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    उत्तराखंड विधानसभा चुनावः सैन्य वोटरों के साथ दलों की कदमताल

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 28 Jan 2017 11:14 PM (IST)

    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में किसी भी दल का भविष्य तय करने में सैन्य वोटर की भूमिका भी अहम होगी। इसका कारण सैनिक व सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े वोटर हैं।

    उत्तराखंड विधानसभा चुनावः सैन्य वोटरों के साथ दलों की कदमताल

    देहरादून, [विकास गुसाईं]: उत्तराखंड के सैनिकों का सरहद की रक्षा में अहम योगदान तो सर्वविदित है लेकिन एक और सच्चाई यह है कि ये सैनिक उत्तराखंड के चुनावी रण में भी बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। चुनावों में इन सैनिकों की कदमताल किसी भी दल को सत्ता दिला सकती है तो किसी को सत्ता से उठा कर नीचे भी पटक सकती है।

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    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में किसी भी दल का भविष्य तय करने में सैन्य वोटर की भूमिका भी अहम होगी। इसका कारण सैनिक व सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े वोटर हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश की कुल आबादी का तकरीबन 18 से 20 फीसद आबादी सैन्य पृष्ठभूमि से है।

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    यही कारण भी है कि प्रदेश के सभी प्रमुख दल सैन्य वोटरों पर अपनी नजरें गढ़ाए रहते हैं और पूर्व सैनिकों व परिजनों को अपने घोषणापत्र में भी विशेष स्थान देते हैं।

    उत्तराखंड को सैन्य बहुल प्रदेश माना जाता है। प्रदेश के पर्वतीय जिलों में हर दूसरे परिवार से कम से कम एक व्यक्ति सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में तैनात है। प्रदेश में इस समय तकरीबन एक लाख सर्विस वोटर हैं। हालांकि, इनकी संख्या घट-बढ़ सकती है।

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    सर्विस वोटर सभी सैनिकों का मापदंड नहीं हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय सेना में डेढ़ से पौने दो लाख सैनिक उत्तराखंड से हैं। प्रदेश में पंजीकृत पूर्व सैनिक व वीर नारियों की संख्या पर नजर डालें तो यह संख्या भी 1.62 लाख से उपर है।

    इसके अलावा पचास हजार से अधिक युवा अर्द्ध सेना में हैं। तकरीबन तीस हजार पूर्व अर्द्ध सैनिक हैं। प्रति व्यक्ति के पीछे चार लोगों को जोड़ा जाए तो यह संख्या सीधे सीधे लगभग से 20 लाख तक पहुंचती है।

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    सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े वोटरों के गणित को सभी राजनीतिक दल बखूबी समझते हैं। यही कारण है कि ये दल पूर्व सैनिकों पर अपनी नजरें जमाए रखते हैं। हर दल में पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ है। इनमें बिग्रेडियर स्तर के अधिकारियों तक को शामिल किया गया है।

    केंद्र व प्रदेश सरकारों के एजेंडे में सैनिक व पूर्व सैनिकों के हितों से जुड़े मुद्दे प्रमुखता से रखे जाते हैं। प्रदेश में इस समय पूर्व सैनिकों की संख्या मुख्य रूप से देहरादून, पौड़ी व पिथौरागढ़ जिले में है। पौड़ी व देहरादून में पूर्व सैनिक, वीर नारियों व सर्विस वोटरों व सैनिक पृष्ठ भूमि से जुड़े लोगों की संख्या 50 हजार से अधिक है।

    पिथौरागढ़ जिले में भी 40 हजार से अधिक की जनसंख्या सैन्य पृष्ठभूमि की है। इसे देखते हुए यहां राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों से जुड़े मुद्दे ही उठाते हैं। हालांकि, सैनिक पृष्ठभूमि से जुड़े वोटरों के मूड को भांपना किसी दल के लिए आसान नहीं होता।

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    प्रदेश में अभी तक हुए चुनावों में पूर्व सैनिकों के मत व्यवहार पर नजर डालें तो ये वोटर मुख्य रूप से केंद्रीय मुद्दों के आधार पर ही वोटिंग करते हैं। मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा और सैनिक हितों से जुड़े मुद्दे सीधे इनके वोट करने के तरीके में नजर आते हैं।

