उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: टिकटों में बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को तवज्जो
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग को खास तवज्जो दी है। पार्टी ने नौ मुस्लिम व 11 सवर्णों को भी प्रत्याशी बनाया है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: पिछले एक दशक से सोशल इंजीनियरिंग को खास तवज्जो देती आ रही बहुजन समाज पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में टिकटों के बंटवारे में भी इसका खास ध्यान रखा है। हालांकि पार्टी ने 30 टिकट दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग को देकर टार्गेट इन्हें ही किया है, लेकिन नौ मुस्लिम और 11 सवर्णों को भी प्रत्याशी बनाया है।
बसपा ने शनिवार को 50 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए। हालांकि इनमें से 14 नाम पार्टी कुछ दिन पहले तय कर चुकी थी। सूबे में तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक ताकत बसपा, इस मायने में भाजपा और कांग्रेस से आगे निकल गई। क्योंकि इन दोनों पार्टियों ने अब तक अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है।
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महत्वपूर्ण बात यह कि बसपा ने अपने प्रत्याशी तय करने में समाज के अलग-अलग तबकों का पूरा ध्यान रखा है। गौरतलब है कि साल 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा का दलित-ब्राह्मण का फार्मूला हिट रहा था और तब पार्टी को सत्ता की सीढिय़ां चढऩे के लिए किसी बैसाखी की जरूरत नहीं पड़ी।
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इससे उत्साहित बसपा ने उत्तराखंड में भी वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में इस फार्मूले का इस्तेमाल किया। यह बात दीगर है कि यहां बसपा को कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई।
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उस समय बसपा ने लगभग 26 सवर्ण, आठ मुस्लिम अनुसूचित जाति के 17, पिछड़ी जाति के चार और अनुसूचित जनजाति के दो प्रत्याशी मैदान में उतारे थे।
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इसके अलावा चार प्रत्याशी पंजाबी व बंगाली समुदाय के भी शामिल थे। इस विधानसभा चुनाव के लिए घोषित बसपा के पचास प्रत्याशियों के मामले में भी पार्टी ने सूबे के सामाजिक ढांचे का ध्यान रखने की कोशिश की है।
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पचास प्रत्याशियों में से बसपा ने हालांकि अपने परंपरागत दलित वोट बैंक को ही सबसे ज्यादा अहमियत दी है। दलित, यानी अनुसूचित जाति के कुल 19 प्रत्याशी उतारे गए हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 11 प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है।
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महत्वपूर्ण बात यह कि हाथी को पहाड़ चढ़ाने की कोशिश कर रही बसपा ने पर्वतीय जिलों की सीटों पर अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों पर भरोसा कर एक तरह से अब तक के कांग्रेस वोटबैंक पर सेंधमारी की कोशिश की है। पचास की सूची में नौ मुस्लिम नाम भी शामिल हैं। इनके जरिये बसपा ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के वोटबैंक को अपने पक्ष में ध्रुवीकृत करने की रणनीति बनाई है।
सूची में 11 सवर्ण प्रत्याशी भी हैं, यानी कुल घोषित प्रत्याशियों का 22 फीसद। अलबत्ता एक बात खटक रही है कि पार्टी अध्यक्ष महिला हैं, मगर टिकट दिया केवल एक ही महिला को।
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सभी का रखा गया ध्यान
बसपा प्रदेश अध्यक्ष भृगरासन राव के मुताबिक पार्टी ने सभी जाति, धर्म व वर्गों को ध्यान में रखते हुए टिकट तय किए हैं। भाजपा और कांग्रेस ने दलितों को हमेशा वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है जबकि हमने उन्हें प्रत्याशी बनाकर प्रतिनिधित्व दिया है।
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