उत्तराखंड चुनाव: प्रत्याशियों की घोषणा करने में पहले आप-पहले आप का पैंतरा
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे की रणनीति को समझने के लिए पहले आप-पहले आप की परिपाटी पर ही चल रहे हैं।
देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: पहले आप-पहले आप में नवाब साहब की गाड़ी छूट गई थी, लेकिन राज्य में सत्ता की चाबी थामने को तैयार दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे की रणनीति को समझने के लिए पहले आप-पहले आप की परिपाटी पर ही चल रहे हैं। बात हो रही है विधानसभा चुनाव-2017 के लिए प्रत्याशियों की घोषणा और घोषणापत्र जारी करने में दोनों दलों की हिचकिचाहट की। हालांकि, दोनों ही मामलों में होमवर्क लगभग पूरा हो चुका है।
कांग्रेस को सत्ता से निकाल बाहर करने को भाजपा इस दफा तमाम प्रयास कर रही है, वहीं कांग्रेस भी सत्ता में बने रहने के लिए तमाम कोशिशों में जुटी है। दोनों दलों के बीच बात अब केवल सत्ता पाने भर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नाक की लड़ाई भी है। ऐसे में कोई भी दल छोटी सी चूक भी नहीं करना चाहता।
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यही कारण है कि राज्य की 70 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम लगभग तय होने के बाद भी इनकी घोषणा नहीं की जा रही। कोशिश है कि पहले दूसरा दल घोषणा करे ताकि उनके प्रत्याशियों के अनुसार जिताऊ प्रत्याशी उतारे जा सकें। इसी कशमकश में दोनों दल अपनी-अपनी पोटली दबाए बैठे हैं। आलम यह है कि प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की तारीख तक साफ-साफ बोलने को दल तैयार नहीं हैं।
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दोनों दलों ने ऐसी सीटों को चिह्नित किया है, जहां जीत-हार का अंतर नजदीकी रहता है। इन सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम तय तो कर लिए गए हैं, लेकिन इनमें ऐन वक्त पर बदलाव की गुंजाइश भी रखी गई है ताकि हारने की आशंका को न्यूनतम किया जा सके। इन सीटों पर प्रतिद्वंद्वी की ताकत के अनुसार प्रत्याशी उतारे जाने की रणनीति पर काम किया गया है। वहीं, कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले 10 पूर्व विधायकों पर भी नजर है कि वे किन-किन सीटों से मैदान में उतारे जाएंगे।
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इसे लेकर कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है। वहीं, इन पूर्व विधायकों की मौजूदा सीटों पर कांग्र्रेस की रणनीति पर भाजपा की नजर है। अब देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल पहले सामने आता है। राज्य में 20 जनवरी से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी और 27 जनवरी तक चलेगी। ऐसे में अभी तक प्रत्याशियों के नाम स्पष्ट नहीं होने के कारण प्रचार वार भी शुरू नहीं हो पा रही है। तमाम दावेदार अपने नामों की घोषणा के इंतजार में हैं। ऐसे में नामांकन शुरू होने से पहले प्रत्याशियों को अपनी ताकत दिखाने के लिए कितने दिन मिलेंगे, यह भी उनके लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
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कमोबेश यही स्थिति घोषणा पत्र को लेकर भी है। दोनों दल ऐसे मुद्दों को घोषणापत्र में शामिल करना चाहते हैं, जो जनता के लिए लुभावने होने के साथ ही जीत की राह आसान करने वाले हों। ऐसे में दोनों दलों को चिंता यह है कि प्रतिद्वंद्वी दल ने किन-किन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है।
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कहीं कोई अहम मुद्दा छूट न जाए। दोनों दल इस इंतजार में हैं कि पहले प्रतिद्वंद्वी का घोषणा पत्र देख लें और इसके बाद अपने घोषणापत्र को और मजबूत किया जाए। इसलिए घोषणापत्र जारी करने में भी मामला पहले आप-पहले आप का चल रहा है।
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