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    नवरात्र पर देव‍ियों के पूजन का अनोखा महत्‍व, पर्व का वैज्ञान‍िक पक्ष आपको चौंका देगा

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 04:16 PM (IST)

    वाराणसी संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा के अनुसार नवरात्र एक पवित्र पर्व है जो धार्मिक सांस्कृतिक वैज्ञानिक और पर्यावरणीय चेतना का संगम है। यह पर्व शक्ति साहस और ज्ञान का प्रतीक है जो लोगों को सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरित करता है। व्रत और उपवास शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं।

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    यह पर्व हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जागरूक करता है, और सामाजिक एकता का संदेश देता है।

    मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी : नवरात्र एक पवित्र और महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो देवी दुर्गा की आराधना और उपासना का समय है। यह पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि इसमें विज्ञान और पर्यावरणीय चेतना के तत्व भी समाहित हैं।

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    नवरात्र के दौरान, लोग देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं, जो शक्ति, साहस और ज्ञान का प्रतीक हैं। यह पर्व श्रद्धा और आध्यात्मिकता का समय है, जो लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करता है। यह कहना है संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा का। वे नवरात्र पर्व पर सामाजिक एकता, राष्ट्रीयता और शुद्ध पर्यावरण के संगम पर विचार व्यक्त किए।

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    प्रो. शर्मा बताते हैं कि नवरात्र के दौरान, लोग देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं, जो शक्ति, साहस और ज्ञान का प्रतीक हैं। यह पर्व श्रद्धा और आध्यात्मिकता का समय है, जो लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करता है। नवरात्र के दौरान व्रत और उपवास का पालन करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ होता है। यह विज्ञान और स्वास्थ्य का संगम है, जो लोगों को अपने जीवन में स्वस्थ और सकारात्मक आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करता है। नवरात्र के दौरान, लोग प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अनुभव करते हैं। यह पर्व पर्यावरणीय चेतना का समय है, जो लोगों को अपने पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रेरित करता है।

    निष्कर्ष

    नवरात्रपर्व: श्रद्धा, विज्ञान और पर्यावरणीय चेतना का संगम है।

    नवरात्र की संकल्पना : धर्म और जीवन का महोत्सव।

    भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में नवरात्र केवल उपासना का अवसर नहीं, बल्कि जीवन के हर आयाम का पुनर्मूल्यांकन और पुनर्नियोजन करने का पर्व है। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक का यह उत्सव शारदीय नवरात्र कहलाता है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नवस्वरूपों की आराधना आत्म-शुद्धि, मनोबल और सामूहिक एकता का प्रतीक है।

    “शक्ति का आवाहन बाहर की देवी से नहीं, बल्कि भीतर सुप्त चेतना से है।” इसी चेतना के जागरण के माध्यम से व्यक्ति अज्ञान, भय और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय पाता है। नवरात्र के नौ दिवस केवल उपासना-समय नहीं; वे मनुष्य के आन्तरिक, बाह्य,सामाजिक और सांस्कृतिक-जीवन के नौ आयामों का व्यवस्थित उद्बोधन हैं। प्रत्येक दिव्य स्वरूप में निहित गुणों का प्रकाश न केवल आस्था को प्रबल करता है, वरन् व्यवहार, स्वास्थ्य और सामूहिकता के स्तर पर ठोस अर्थ भी रखता है।

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    शैलपुत्री: स्थिरता, धैर्य और मूलाधार :

    आध्यात्मिक: शैलपुत्री पर्वत-स्वरूप हैं; उनका आह्वान आन्तरिक स्थिरता, आत्मबल और धैर्य को करता है। साधना में उनकी उपासना जीवन के स्थायी मूल्यों सादगी, संयम और निरन्तरता की ओर प्रेरित करती है।

    सामाजिक: परिवार, समुदाय और संस्थाओं की नींव धैर्य व संतुलन पर टिकी होती है; शैलपुत्री का संदेश सामाजिक सहनशीलता और दीर्घकालिक सोच के लिए प्रेरित करता है।

    वैज्ञानिक: मनोविज्ञान में स्थिरता (psychological stability) को तनाव-प्रतिरोधक क्षमता से जोड़ा जाता है; नींव-स्थिरता पर्वत—मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक आधार है। नियमित दिनचर्या और व्यवहारिक अनुशासन तब सतत मानसिक शान्ति का आधार बनते हैं।

