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चीन की सीमा से महज 60 किमी दूर है पोक्‍योंग एयरपोर्ट, सामरिक दृष्टि से काफी अहम

हवाई सफर करने वाले पर्यटक अब सीधे सिक्किम के पाक्‍योंग एयरपोर्ट पर उतर सकेंगे और अपने समय का सदुपयोग कर सकेंगे। यह एयरपोर्ट सामरिक दृष्टि से भी काफी अहम है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 11:58 AM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 08:02 AM (IST)
चीन की सीमा से महज 60 किमी दूर है पोक्‍योंग एयरपोर्ट, सामरिक दृष्टि से काफी अहम
चीन की सीमा से महज 60 किमी दूर है पोक्‍योंग एयरपोर्ट, सामरिक दृष्टि से काफी अहम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। अब सिक्किम को आधिकारिक तौर पर अपना एक एयरपोर्ट मिल गया है। अब तक सिक्किम घूमने वालों की सबसे बड़ी परेशानी यही होती थी कि उन्‍हें बागडोगरा एयरपोर्ट पर आना होता था। इसके बाद बस या टेक्सी से सफर करना होता था। ट्रेन से सफर करने वाले पहले जलपाइगुड़ी पहुंचते थे फिर वहां से उन्‍हें टेक्‍सी करके यहां तक आना होता था। यह काफी लंबा होने के साथ-साथ थका देने वाला भी होता था। इसके अलावा गेंगटोक आने वाले पर्यटक बागडोगरा से हेलीकॉप्‍टर सेवा का भी इस्‍तेमाल करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। हवाई सफर करने वाले पर्यटक अब सीधे सिक्किम के पाक्‍योंग एयरपोर्ट पर उतर सकेंगे और अपने समय का सदुपयोग कर सकेंगे। यह एयरपोर्ट सिक्किम की राजधानी गेंगटोक से काफी नजदीक है। इसके अलावा यह एयरपोर्ट सामरिक दृष्टि से भी काफी अहम है। यह एयरपोर्ट विवादित क्षेत्र डोकलाम से महज 54 किमी की दूरी पर स्थित है। 

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सामरिक दृष्टि से काफी अहम है एयरपोर्ट
आपको बता दें कि 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पाक्‍योंग एयरपोर्ट भारत के सबसे ऊंचाई वाले पांच एयरपोर्ट में से एक है। यह करीब 900 एकड़ के इलाके में फैला है। इसके अलावा यह उत्तर-पूर्वी राज्‍यों में बना पहला ग्रीनफील्‍ड एयरपोर्ट भी है। इस एयरपोर्ट के बाद यहां पर पर्यटन उद्योग को काफी फायदा पहुंचने की उम्‍मीद है। इसके अलावा यह एयरपोर्ट सामरिक दृष्टि से भी काफी अहम है। इस एयरपोर्ट से चीन का बोर्डर करीब साठ किलोमीटर की दूरी पर है। इस लिहाज से यह सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्‍वपूर्ण है। यहां से जरूरत पड़ने पर जवानों को सीमा पर और तेजी से पहुंचाया जा सकेगा। इसके अलावा यह एयरपोर्ट आपात स्थिति में भारतीय वायु सेना के लिए भी काम आ सकेगा। इस एयरपोर्ट को इस लिहाज से तैयार किया गया है कि जरूरत पड़ने पर यहां पर सेना के विमान उतर सकेंगे।

सिक्‍योरिटी के भी खास इंतजाम
सामरिक महत्‍व के इस एयरपोर्ट की सिक्‍योरिटी के लिए भी यहां पर खास इंतजाम किए गए हैं। आपको यहां पर याद दिला दें कि वर्ष 2017 में भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद इस कदर गहरा गया था कि दोनों तरफ सेना का जमावड़ा हो गया था। उस वक्‍त लग रहा था कि शायद युद्ध तक छिड़ सकता है। हालांकि भारत हर तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से सजग भी था और तैयार भी था। दरअसल, इस विवाद की शुरुआत चीन की तरफ से ही हुई थी। वह यहां पर सड़क का निर्माण कर रहा था जिसको भारतीय सेना ने रोक दिया था। यदि चीन इस सड़क के निर्माण में कामयाब हो जाता है तो वह भारत के काफी करीब पहुंच सकता था। चीन भारतीय सीमा के करीब आकर सेना की गतिविधियों पर नजर रख सकता है और उसकी निगाह उत्तर-पूर्वी इलाके पर टिकी है।

