ज्यादा खुश न हो भारत, सोलिह भी मालदीव से चीन को नहीं कर सकेंगे दूर, जानें क्यों
मालदीव में नई सरकार बनने के बाद भी भारत को ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। रातोंरात वहां पर चीजें भारत के पक्ष में नहीं हो जाएंगी।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मालदीव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के नया राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत को कुछ बेहतर होने की उम्मीद दोबारा बंध गई है। इससे पहले यामीन सरकार के समय में भारत से मालदीव के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। इसकी वजह चीन का मालदीव के करीब आना और सरकार का चीन के प्रति झुकाव था। लेकिन इन सभी के बीच एक बड़ा सवाल यह भी उभर कर सामने आ रहा है कि सोलिह के पदभार ग्रहण करने के बाद भारत से संबंधों में किस तरह की गरमाहट देखने को मिलेगी और चीन को वह कितना अपने से दूर कर सकेंगे। यह सवाल इस लिहाज से भी वाजिब है क्योंकि चीन ने यामीन सरकार के दौरान वहां पर काफी निवेश किया है। लिहाजा इन सवालों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
रातोंरात नहीं बदलेंगी चीजें
इस बाबत ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि सोलिह के राष्ट्रपति बनने के बाद भी यह कहना गलत ही होगा कि रातोंरात मालदीव में सारी चीजें भारत के पक्ष में हो जाएंगी। फिलहाल ऐसा नहीं होने वाला है। लेकिन इतना जरूर है कि यामीन सरकार के दौरान जो तल्खी और दूरी दोनों देशों के बीच बन गई थी वह जरूर खत्म हो जाएगी। उनका यह भी कहना था कि यामीन सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत से दूरी बढ़ाई और मालदीव को चीन और सऊदी अरब के काफी करीब ले गए थे। नई सरकार बनने के बाद यह उम्मीद जरूर की जा सकती है कि इस नीति में अब बदलाव आएगा और भारत के रिश्ते भी पहले के मुकाबले बेहतर होंगे।
मालदीव में चीन बड़ा निवेशक
प्रोफेसर पंत के मुताबिक हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मालदीव में चीन सबसे बड़ा निवेशक है। इसके अलावा मालदीव के ऊपर चीन का काफी कर्ज है, जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। लिहाजा सोलिह चाहें भी तो भी वह चीन को अपने यहां से बेदखल नहीं कर सकेंगे। यही वजह है कि मालदीव को लेकर भारत और चीन के बीच जो खींचतान चल रही है वह आगे भी जारी ही रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरह से श्रीलंका में नई सरकार के बनने के बाद यह कहा जा रहा था कि वहां पर चीन का दखल कम हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और वहां पर श्रीलंकाई सरकार को हंबनटोटा बंदरगाह को बेचना पड़ा। यही स्थिति मालदीव के सामने भी आ सकती है। यहां पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चीन के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। मालदीव पर उसका दबाव पहले भी साफतौर पर नजर आता था और आगे भी यह दबाव काम जरूर करेगा। लिहाजा नई सरकार चीन की कंपनियों को भी अपने यहां से नहीं निकालने वाली है। लेकिन यह जरूर है कि उनकी विदेश नीति, जो अब तक चीन की तरफ थी उसमें बदलाव आ जाए।
पुराने समझौतों पर होगा दोबारा गौर
आपको यहां बता दें कि सोलिह को नया राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पूर्व राष्ट्रपति नाशिद ने उम्मीद जताई थी कि नई सरकार पुराने समझौतों पर दोबारा गौर करेगी। इस बाबत सवाल करने पर प्रोफेसर पंत का कहना था कि यह सब मुमकिन है। उनके मुताबिक मालदीव कभी भी इस तरह की बात नहीं कहेगा कि यह समझौते भारत के खिलाफ थे। वह यह जरूर कह सकता है कि यह मालदीव के दूरगामी विकास के लिए फायदेमंद समझौते नहीं थे, लिहाजा वह इन्हें रद कर दे। नई सरकार यह भी कह सकती है कि जितना मालदीव पर कर्ज है उसको देने में ही हमारी सारी कमाई चली जाएगी, लिहाजा इनमें बदलाव जरूरी है। लेकिन इसमें भी काफी बदलाव की उम्मीद करना सही नहीं होगा। उनके मुताबिक मलेशिया में भी सरकार ने पुराने समझौतों को यही कहकर रद किया था कि यह देश की लॉन्गटर्म पॉलिसी के लिए सही नहीं हैं। प्रोफेसर पंत का साफतौर पर कहना था कि यदि आर्थिक विकास को देखना है तो चीन को मालदीव न तो नाराज ही कर सकता है और न ही सिरे से खारिज कर सकता है।
सामरिक दृष्टि से काफी अहम
आपको यहां पर ये भी बता दें कि मालदीव में यामीन सरकार के बाद से चीन की दखल न सिर्फ वहां के आर्थिक ढांचे में बल्कि सामरिक क्षेत्र में भी दिखाई देती है। इतना ही नहीं बीते कुछ वर्षों में चीन की नौसेना की गतिविधियां मालदीव के करीब बढ़ी हैं। भारत ने हमेशा से ही इस पर आपत्ति जताई है। यहां पर ये भी ध्यान रखना जरूरी होगा कि मालदीव भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी मायने रखता है। यहां पर मौजूद चीन भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर करीब से निगाह रख सकता है। मालदीव में नई सरकार के बनने के बाद उम्मीद की जा रही है कि इसमें अब कमी आएगी। इस बाबत प्रोफेसर पंत का कहना था कि श्रीलंका में भी हमने देखा था कि एक समय में चीन की नौसेना की दखल काफी बढ़ गई थी, इसको लेकर भारत ने अपनी नाराजगी भी जताई थी। जिसके बाद सरकार ने इस पर रोक लगाई थी। ऐसा कुछ मालदीव में भी नई सरकार बनने के बाद देखा जा सकता है। मुमकिन है कि भारत की नाराजगी जाहिर करने के बाद मालदीव अपने यहां पर हो रही चीनी नौसेना की रेगुलर विजिट को कम कर दे और चीनी पनडुब्बियों के वहां पर आने पर रोक भी लगा दे। भारत के लिए यह कदम काफी बेहतर होंगे। सामरिक लिहाज से भी यह काफी फायदेमंद होगा कि मालदीव अपने यहां पर चीनी नौसेना की आवाजाही पर रोक लगा सके।
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