    ब्रह्मचारिणी: संयम, तप और आत्म-अनुशासन

    आध्यात्मिक: ब्रह्मचारिणी का अध्यात्मिक चिन्ह तप, संयम और संकल्प है; वह वरण करती हैं ‘त्याग से मिली आत्म-ऊर्जा’ का मार्ग। साधना में उनका स्मरण आत्म-नियमन और इच्छाओं के प्रशमन का पाठ पढ़ाता है।

    सामाजिक: एक संयमित समाज वह होता है जहाँ नियमों का पालन, नैतिक शिक्षा और स्वयं पर नियंत्रण सुदृढ़ हों यह ब्रह्मचारिणी का सामाजिक उपदेश है।

    वैज्ञानिक: अनुवर्तमान अनुसंधान यह दर्शाते हैं कि संयमित जीवनशैली नियमत: निद्रा, संतुलित आहार और व्यायाम स्नायु-तंत्र तथा हॉर्मोनल संतुलन को व्यवस्थित करते हैं; इस प्रकार समग्र स्वास्थ्य और दीर्घायु पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

    चन्द्रघण्टा:सन्तुलन, धैर्य और निर्भीकता

    आध्यात्मिक: चन्द्रघण्टा का स्वरूप मन में शान्ति और निर्भीकता का सम्मिलन कराता है; वह भय का निवारण कर आत्म-विश्वास का संवर्धन करती हैं।

    सामाजिक: समाज में सन्तुलन का रक्षक होना असमानताओं के विरुद्ध संतुलित दृष्टिकोण रखना चन्द्रघण्टा का संदेश है; सामाजिक बहसों में धैर्य और विवेक के साथ निर्णय लेना इसी भावना का विस्तार है।

    वैज्ञानिक: चन्द्र-तत्त्व (चन्द्रमा) से जुड़ी लयबद्धता और घंटानाद का मानसिक प्रभाव ध्वनि-थेरेपी व न्यूरोसाइंस के संदर्भ में सुस्पष्ट है: लय और आवृत्ति मस्तिष्क तरंगों को प्रभावित करके एकाग्रता और मनोदशा पर प्रभाव डालती हैं।

    कुष्माण्डा: सृजनात्मक ऊर्जा और नवोत्थान

    आध्यात्मिक: कुष्माण्डा सृजन-शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं; उनका स्मरण रचनात्मकता, उत्साह और नवीनता के उद्गार को जागृत करता है।

    सामाजिक: शिक्षा, कला, विज्ञान और उद्योग में नई पहल की प्रेरणा यही स्वरूप समाज को देता है सामूहिक प्रयासों में नवाचार की भूमिका को बल मिलता है।

    वैज्ञानिक: सृजनात्मकता का जैविक पक्ष मस्तिष्क के नेटवर्क विशेषकर सृजनात्मक सोच से जुड़ी सेकण्डरी नेटवर्क से जुड़ा है; प्रेरणा और आदर्शीक उद्देश्य ऊर्जा-प्रेरित व्यवहारों को प्रोत्साहित करते हैं जो नवप्रवर्तन को बल देते हैं।

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    स्कन्दमाता- मातृत्व, संरक्षण और करुणा

    आध्यात्मिक: स्कन्दमाता मातृत्व, ममता और संरक्षण की मूर्ति हैं; उनकी उपासना करुणा और अनुकरणीय दायित्व-बोध को जागृत करती है।

    सामाजिक: बाल-सुरक्षा, महिला-सशक्तिकरण और पारिवारिक सुरक्षा के विचार स्कन्दमाता के आदर्श से गहरे जुड़े हैं; समाज तभी स्वस्थ होगा जब मातृ-आश्रय, पोषण और संरक्षण सुनिश्चित हों।

    वैज्ञानिक: मातृत्व-संबंधी जैविक प्रक्रियाएँ जैसे प्रसवोत्तर हार्मोनल परिवर्तन और ऑक्सीटोसिन का प्रभाव माँ-बच्चे के बंधन तथा सामाजिक सहानुभूति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं; मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता पर इनका मापक प्रभाव होता है

    कात्यायनी:धर्म-रक्षण, न्याय और सक्रियता

    आध्यात्मिक: कात्यायनी ऐसी शक्ति हैं जो अन्याय के विरुद्ध उठने और धर्म की रक्षा करने का साहस प्रदान करती हैं; उनका अनुरोध कर्मनिष्ठा और सत्यपरायणता है।