    चूंकि इनका लंबा जीवन सेना में गुजरा होता है तो ये अपने मुद्दों पर काफी मुखर भी रहते हैं। इतना ही नहीं, पूर्व सैन्य अधिकारी और सैन्य पृष्ठभूमि के प्रत्याशी को लेकर भी इनका एक साफ्ट कार्नर नजर आता है। यही कारण है कि प्रदेश के दोनों ही दलों ने पूर्व सैन्य सैनिक अधिकारियों को अपने साथ जोड़ा है।

    बात करें सर्विस वोटर की तो पहले सर्विस वोटरों के वोट अधिकांश उसी पार्टी को जाते थे जिसकी केंद्र में सरकार होती थी लेकिन बीते वर्षों में यह परिपाटी बदली है।

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    सोची समझी रणनीति पर चल रही भाजपा

    विधानसभा चुनावों में भी भाजपा एक एक सोची समझी रणनीति के तहत इस पर काम कर रही है। चुनाव से पहले दीपावली के अवसर पर पर हिमाचल में सैनिकों से साथ प्रधानमंत्री का दीपावली मिलन कार्यक्रम रहा हो अथवा सर्जिकल स्ट्राइक। इनके जरिये कहीं न कहीं सैन्य वोटरों को सीधे छूने का प्रयास किया गया।

    हाल ही में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में हुई कमांडर्स कान्फ्रेंस भले ही राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था, लेकिन इससे कहीं न कहीं उत्तराखंड को तवज्जो दिए जाने का संदेश देने का प्रयास किया गया।

    सेना में इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सेनाध्यक्ष जनरल विपिन नेगी, डीजीएमओ अनिल भट्ट व रॉ प्रमुख अनिल धस्माना उत्तराखंड से हैं। निश्चित तौर पर इसका फायदा भाजपा लेने का प्रयास करेगी। इसके अलावा वन रैंक वन पेंशन के लिए केंद्र से की गई पहल को भी भाजपा अपनी उपलब्धि के रूप में गिना रही है।

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    वन रैंक वन पेंशन पर साध रही कांग्रेस निशाना

    प्रदेश में कांग्रेस भी सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े वोटरों को अपने पाले में रखने का पूरा प्रयास कर रही है। कांग्रेस के सभी राष्ट्रीय व प्रदेश स्तरीय नेता वन रैंक वन पेंशन पर लगातार केंद्र सरकार को निशाने पर रखे हुए हैं।

    ओआरओपी को कांग्रेस की देन बताते हुए केंद्र सरकार को अभी तक इसके निस्तारण न करने का आरोप लगाकर घेरा जा रहा है। हाल ही में अद्र्ध सैनिक बल के जवान की ओर से खाने को लेकर उठाए गए सवाल के जरिये कांग्रेस ने लगातार केंद्र को निशाने पर रखा हुआ है।

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    प्रदेश सरकार की ओर से पूर्व सैनिकों के हित में लिए निर्णयों को सामने रखा जा रहा है। इसमें कैंटीन से खरीदने वाली कुछ सामानों पर वैट माफ करना, पूर्व सैनिकों को गृहकर में छूट आदि बिंदुओं को लगातार उठाया गया है।

    पूर्व सैनिकों की तरह ही अर्द्ध सैनिकों के लिए कल्याण परिषद का गठन कर इसे सरकार अपनी उपलब्धि गिना रही है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने सेवानिवृत्त ले.ज. टीपीएस रावत को मैदान में उतार कर पूर्व सैनिकों को टिकट में भागीदारी का वादा निभाया है।

    पूर्व सैनिकों की संख्या जिलेवार

    जिला--------------पूर्व सैनिक---------वीर नारियां

    देहरादून-------------22576-------------4000

    चमोली--------------10776-------------3704

    हरिद्वार--------------4212---------------795

    पौड़ी------------------21844------------7391

    रुद्रप्रयाग---------------3261------------1375

    टिहरी-------------------4826-----------1740

    उत्तरकाशी---------------733-------------201

    अल्मोड़ा----------------9884-----------3916

    बागेश्वर----------------7960------------3276

    चंपावत-----------------3409------------1037

    नैनीताल---------------10314-----------2698

    पिथौरागढ़-------------16517-----------7348

    यूएस नगर-------------6557-----------1864

    योग------------------122869--------39345

    महायोग----------162214

    सर्विस वोटर------ 97000

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