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पानी की किल्लत से जूझ रहा गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड, यहां परवान नहीं चढ़ी वर्षा जल संरक्षण योजना

सदानीरा यानी गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड पानी की किल्लत से जूझ रहा है। इसे दूर करने के लिए प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं बनाईं। इनमें वर्षा जल संरक्षण की योजना भी शामिल है लेकिन अब तक वो परवान नहीं चढ़ पाई।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 16 Jul 2021 01:32 PM (IST)Updated: Fri, 16 Jul 2021 05:31 PM (IST)
पानी की किल्लत से जूझ रहा गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड, यहां परवान नहीं चढ़ी वर्षा जल संरक्षण योजना
पानी की किल्लत से जूझ रहा गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड।

विकास गुसाईं, देहरादून। सदानीरा, यानी गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड पानी की किल्लत से जूझ रहा है। इसे दूर करने के लिए प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं बनाईं। इनमें वर्षा जल संरक्षण की योजना भी शामिल है। तय किया गया कि प्रदेश के सभी सरकारी और अर्द्धसरकारी भवनों में पेयजल संरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए शुरुआत में कुछ कदम भी उठाए गए। जल संरक्षण के लिए टैंक बनाए गए, लेकिन इनके इस्तेमाल की कोई योजना नहीं बनाई गई। नतीजतन, पानी खराब होने लगा। इससे बीमारी का खतरा बढऩे लगा। ऐसे में इन टैंकों को बंद कर दिया गया। अब बरसात का पानी एक बार फिर छतों में लगे पाइप से बहकर बाहर निकल रहा है। अपने व्यक्तिगत प्रयासों से कई किसान जरूर वर्षो जल संरक्षण कर अपने खेतों को फिर से हरा-भरा बना रहे हैं। इससे सरकारी सिस्टम की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, जो लाजिमी भी हैं।

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फाइलों में गुम अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश

प्रदेश सरकार ने कार्यशैली में सुधार व पारदर्शिता के लिए सख्त कदम उठाने का फैसला किया। कहा गया कि भ्रष्ट, नाकारा व लापरवाह कर्मचारियों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित कर तत्काल अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। इससे व्यवस्था के पटरी पर आने की उम्मीद जगी। लगा अब भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी नहीं बख्शे जाएंगे। प्रदेश में सुशासन का दौर शुरू हो जाएगा। सरकार के निर्देश पर शासन ने सभी विभागाध्यक्षों को फरमान जारी किया। कहा कि ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित कर सूची बनाकर शासन को उपलब्ध कराई जाए। इससे विभागों में हड़कंप मचा, प्रक्रिया भी शुरू की गई। भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़ी पुरानी पत्रावलियां खंगाली गई। सूची बनी मगर नाम शासन तक नहीं पहुंचे। शासन ने रिमाइंडर भेजे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद शासन ने भी अब तक विभागों से इस मामले में कोई सूचना लेने की जहमत नहीं उठाई है।

नए राजस्व ग्रामों को अभी और इंतजार

प्रदेश की प्रशासनिक इकाई का सबसे अहम अंग है राजस्व ग्राम। यहां के निवासियों को ही ध्यान में रखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाएं बनती हैं। योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक पात्र व्यक्तियों तक पहुंचे, इसके लिए प्रदेश सरकार ने नए राजस्व ग्राम गठित करने का निर्णय लिया। कहा गया कि इससे क्षेत्र का भी विकास होगा और ग्रामीण भी आर्थिक रूप से सशक्त होंगे। वर्ष 2014 में कवायद शुरू हुई, लेकिन पांच साल में केवल 39 राजस्व ग्राम ही बन पाए। संख्या बढ़ाने के लिए 24 नए राजस्व ग्रामों के गठन की बात हुई। इनके चिह्नीकरण के लिए जिला व तहसील स्तर पर समितियों का गठन किया गया। इनका चयन कर सूची केंद्र को भेजने के लिए पत्राचार शुरू हुआ तो पता चला कि पुरानी जनगणना पर राजस्व ग्रामों का गठन हो चुका है। नई जनगणना के बाद ही नए राजस्व ग्रामों का गठन किया जाएगा।

सिरे ये बिसरा दी गई डीबीटी योजना

तंगी से जूझ रहे परिवहन निगम की आर्थिकी संवारने को कई योजनाएं बनीं। इनमें एक योजना डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर है। जब इस योजना का खाका खींचा गया तो कहा गया कि निगम की बसों में शुरुआत में मुफ्त यात्रा न करने दी जाए। यानी मुफ्त यात्रा के पात्र हितधारक मसलन सांसद, विधायक, बुजुर्ग, विद्यार्थी व मीडिया कर्मियों से बसों में सफर करते समय किराया नगद लिया जाए। जिन्हें मुफ्त यात्रा की सुविधा हैं, उन्हें बिल प्रस्तुत करने पर संबंधित विभागों के माध्यम से भुगतान सीधे खाते में करा दिया जाएगा। फायदा यह होगा कि इससे निगम को तुरंत राशि मिल जाएगी और पात्र व्यक्तियों को योजना का लाभ मिलता रहेगा। योजना को कैबिनेट में लाया गया मगर इस पर मंत्रियों ने सहमति नहीं दी। कहा गया कि इससे हितधारक परेशान होंगे। अब स्थिति यह है कि निगम को अपने पैसों के लिए सरकार के सामने बार-बार गुहार लगानी पड़ती है।

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