2008 में मिली थी प्रोजेक्‍ट को हरी झंडी
आपको यहां पर बता दें कि वर्ष 2008 में केबिनेट कमेटी ऑन इकनॉमिक अफयर्स ने पाक्‍योंग एयरपोर्ट प्रोजेक्‍ट को हरी झंडी दी थी। इसके लिए पुंज लॉयड को 37 मिलियन डॉलर का ठेका दिया गया था। इस प्रोजेक्‍ट की वर्ष 2009 में तत्‍कालीन नागरिक विमानन मंत्री प्रफुल पटेल ने आधारशिला रखी थी। हालांकि इस प्रोजेक्‍ट को पूरा करने के लिए वर्ष 2012 का समय निर्धारित किया गया था, लेकिन स्‍थानीय लोगों के विरोध के चलते इसका काम बाधित हुआ। वर्ष 2014 तक इसका काम बाधित हुआ, जिसके बाद एयरपोर्ट ऑथरिटी ने इसमें हस्‍तक्षेप करते हुए स्‍थानीय लोगों को भरोसा दिलाया कि उनका हक उन्‍हें मिलेगा। इसके बाद ही यहां का काम दोबारा शुरू हो सका। हालांकि इसके बाद भी स्‍थानीय लोगों ने यहां का काम बाधित करने की कोशिश की थी जिसके चलते एयरपोर्ट ऑथरिटी आथ्‍र राज्‍य सरकार के बीच एक एमओयू साइन किया गया। इसमें कहा गया कि 15 अगस्‍त तक इस एयरपोर्ट से विस्‍थापित हुए लोगों को सही जगह पर बसाया जाएगा। इन सभी के बीच इस प्रोजेक्‍ट की लागत बढ़कर 43-84 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई।

इंजीनियरिंग की मिसाल
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यहां 1,700 मीटर × 30 मीटर लंबा रनवे, 116 मीटर में टेक्‍सीवे बना हुआ है। इसके अलावा यहां पर दो एटीआर और एक समय में 72 विमान खड़े हो सकते हैं। इस एयरपोर्ट की बिल्डिंग करीब 25600 वर्ग फीट में बनी है। यहां पर करीब 80 गाडि़यां एक समय में खड़ी हो सकती है। इसके अलावा फायर स्‍टेशन और एटीसी भी है। दरअसल, यह एयरपोर्ट अपने आप में इंजीनियरिंग की मिसाल भी है। जिस पहाड़ी पर यह बना हुआ है वहां पर इसका निर्माण करना काफी मुश्किल था। भूस्‍खलन यहां पर एक बड़ी समस्‍या है। लिहाजा भविष्‍य में यहां पर किसी तरह का कोई हादसा न हो इसके लिए यहां पर सभी एहतियाती उपाय करने जरूरी थे। इस काम के लिए इटली जियोटेक्निकल कंपनी की मदद ली गई।

मार्च में उतरा था एयरफोर्स का विमान
5 मार्च 2018 को पहली बार इस एयरपोर्ट पर इंडियन एयरफोर्स का डोर्नियर विमान उतरा था। इसके बाद 10 मार्च 2018 को स्‍पाइसजेट का पहला कमर्शियल विमान इस एयरपोर्ट पर उतरा था। 5 मई 2018 को इस एयरपोर्ट को कमर्शियल फ्लाइट ऑपरेशन का लाइसेंस मिला था। स्‍पाइसजेट को पाक्‍योंग ये कोलकाता उड़ान की इजाजत दी गई है। 4 अक्‍टूबर 2018 से यह सेवा शुरू हो जाएगी। इसके अलावा भूटान की ड्रक एयर भी यहां से पारो के लिए अगले वर्ष जनवरी से अपनी सेवा शुरू कर देगी। 

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