उत्तराखंड इलेक्शन 2017: हरदा ने बिछाया टिकटों का जाल
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के जरिये प्रदेश की सत्ता को दूसरी बार हासिल करने के लिए हरीश रावत ने प्रत्याशियों की बिसात बिछाकर भाजपा को साधने के लिए जाल भी बिछाया है। यह भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव: भीमलाल को मिला वफादारी का तोहफा
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के जरिये प्रदेश की सत्ता को दूसरी बार हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही कांग्रेस की चुनावी जंग को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने रोचक और कांटेदार बना दिया है।
कांग्रेस के दिग्गज बागी नेताओं को साथ लेकर ताकतवर दिख रही भाजपा के लिए हरीश रावत ने जिसतरह से अपने प्रत्याशियों की बिसात बिछाई है, उसने जाहिर कर दिया है कि उन्होंने सिर्फ टिकट ही नहीं बांटे, बल्कि भाजपा को साधने के लिए जाल भी बिछाया है।
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साथ में भाजपा के दिग्गजों की घेराबंदी कर उन्हें हावी नहीं होने देने की कोशिश भी रही है। हरदा की ये बाजीगरी कांग्रेस के लिए मुश्किल समझे जा रहे हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों की सीटों पर तो दिखी ही है, पर्वतीय क्षेत्रों में भाजपा के विधायकों की राह में अड़चनें डालने के बंदोबस्त किए गए हैं।
मुख्यमंत्री हरीश रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये ही है कि कांग्रेस ने मिशन 2017 के लिए उन्हें आगे कर जो दांव खेला है, उस पर खरा उतरें। इस चुनौती पर खरा उतरने के लिए हरीश रावत को पहली परीक्षा प्रत्याशियों का चयन के रूप में देनी पड़ी है।
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कांग्रेस की तुलना में पहले प्रत्याशी घोषित कर भाजपा ने माइंड गेम में बढ़त लेने के साथ ही ये अहसास कराने की कोशिश की, चुनावी जंग की अपनी तैयारियों पर पार्टी को अधिक भरोसा है।
इस भरोसे की बड़ी वजह कांग्रेस से टूटे 11 विधायक और मजबूत क्षत्रप रहे हैं। ये भी सच्चाई है कि इनके जाने के बाद कांग्रेस के सामने उनके गढ़ों में दमदार उम्मीदवारों को तलाश करने की चुनौती रही है। प्रत्याशियों के चयन में देरी की नौबत आई तो एकबारगी ये लगा कि कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ रही हैं। लेकिन, देर से जारी प्रत्याशियों की सूची सामने आई तो ये भी साफ हो गया कि आखिर हरीश रावत ने प्रत्याशियों की सूची देर से जारी करने और पहले भाजपा को सूची जारी करने के लिए इंतजार क्यों किया।
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कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को मजबूत बनाने के लिए हरदा ने सिर्फ भाजपा के असंतुष्टों को तो साथ लिया ही, हरिद्वार में भाजपा को चुनौती देने के लिए पूर्व बसपाइयों खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े नेताओं को अपने पाले में खींचने से गुरेज नहीं किया। उनकी रणनीतिक तैयारी अधिक मजबूत इससे भी दिखती है कि कांग्रेस के भीतर खुद से दूर रहने वालों को भी चुनाव के मौके पर साथ लिया।
हरिद्वार में पूर्व बसपाई अल्पसंख्यक नेताओं पर दांव
सत्ता की सीढ़ी दोबारा चढ़ने के लिए हरीश रावत हरिद्वार जिले में खास रणनीति के साथ आगे बढ़े हैं। जीत के समीकरणों के लिए उन्होंने कांग्रेस के पुराने सिपाहियों से अधिक भरोसा बाहर से आने वाले खासतौर पर बसपा में सक्रिय नेताओं पर जताया।
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भाजपा की काट के लिए पूर्व बसपा नेताओं में भी अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय से साथ लिए गए हैं। जिले में सिटिंग गेटिंग फैक्टर पर मौजूदा विधायकों को टिकट थमाने के अलावा लक्सर सीट पर पूर्व बसपा विधायक हाजी तस्लीम अहमद और मंगलौर में काजी निजामुद्दीन को प्रत्याशी बनाकर उनका फायदा हरिद्वार ग्रामीण सीट पर लेने की रणनीति साफ दिखती है।
इस सीट से खुद हरीश रावत खम ठोक रहे हैं। रानीपुर सीट पर पूर्व सपा विधायक अंबरीष कुमार, रुड़की में भाजपा के बागी सुरेश चंद जैन कांग्रेस की लड़ाई लड़ेंगे। झबरेड़ा सीट पर विधायक हरिदास बसपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं, लेकिन उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया है।
बसपा छोड़ने के बाद हरिदास से बसपा का कैडर वोट छिटकना तय मानकर इस क्षेत्र में कांग्रेस के ही पहले से सक्रिय राजपाल सिंह पर दांव खेलना मुफीद समझा गया है।
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बागियों को गढ़ों में घेरा
बागियों से मिले सदमे को झेल चुके हरीश रावत की मौजूदा पूरी चुनावी रणनीति उन्हें उनके गढ़ों में घेरने और परास्त करने की है। इसके लिए बागियों के गढ़ों में प्रत्याशियों के चयन की व्यूह रचना लंबे मंथन के बाद गढ़ी गई है।
इसमें भाजपा के बागियों को कांग्रेस का हाथ थमाने से लेकर निर्दल मैदान में खम ठोक रहे भाजपा के मजबूत बागियों की पीठ पर हाथ रखने की रणनीति को शिद्दत से अंजाम दिया गया है।
