उत्तराखंड इलेक्शनः सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों का प्रचार
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में सोशल मीडिया पर प्रचार और प्रहार का दौर शुरू हो गया है। हाथ में स्मार्ट फोन है और तमाम सोशल मीडिया के मंच प्रचार सामग्री से अटे पड़े हैं।
देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: तेज रफ्तार जिंदगी में सब कुछ बहुत तेजी से बदल रहा है। हमारे जीने के तरीके के साथ ही हर क्षेत्र का अंदाज बदला है। ऐसे में चुनाव प्रचार भी इससे अछूता नहीं है। मौजूदा चुनाव में प्रचार पूरी तरह तकनीक के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में सोशल मीडिया पर प्रचार और प्रहार का दौर शुरू हो गया है। लाउडस्पीकर और नुक्कड़ सभाएं अब नजर नहीं आतीं। बिल्ले, तख्तियों समेत तमाम छपी सामग्री भी न के बराबर ही है।
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अब हर हाथ में स्मार्ट फोन है और तमाम सोशल मीडिया के मंच प्रचार सामग्री से अटे पड़े हैं। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप के लिए भी यह बड़ा मंच बना हुआ है। इसके साथ ही तमाम अनेक तकनीक भी प्रचार और प्रहार का जरिया बनी हुई हैं।
लोकतंत्र के महाकुंभ में हम सदियों से मुनादी से लेकर नेताओं के लंबे-लंबे भाषणों तक के गवाह बने। आज से दो दशक पहले तक गलियों में लगने वाली बैठकें, छपी हुई प्रचार सामग्र्री, बैनर और लाउडस्पीकर लगी गाडिय़ां ही प्रचार का माध्यम होती थीं, लेकिन अब ये सब इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं।
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गाड़ियों के पीछे भागते बच्चे और प्रचार सामग्री बांटते कार्यकर्ता शायद ही कहीं नजर आएं। चुनाव प्रचार अब सब छह-सात इंच की स्मार्ट फोन स्क्रीन तक सिमटता दिख रहा है। खासतौर पर शहरी मतदाता तक पहुंच में ये तकनीक अहम भूमिका निभा रही है। राजनीतिक दल और प्रत्याशी ग्र्रामीण क्षेत्रों में भी रिकॉर्डेड भाषण और फिल्मों के माध्यम से आम जन तक अपनी आवाज पहुंचा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर छिड़ी वार
पोस्टर, बैनर, बड़े-बड़े होर्डिंग अब प्रचार का सेकेंडरी माध्यम बन गए हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की रणनीति पर गौर करें तो सभी का फोकस सोशल मीडिया पर है। इसके लिए बकायदा सभी बड़े दलों ने सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों की टीमें खड़ी की हैं।
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इतना ही नहीं, मुख्यालयों में इसके लिए अलग से आइटी प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं। राजनीतिक दलों का यह प्रकोष्ठ जहां अपनी उपलब्धियों को मतदाताओं तक पहुंचा रहा है, वहीं विपक्षी दलों पर साइबर हमले की रणनीति भी तैयार कर रहा है।
आलम यह है कि प्रचार से ज्यादा विपक्षियों पर हमला यहां देखने को मिल रहा रहा है। ये विशेषज्ञ ग्राफिक्स, फोटो, वीडियो, खबरों, कार्टून, बयानों आदि के माध्यम से मोर्चा खोले हुए हैं।
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तमाम दल एक-दूसरे के हमलों का जबाव भी इन्हीं माध्यमों से दे रहे हैं। कुल मिलाकर कर साइबर मंच पर एक खुली राजनीतिक जंग इस वक्त देखने को मिल रही है।
निजी कंपनियां संभाल रही जिम्मा
राजनीतिक दलों ने निजी कंपनियों को क्षेत्रवार प्रचार का जिम्मा सौंपा है। ये कंपनियां दलों और प्रत्याशियों की जरूरत और रणनीति के अनुसार काम कर रही हैं। पूरे चुनाव अभियान के लिए एकमुश्त शुल्क लेकर संबंधित क्षेत्रों के लोगों का फोन डाटा जुटाने से लेकर उन तक पहुंच बनाने में इनकी महारत है।
मतदाताओं के बीच जाकर सोशल मीडिया माध्यमों के जरिये अपने क्लाइंट्स के काम और नाम का प्रचार कर रही हैं। ये प्रचार ट्विटर, वाट्सएप और फेसबुक जैसे प्रचलित माध्यमों के जरिये किया जा रहा है। इसके तहत उम्मीदवारों और दलों के पूरे लुभावने प्रोफाइल, वादों, दावों और सुहावने ख्वाबों का पूरा जाल बिछाया जा रहा है।
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ऑडियो-वीडियो और संदेश भी
स्मार्ट फोन पर जहां फोटो, वीडियो ऑडियो और सोशल मीडिया को प्रचार का माध्यम बनाया जा रहा है, वहीं सामान्य फोन इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं तक पहुंचने के लिए रिकॉर्डेड ऑडियो संदेश और टैक्स संदेश का सहारा लिया जा रहा है।