    सामाजिक: नारी-शक्ति का संवर्धन, न्याय-निष्ठा और सामाजिक कर्तव्यपालन कात्यायनी की शिक्षा है; सामाजिक संस्थाओं में उत्तरदायित्व की भावना विकसित करने का यह आदर्श है।

    वैज्ञानिक: सामाजिक न्याय और संस्थागत अनुशासन के अध्ययन (sociology, behavioural economics) यह संकेत करते हैं कि न्याय सुनिश्चित करने वाले तंत्र—कानून, शिक्षा, समान अवसर—सामाजिक स्वास्थ्य और आर्थिक उन्नति के लिए अनिवार्य हैं।

    कालरात्रि: अन्धकार का नाश और भयमुक्ति

    आध्यात्मिक: कालरात्रि अन्धकार का संहारक स्वरूप है; उनकी उपासना भय का पराभव कर आत्मिक निर्भीकता का आविर्भाव कराती है।

    सामाजिक: अज्ञान, अन्धविश्वास और हिंसा के विरुद्ध खड़े होना सामाजिक दायित्व है; कालरात्रि का संदेश सामाजिक चेतना और सत्य की रक्षा का आह्वान है।

    वैज्ञानिक: प्रकाश-आधारित उपचार (phototherapy) तथा अंधकार के घटने से दैनिक चक्र (circadian rhythm) पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है; उजाले का अस्तित्व मानसिक संतुलन, उत्साह और गतिविधि स्तर से जुड़ा हुआ है।

    महागौरी: पवित्रता, शुचिता और शान्तिवृत्ति

    आध्यात्मिक: महागौरी शुद्धता और शान्ति की प्रतिक हैं; साधना में उनका स्मरण अंतर्निहित शांति तथा नैतिक शुद्धि का संवर्धन करता है।

    सामाजिक: सामाजिक शुचिता नैतिक व भौतिक दोनों समाज के कल्याण की आधारशिला है; महागौरी का आह्वान सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामूहिक नैतिकता की ओर संकेत करता है।

    वैज्ञानिक: स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य का विज्ञान (epidemiology, public health) स्पष्ट करता है कि स्वच्छ वातावरण और स्वच्छ आचरण रोग-प्रसार घटाने में निर्णायक हैं; यह पारंपरिक आदर्श और आधुनिक विज्ञान का अभिन्न संगम है।

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    सिद्धिदात्री: सिद्धि, पूर्णता और आत्म-साक्षात्कार :

    आध्यात्मिक: सिद्धिदात्री साधना के फल सिद्धि, आत्म-ज्ञान और समतुल्य-ज्ञान की प्रदात्री हैं; उनका स्मरण साधक को लक्ष्य-साधना और आत्म-परिपूर्णता की ओर निर्देशित करता है।

    सामाजिक: समाज तभी सिद्धि की स्थिति में पहुंचता है जब शिक्षा, विज्ञान, कला और धर्म के मध्य संतुलन बना रहे; सामूहिक उन्नति उसी ‘सिद्धि’ का रूप है।

    वैज्ञानिक: वैज्ञानिक अन्वेषण और नव-उपलब्धियों की यात्रा भी ‘सिद्धि’ की ओर अग्रसर होती है; परिश्रम, अन्वेषण और सत्य पर आधारित प्रयासों से ही समाज सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करता है।

    समेकित सन्देश:नवरात्र का व्यवहारिक पाठ नवरात्र की नवदुर्गा न केवल प्रतिदिन के व्रत और पूजन का विधान हैं, बल्कि वे मनुष्य और समाज को एक सुव्यवस्थित जीवन-शैली, नैतिकता, और वैज्ञानिक-समर्थित व्यवहार का पाठ पढ़ाती हैं। आध्यात्मिक जागरण, सामाजिक दायित्व और वैज्ञानिक विवेक इन तीनों के समन्वय से ही नवरात्र का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है।

    व्यवहारिक सुझाव : चिकित्सकीय स्थिति के अनुसार उपवास का विकल्प चुनें; सामूहिक आयोजन में सुरक्षा, स्वच्छता एवं पर्यावरण-सम्मत सामग्री का प्रयोग सुनिश्चित करें; भजन-कीर्तन व साधना में ध्वनि-संतुलन और स्वास्थ्य-प्रोटोकॉल का ध्यान रखें; और अन्ततः नवरात्र के गुणों को दिनचर्या में आत्मसात् कर, न केवल नौ दिन, किन्तु सम्पूर्ण जीवन में संयम, करुणा और निष्ठा का संचय करें।