हरिद्वार जिले की खानपुर सीट में कांग्रेस के बागी पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन को उन्हीं के गढ़ खानपुर में घेरने के लिए बसपा के पूर्व विधायक चौधरी यशवीर सिंह को आगे किया गया है।
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वहीं रुड़की में कांग्रेस के बागी और भाजपा विधायक प्रदीप बतरा के मुकाबले में भाजपा के बागी सुरेश चंद जैन को उतारा जा चुका है। ऊधमसिंहनगर जिले की सितारगंज सीट में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा के खिलाफ कांग्रेस ने स्थानीय बंगाली समुदाय की नेत्री मालती बिस्वास को आगे करने की रणनीति तमाम समीकरणों को ध्यान में रखकर अमल में लाई गई है।
बाजपुर सीट पर पूर्व काबीना मंत्री यशपाल आर्य को घेरने के लिए भाजपा की बागी सुनीता बाजवा पर दांव सोच-समझकर चला गया है। सुनीता खुद अनुसूचित जाति से हैं, लेकिन उनका परिवार सिख है। बाजपुर सीट पर सिखों की तादाद भी अच्छी-खासी है।
नरेंद्रनगर सीट और केदारनाथ सीट पर हरीश रावत निर्दल खम ठोक रहे भाजपा के मजबूत बागियों को समर्थन देने की रणनीति पर चल रहे हैं। रुद्रप्रयाग सीट पर कांग्रेस के बागी और अपने चिर प्रतिद्वंद्वी हरक सिंह रावत की ही करीबी लक्ष्मी राणा को कांग्रेस का टिकट देने की हरीश रावत की अजीबोगरीब रणनीति समझ भले ही न आए, लेकिन कई कयासों को जन्म जरूर दे रही है।
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कोटद्वार सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हरक सिंह रावत की घेराबंदी के लिए काबीना मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी तो हैं ही, भाजपा के असंतुष्ट शैलेंद्र रावत को भी कांग्रेस अपने पाले में खड़ा करने में कामयाब रही है।
सोमेश्वर सीट पर भाजपा की प्रत्याशी रेखा आर्य का तोड़ ढूंढऩे में हरीश रावत को जरूर मशक्कत करनी पड़ रही है। उनके करीबी सांसद प्रदीप टम्टा भी इस सीट पर पहले चुनाव हार चुके हैं और दोबारा भाग्य आजमाने में हिचकते दिख रहे हैं।
भाजपा विधायकों पर टेढ़ी नजरें
बागियों के साथ ही हरीश रावत भाजपा के मौजूदा विधायकों को भी कड़ी टक्कर देने के लिए कुमाऊं और गढ़वाल दोनों मंडलों में फील्डिंग सजाई है। कुमाऊं में बागेश्वर और चंपावत जिलों की जिन सीटों पर भाजपा काबिज है, मजबूत दावेदारों को सामने लाने पर जोर लगाया गया है।
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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को भी उनके गढ़ में घेरने पर खास जोर दिया गया है। लैंसडौन में भाजपा विधायक दिलीप सिंह रावत के सामने पूर्व मंत्री टीपीएस रावत तो यमकेश्वर सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की पुत्री भाजपा प्रत्याशी रितु खंडूड़ी को टक्कर देने को भाजपा के ही बागी शैलेंद्र रावत को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है।
शैलेंद्र पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी की वजह से कोटद्वार से टिकट नहीं मिलने की वजह से उनके खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। एक बार फिर पुत्री के बहाने खंडूड़ी के सामने शैलेंद्र को किया गया है। उत्तरकाशी जिले में कांग्रेस की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भाजपा के बागी पूर्व विधायक राजकुमार को टिकट थमाया गया।
पीडीएफ के साथ, पार्टी के भी साथ
मुख्यमंत्री ने कांग्रेस सरकार के संकट के साथ पीडीएफ के साथ अपने ही अंदाज में वायदा निभाया है। पीडीएफ से जुड़े दो विधायकों मंत्री प्रसाद नैथानी और हरीशचंद्र दुर्गापाल कांग्रेस के ही टिकट पर क्रमश: देवप्रयाग और लालकुआं से चुनाव लड़ रहे हैं।
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अन्य दो में टिहरी से दिनेश धनै के खिलाफ पार्टी ने प्रत्याशी घोषित तो किए, लेकिन सिर्फ उपस्थितिभर दर्ज कराने के लिए। धनोल्टी सीट पर काबीना मंत्री प्रीतम पंवार के खिलाफ खड़े किए गए कांग्रेस प्रत्याशी मनमोहन मल्ल की पकड़ जौनपुर इलाके पर मानी जाती है।
भाजपा प्रत्याशी नारायण सिंह राणा भी इसी इलाके से हैं। सियासी हलकों में चर्चा है कि पंवार को फायदा पहुंचाने के लिए मनमोहन मल्ल को आगे किया गया है। हालांकि, टिहरी और धनोल्टी सीट पर पहले प्रत्याशी खड़ा करने में हिचकने और फिर टिकट देकर हरीश रावत पार्टी के साथ खड़ा होने के संकेत भी देते नजर आ रहे हैं।
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हरदा का खुद पर भरोसा
प्रदेश में कांग्रेस के खेवनहार से लेकर स्टार प्रचारक की दोनों भूमिका में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरिद्वार के साथ ही ऊधमसिंह नगर जिले की सीटों के समीकरणों को साधने के लिए अन्य नेताओं से अधिक खुद पर भरोसा किया है।
दोनों जिलों की एक-एक सीट से खम ठोककर हरदा ने सभी सीटों पर चुनाव जिताने के दारोमदार के साथ खुद को भी सियासी तौर पर महफूज रखने का दांव चला है। मुख्यमंत्री की रणनीति खुद के जरिए भाजपा को दोनों जिलों में फंसाए रखने की है।
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