जानें कैसे मालदीव में जीत के बाद भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं 'इबू'
मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करने वाले विपक्षी नेता इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भारत के लिए फायदे का सौदा हो सकते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मालदीव के मुद्दे पर भारत को बड़ी कामयाबी मिलती दिखाई दे रही है। दरअसल, यहां पर हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी को जिस तरह से सफलता हासिल हुई है वही भारत की कामयाबी की असल वजह है। इस चुनाव में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को मिली हार यह बताती है कि स्थानीय लोगों ने न सिर्फ यामीन सरकार को खारिज कर दिया है बल्कि कहीं न कहीं भारत से दूर होते मालदीव की राजनीति को भी सिरे से खारिज कर दिया है। इस चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को जीत मिली है। चुनाव आयोग के अनुसार, सोलिह को 58.3 प्रतिशत वोट मिले हैं। सोलिह मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के प्रत्याशी थे। अब 17 नवंबर को पदभार संभालेंगे।
नाशिद के करीबी रह चुके हैं सोलिह
आपको बता दें कि मोहम्मद सोलिह पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशिद के काफी करीबी मित्र हैं। नाशिद भारत के बड़े समर्थक हैं। एमडीपी में नाशिद के अलावा सोलिह की भूमिका काफी बड़ी है। सोलिह पहली बार 1994 में तीस वर्ष की उम्र में संसद के लिए चुने गए थे। उन्होंने ही मालदीव में राजनीति में सुधार की प्रक्रिया की शुरुआत भी की थी। उनकी वजह से ही देश में मॉडर्न कंस्टीट्यूशन लागू हो सका जिसके बाद देश में एक से अधिक पार्टियों की स्थिति साफ हुई। वर्ष 2017 में उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी।
यामीन ने की हार स्वीकार
चुनाव परिणाम सामने आने के बाद यामीन ने अपनी हार स्वीकार करते हुए सोलिह को जीत की बधाई भी दी है। मोहम्मद सोलिह मालदीव में इबू के नाम से प्रचलित हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि उन्हें यामीन के मुकाबले 38 हजार से अधिक मत मिले हैं। आयोग ने चुनाव में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी होने या इस तरह की शिकायत न मिलने की भी पुष्टि की है। मालदीव के कानून के मुताबिक आयोग को चुनाव संपन्न होने के सात दिनों के अंदर आधिकारिक परिणाम घोषित करने होंगे। यह परिणाम बैलेट बॉक्स के चुनाव आयोग के मुख्यालय में आने और विदेशों में डाले गए मतों के मिलने के बाद घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में करीब 262,000 वोटर थे। करीब 472 मतपेटियों का इस्तेमाल इस चुनाव में किया गया जिसमें से चार का इस्तेमाल अन्य देशों में किया गया था।
यामीन और मालदीव
मालदीव में होने वाले चुनाव पर भारत की करीबी नजर थी। इसकी वजह थी कि यहां पर हार का स्वाद चखने वाले यामीन चीन के काफी करीब थे। चीन के मोह में आकर उन्होंने भारत को दरकिनार तक कर दिया था। यहां तक की वह भारत के उन एहसानों को भी भूल गए जो मालदीव पर किए गए थे। चुनाव से पहले ही उन्होंने कई नेताओं को या तो जेल में डाल दिया था या फिर उन्हें निर्वासित कर दिया था। यामीन का यह रूप पहले भी कई बार देखने को मिला है। यामीन ने ही देश में आपातकाल तक लागू किया था और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन तक किया था।
राजदूतों से दुर्व्यवहार
यामीन की सरकार के दौरान मालदीव और चीन इतने करीब आ गए थे कि उन्होंने चीन को अपने यहां एयरपोर्ट और बंदरगाह निर्माण, सड़क निर्माण और पुल निर्माण तक की इजाजत दे दी थी। इतना ही नहीं यहां पर चीन की मदद से बने पुल के निर्माण के बाद इसके उदघाटन के मौके पर अन्य देशों के राजदूतों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। उदघाटन स्थल तक केवल चीनी राजदूत की गाड़ी को जाने की इजाजत दी गई और दूसरे राजदूतों को स्थल तक पैदल जाने के लिए कहा गया। इस वजह से कई देशों के राजदूतों ने इस समारोह का बहिष्कार तक किया था। यह पुल मालदीव की राजधानी माले को एयरपोर्ट आईलैंड से जोड़ता है।
भूल गया भारत की मदद
यामीन सरकार के राज में ही भारतीयों को वहां पर नौकरी करने तक की इजाजत न देने का मामला भी सामने आया था। जो लोग मालदीव में जॉब कर रहे थे और स्वदेश आए हुए थे उन्हें यामीन सरकार के कहने पर वीजा तक नहीं दिया जा रहा था। इसका भारत ने विरोध जताया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि मालदीव में वर्ष 2014 में पानी का संकट आया था तब भारत ही था जिसने सबसे पहले उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया था और उस वक्त भारत सरकार ने हजारों लीटर पानी मालदीव को मुहैया करवाया था। मालदीव में उस वक्त आए इस संकट की वजह वहां के वाटर प्लांट में लगी भयंकर आग थी जिसकी वजह देश की राजधानी भी प्यासी हो गई थी। मालदीव आज वर्ष 1988 के उस वाकये को भी भूल चुका है जब भारत ने ही उसपर कब्जा होने से बचाया था। इसके लिए चलाए गए ‘आपरेशन कैक्टस’ को अभी तक विदेशी धरती पर भारत का सबसे सफल ऑपरेशन माना जाता है। इसके अलावा भारत का वहां के विकास कार्यों में काफी योगदान रहा है।
सामरिक दृष्टि से काफी अहम
आपको यहां पर बता दें कि हिंद महासागर में स्थित यह देश सामरिक दृष्टि से काफी अहम है। यामीन सरकार के बाद से ही दोनों देशों के बीच में काफी तनाव की स्थिति बन गई थी। चीन की यहां पर मौजूदगी से भारत को समस्या थी। चीन यहां से भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रख सकता है। वहीं दूसरी तरफ चीन भारत को घेरने के लिए जिस तरह से ऋण देकर और विकास के सपने दिखाकर भारत के पड़ोसियों को अपनी तरफ मिला रहा है वह भी काफी चिंताजनक है।
भारत-मालदीव संबंध
1965 में आजादी के बाद भारत मालदीव को मान्यता देने वाले देशों में शामिल था। इसके बाद भारत ने अपने संबंधों में प्रगाढ़ता लाते हुए वर्ष 1972 में राजधानी माले में अपना दूतावास भी स्थापित किया था। मालदीव में करीब 30 हजार भारतीय रहते हैं। मालदीव के एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित होने के बाद से ही भारत का यहां प्रभाव रहा है। मगर हालिया समय में यहां तस्वीर बदली है और चीन का दखल बढ़ा है। चीन पहले ही श्रीलंका, पाकिस्तान (ग्वादर) और ईरान में अपनी पैठ बना रहा है। ऐसे में सामरिक दृष्टि से महत्वूपर्ण 1200 द्वीपों वाले इस देश में भी चीन के दखल ने भारत की चिंता बढ़ा दी थी।
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