उत्तराखंड में खतरे की जद में आई 15 वानस्पतिक प्रजातियां संरक्षित
जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में बदली परिस्थितियों की मार यहां की तमाम वानस्पतिक प्रजातियों पर भी पड़ी है। अच्छी खबर ये है कि 16 प्रजातियों में से 15 को वन विभाग की रिसर्च विंग ने प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर नर्सरियों में सहेजने में सफलता पाई है।
विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में पुष्पीय वनस्पतियों (आवृत्तजीवी) की लगभग 4700 प्रजातियां विद्यमान हैं। यही नहीं, प्रदेश के वन प्रभागोंं की वन प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं में 920 प्रजातियों को शामिल किया गया है। जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार माने जाने वाले राज्य के वन क्षेत्रों में अनेक औषधीय महत्व की वनस्पतियां हैं और इनका यही गुण इनके लिए खतरे की वजह बन गया है। औषधीय वनस्पयितों के अनियंत्रित दोहन के कारण इनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। इस सबको देखते हुए उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने प्रदेशभर में 16 वानस्पतिक प्रजातियों को संकटापन्न श्रेणी में अधिसूचित किया है। इनमें मीठा विष, अतीस, दूध अतीस, इरमोसटेचिस (वन मूली), कड़वी, इंडोपैप्टाडीनिया (हाथीपांव), पटवा, जटामासी, पिंगुइक्यूला (बटरवर्ट), थाकल, टर्पेनिया, श्रेबेरा (वन पलास), साइथिया, फैयस, पेक्टीलिस व डिप्लोमेरिस (स्नो आॢकड)।
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इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए वन विभाग की अनुसंधान वृत्त ने बीड़ा उठाया। मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के अनुसार इन प्रजातियों में से 15 को हल्द्वानी, मंडल, सेडियाताल, मुनस्यारी, माणा, ज्योलीकोट, देववन, लालकुआं क्षेत्रों में स्थित नर्सरियों में संरक्षित किया गया। इसके बेहतर नतीजे आए हैं। उन्होंने बताया कि इन वनस्पतियों के संरक्षण-संवद्र्धन को रफ्तार देने के लिए इन्हें वन प्रभागों के जैव विविधता संरक्षण कार्यवृत्त में शामिल कराने की तैयारी है।
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