इस माध्यम से ग्रामीण मतदाताओं तक भी पहुंच बनाई जा रही है। ऑडियो संदेशों में पार्टी के प्रमुख नेताओं और खुद प्रत्याशी द्वारा मतदाताओं के मन तक अपनी बात रखी जा रही है।
वीडियो वैन से गांव-गांव पहुंच रहे नेता
उत्तराखंड की विषम भौलोगिक परिस्थितियों में नेताजी के लिए भले ही हर गांव तक पहुंचना संभव न हो, लेकिन नेताजी के वीडियो और उनकी बातें हर मतदाता तक पहुंचाई जा रही हैं। तमाम दल और प्रत्याशी गाडिय़ों में बड़ी-बड़ी एलसीडी स्क्रीन पर अपने लुभावने भाषण लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ये वीडियो वैन प्रदेश के हर कोने में पार्टी और प्रत्याशियों का प्रचार कर रही हैं।
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मोबाइल एप्स से मतदाताओं पर पकड़
तमाम राजनीतिक दल और निर्वाचन विभाग अपनी नीतियों और सूचनाओं को आम लोगों और मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए मोबाइल एप्स भी विकसित कर रहे हैं। इनके साथ ही फेसबुक और ट्विटर पर अकाउंट्स बनाकर मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाई जा रही है।
हाल में ही निर्वाचन विभाग ने भी ऐसी ही दो एप्स जारी की हैं। वहीं भाजपा, कांग्र्रेस समेत तमाम दलों के फेसबुक पेज, एप्स और ट्विटर अकाउंट मंच पर हैं।
फेसबुक लाइव भी बना हथियार
मौजूदा चुनाव में एक नया हथियार बना है फेसबुक का फीचर 'लाइव' भी प्रचार का मजबूत हथियार बना है। प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं ने नामांकन से लेकर जनसभाओं तक के वीडियो इस फीचर के माध्यम से हजारों लोगों तक पहुंचाए हैं। आने वाले दिनों में प्रचार जोर पकड़ेगा और यह फीचर प्रचार का मजबूत साधन बनेगा।
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फैंस के नाम पर वॉलिंटियर
सोशल मीडिया पर विज्ञापन करने और आपत्तिजनक सामग्र्री अपलोड करने पर निर्वाचन आयोग की नजर है। इसके लिए जिला और प्रदेश स्तर पर मीडिया प्रमाणीकरण और निगरानी समितियां स्थापित की गई हैं।
ऐसे में राजनीतिक दलों ने अपने कार्यकर्ताओं को फैंस के रूप में और कुछ भुगतान पर लगाए गए वॉलिंटियरों को पार्टी का फैन बनाकर काम में लगाया है। ये तमाम लोग पार्टी के पेज पर पड़ी सामग्र्री शेयर करने से लेकर अपनी ओर से पार्टी द्वारा मुहैया प्रचार सामग्र्री को फैलाते हैं।
चुनाव आयोग की भूमिका
प्रचार में तकनीक का इस्तेमाल निर्वाचन आयोग के लिए भी चुनौती बना हुआ है। हालांकि, आयोग ने पूरी मशीनरी को हाईटेक करने और कड़ी निगरानी रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सोशल मीडिया पर प्रचार को लेकर राज्य का मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय भाजपा और कांग्र्रेस प्रदेश अध्यक्षों तक को नोटिस थमा चुका है, लेकिन फेसबुक लाइव और व्हाट्सएप ग्र्रुपों में प्रचार जैसी तकनीकों पर कार्रवाई के लिए स्पष्ट गाइडलाइन नहीं होने के कारण प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
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दलों की उपस्थिति
राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की बात करें तो सभी किसी न किसी तकनीक के सहारे अपनी नैया पार करने में लगे हैं। कांग्रेेस इस जंग में टीम प्रशांत किशोर, यानी टीम पीके के साथ सबसे आगे दिख रही है।
वहीं भाजपा भी पूरी ताकत के साथ अपनी टीम लेकर साइबर जंग का हिस्सा बनी हुई है। राज्य का तीसरा प्रमुख दल बसपा इस मामले में थोड़ा पीछे नजर आता है। कांग्रेस ने अपनी वेबसाइट, फेसबुक पेज, ट्विटर और तमाम प्रमुख चेहरों के फेसबुक और ट्विटर खातों के माध्यम से भाजपा पर हमला बोला है।
इसमें हरीश रावत, किशोर उपाध्याय, उत्तराखंड कांग्रेेस और आईएमसी के खाते प्रमुख हैं। वहीं, भाजपा ने भी वेबसाइट, फेसबुक और ट्विकर खातों के माध्यम से कांग्रेेस को घेरने की जंग छेड़ी हुई है। भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, सासंद रमेश पोखरियाल निशंक और भगत सिंह कोश्यारी के खाते ज्यादा सक्रिय हैं।
वहीं बसपा इस मामले में राज्य में थोड़ी कम सक्रिय है। हालांकि, वेबसाइट और ट्विटर पर तमाम प्रमुख नेता हैं और प्रचार के लिए इन्हें माध्यम बना रहे हैं।
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