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'जब गर्दन पर चाकू रखा हो तो अमेरिका से कोई मोलभाव कैसे किया जा सकता है'

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वार का असर न सिर्फ चीन बल्कि भारत समेत कुछ अन्‍य देशों पर भी पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय रुपया डालर के मुकाबले काफी गिरा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 03:35 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 08:10 PM (IST)
'जब गर्दन पर चाकू रखा हो तो अमेरिका से कोई मोलभाव कैसे किया जा सकता है'
'जब गर्दन पर चाकू रखा हो तो अमेरिका से कोई मोलभाव कैसे किया जा सकता है'

नई दिल्ली (जागरण स्‍पेशल)। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेडवार का असर न सिर्फ चीन बल्कि भारत समेत कुछ अन्‍य देशों पर भी पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय रुपया डालर के मुकाबले काफी गिरा है। वहीं इसका सीधा असर चीन की मुद्रा युआन पर भी पड़ रहा है। फिलहाल इस ट्रेडवार का अंत होता दिखाई नहीं दे रहा है। यूं भी जब तक दोनों देश एक टेबल पर आकर आपसी किसी मुद्दे पर आपसकी सहमति नहीं बना पाते हैं तब तक इसका हल निकलेगा भी नहीं। चीन के डिप्‍टी नेगोशिएटर वांग शोवेन का कहना है कि किसी ऐसे देश के साथ कैसे बातचीत हो सकती है जो हमारी गर्दन पर चाकू रखे हुए हो। उन्‍होंने यह बात बीजिंग में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही है। इस दौरान उन्‍होंने चीन को अमेरिका से पीडि़त के तौर पर बताया है।

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व्‍हाइट पेपर जारी
चीन ने इस मौके पर एक 36000 चाइनीज कैरेक्‍टर में तैयार किया गया एक डॉक्‍यूमेंट भी जारी किया है, जिसको व्‍हाइट पेपर का नाम दिया गया है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका की गलत नीतियों का खामियाजा पूरे विश्‍व को उठाना पड़ रहा है। इसका असर सभी देशों की अर्थव्‍यवस्‍था पर कम या ज्‍यादा पड़ रहा है। चीन का यह भी आरोप है कि अमे‍रिका अपने दम पर मीडिया के दम पर यह झूठ फैला रहा है कि वह चीन की वजह से आर्थिक मोर्चे पर मात खा रहा है। आपको बता दें कि इन दोनों देशों के बीच काफी समय से ट्रेडवार चल रहा है। हालांकि इसके अलावा कई मुद्दों पर यह दोनों देश आमने-सामने हैं। इस बीच आपको बता दें कि आखिर ये ट्रेडवार है क्‍या।

आखिर क्‍या होता है ट्रेडवार
जब एक देश दूसरे के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहां से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को ट्रेडवार कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है जब एक देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियां अनुचित प्रतीत होती हैं या वह देश रोजगार सृजन के लिए घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने को आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाता है जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया है। ट्रंप ने इसी इरादे से चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध का शंखनाद किया है।

ट्रेडवार का मुद्राओं पर असर
जब दो देशों में व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध से भारतीय मुद्रा सहित कई अन्य एशियाई मुद्राओं के मूल्य पर असर पड़ा है। दरअसल ट्रेडवार का असर धीरे-धीरे करेंसी वार के रूप में दिखने लगा है। अमेरिका ने जब चीन से आयात को महंगा करने के लिए टैरिफ बढ़ाए तो उसके बाद चीनी मुद्रा युआन में भी गिरावट देखने को मिली है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन ने अपने निर्यात को सस्ता बनाए रखने के लिए अपनी मुद्रा को गिरने दिया है। हालांकि इसके चलते भारतीय रुपये सहित अन्य एशियाई मुद्राओं पर भी दवाब बढ़ा है और उनके मूल्य में गिरावट आई है।

एक दूसरे के खिलाफ रणनीति
ट्रेडवार में देश एक दूसरे के विरुद्ध कई प्रकार की रणनीति अपनाते हैं। मसलन, आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने, कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने और उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे टैरिफ व नॉन टैरिफ कदम उठाए जाते हैं। वैसे यहां ट्रेडवार और सैंक्शंस (प्रतिबंध) में अंतर समझना भी जरूरी है। आप खबरों में पढ़ते होंगे कि अमेरिका ने किसी देश पर प्रतिबंध लगाए। शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका ने क्यूबा, ईरान, म्यांमार और सीरिया जैसे देशों पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाए हैं। किसी अन्य देश की तुलना में अमेरिकी प्रतिबंध अधिक घातक होते हैं।

बड़ी शक्ति है अमेरिका 
इसकी वजह यह है कि अमेरिका सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक शक्ति है। दुनियाभर में पौने दो सौ से अधिक मुद्राएं हैं लेकिन सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है। भारत के कुल आयात का 86 प्रतिशत डालर में होता है जबकि भारत अपने कुल आयात का मात्र पांच प्रतिशत ही अमेरिका से करता है। इसी तरह भारत के कुल निर्यात का 86 प्रतिशत डॉलर में होता है जबकि कुल निर्यात में से मात्र 15 फीसद ही अमेरिका को जाता है। सभी देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे ज्यादा डॉलर ही रखते हैं।

प्रतिबंध का सीधा संदेश
ऐसे में जब अमेरिका किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो इसका सीधा संदेश होता है कि दूसरे देश उसके साथ कारोबार न करें क्योंकि जब वे लेन-देन करेंगे तो यह डॉलर में होगा। यह लेन-देन अमेरिकी बैंकिंग तंत्र से गुजरेगा। अमेरिका उस लेन-देन को ट्रैक कर सकता है और प्रतिबंध लगे होने की स्थिति में उस भुगतान को रोक सकता है।अमेरिका और चीन के मध्य ‘ट्रेडवार’ (व्यापार युद्ध) चल रहा है। भारत सहित अन्य देशों पर इसका असर पड़ना तय है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा भी है कि डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट के लिए जिम्मेदार कारणों में ‘व्यापार युद्ध’ भी एक है। व्यापार युद्ध क्या है? इसका क्या प्रभाव होता है? ‘’ के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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