 बंदरों की नसबंदी हो पाई।
    विभागीय आंकड़ों पर ही गौर करें तो 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में बंदरों की संख्या 1.46 लाख है, जबकि लंगूर 54800। गत वर्ष 10 से 13 दिसंबर तक सूबे में कराई गई गणना में यह बेसलाइन डेटा मिलने के बाद भी विभाग बंदरों के बंध्याकरण योजना को ठीक से अमल में नहीं ला पा रहा।

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    जबकि, इन्हीं के उत्पात से लोग सर्वाधिक परेशान हैं। स्थिति ये हो चली है कि खेतों में खड़ी किसानों की मेहनत को बंदर भारी क्षति पहुंचा ही रहे, घरों में भी बेखौफ घुस रहे हैं। आए दिन लोग इनके हमलों में जख्मी हो रहे हैं। पर्वतीय इलाकों से खेती से मोहभंग होने की वजह बंदर भी बने हैं।
    इस सबको देखते हुए हरिद्वार वन प्रभाग के अंतर्गत चिड़ियापुर में खोले गए सूबे के पहले रेसक्यू सेंटर में अक्टूबर 2015 में बंदरों की नसबंदी की योजना शुरू की गई। जोर-शोर से इसका प्रचार-प्रसार भी हुआ तो इससे कुछ राहत की उम्मीद जगी, लेकिन बंदर बंध्याकरण योजना शुरुआत से ही दम तोड़ती नजर आ रही है।

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    हालात ये है कि योजना में अभी तक खर्च हुई दो करोड़ की राशि से चिडिय़ापुर में बंध्याकरण सेंटर के निर्माण के अलावा सिर्फ 310 बंदरों की ही नसबंदी हो पाई है। हालांकि, विभाग इसके पीछे बजट की कमी, एक्सपर्ट टीमों का अभाव, बंदर पकडऩे की दरों का निर्धारण न होना समेत तमाम कारण गिना रहा है, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।

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    चुनौतियां भी कम नहीं
    विभागीय अफसरों की मानें तो बंदरों को पकडऩा सबसे बड़ी चुनौती है। इस मद में कोई धनराशि उपलब्ध नहीं है। साथ ही एक्सपर्ट टीम की भी कमी है। यही नहीं, बंध्याकरण योजना में अब तक जो भी पैसा मिला, वह कैंपा (क्षतिपूरक वनीकरण प्रबंधन अभिकरण) से खर्च की गई। यही नहीं, बंध्याकरण के बाद ऐसे बंदरों की पहचान भी कम चुनौती नहीं हैं।

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    500 रुपये का पड़ता है एक बंदर
    वन महकमे के पास बंदर पकड़ने वाले एक्सपर्ट कर्मियों की कमी है। अभी तक मथुरा समेत अन्य स्थानों से एक्सपर्ट को बुलाकर बंदर पकड़े जाते हैं। एक बंदर को पकडऩे में 200 से 480 रुपये तक का खर्च आता है। हालांकि, विभागीय अफसरों के मुताबिक इसके लिए कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

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    राज्य में प्रमुख क्षेत्रों में बंदर
    प्रभाग- संख्या
    तराई पूर्वी- 9963
    अल्मोड़ा- 9477
    रामनगर- 8400
    नैनीताल- 7500
    तराई पश्चिमी- 7100
    टिहरी- 7020
    कालसी- 6900
    कार्बेट पार्क (रामनगर)- 6000
    कार्बेट पार्क (हल्द्वानी)- 5300
    देहरादून- 4900
    राजाजी पार्क- 4600

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