    निष्कर्ष: नवदुर्गा का यह विवेचन हमें स्मरण कराता है कि शक्ति केवल पूज्य आदर्श नहीं यह हमारी चेतना, हमारे व्यवहार और हमारे सामाजिक तन्त्र का सक्रिय स्त्रोत है। जब यह शक्ति ज्ञान, सहिष्णुता और वैज्ञानिक विवेक के साथ संयोजित होगी, तभी वह पारम्परिक आस्था को आधुनिक जीवन-निर्वाह की प्रासंगिकता से जोड़कर एक सार्थक संगम बना देगी।

    आध्यात्मिक महत्त्व : साधना और आत्मोन्नति का पथ

    नवरात्र साधना का अर्थ है :

    -इन्द्रियों पर संयम,

    -मन पर नियन्त्रण,

    - और आत्मा की शुद्धि।

    जप, ध्यान और व्रत से व्यक्ति की चेतना धीरे-धीरे शुद्ध और परिष्कृत होती है। आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि ध्यान और अनुशासन तनाव घटाकर आत्म-विश्वास बढ़ाते हैं। “नवरात्र साधक के लिए आन्तरिक ऊर्जा के जागरण का मार्ग है, जो उसे केवल धार्मिक नहीं बल्कि मानसिक और नैतिक रूप से भी दृढ़ बनाता है।”

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    आधिदैविक परिप्रेक्ष्य : ऋतु और प्रकृति का सन्तुलन

    आश्विन मास ऋतु-परिवर्तन का समय है। वर्षा ऋतु का अवसान और शरद का प्रारम्भ प्रकृति में विशेष परिवर्तन लाता है। यह समय दैवी कृपा और प्राकृतिक सन्तुलन के लिए अनुकूल माना गया है।

    • हवन-यज्ञ से वायुमण्डल शुद्ध होता है।

    • दीप-प्रज्वलन अन्धकार के नाश और ज्ञान के उदय का प्रतीक है।

    • मन्त्रोच्चारण से ध्वनि-तरंगें वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाती हैं।

    आधिभौतिक महत्त्व : स्वास्थ्य और जीवन-शैली

    नवरात्र में व्रत, उपवास और फलाहार का विशेष महत्व है।

    • फल, दूध और सात्त्विक आहार शरीर को हल्का और ऊर्जावान बनाते हैं।

    • व्रत के कारण पाचन-तन्त्र को विश्राम मिलता है और रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

    • नियन्त्रित दिनचर्या और पर्याप्त विश्राम शरीर को सन्तुलित रखता है।

    चिकित्सक भी मानते हैं कि संयमित उपवास और सात्त्विक जीवन-शैली शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

    सांस्कृतिक आयाम : सामूहिकता और लोककला का उत्सव

    नवरात्र केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि सामूहिक उत्सव भी है।

    • गाँव-गाँव और नगर-नगर में पंडाल सजते हैं।

    • भजन-कीर्तन, दुर्गा सप्तशती का पाठ और रामलीला जैसी प्रस्तुतियाँ लोककला का पुनर्जीवन करती हैं।

    • गरबा और डांडिया जैसे नृत्य आयोजन सामूहिक उल्लास और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम हैं।

    “नवरात्र भारतीय समाज की सामूहिक स्मृति को जीवित रखता है और कला को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित करता है।”

    सामाजिक प्रभाव : समानता, दान और नारी-सम्मान

    नवरात्र सामाजिक स्तर पर समानता और सहअस्तित्व का संदेश देता है।

    • कन्या-पूजन बालिका-शक्ति के सम्मान का प्रतीक है।

    • अन्नदान और सेवा कार्य समाज में सहयोग की भावना को सुदृढ़ करते हैं।

    • सभी वर्गों का एक साथ भाग लेना सामाजिक समरसता का प्रमाण है।

    इस प्रकार नवरात्र समाज में सहिष्णुता, दायित्व और परस्पर सम्मान की भावना को पुष्ट करता है।

    वैज्ञानिक विवेचन : नवरात्र के वैज्ञानिक आधार

    1. मानसिक स्वास्थ्य *– सामूहिक अनुशासन और भजन-कीर्तन मानसिक तनाव को कम करते हैं।

    2. ध्वनि और मन्त्र – अनुसंधान बताते हैं कि लयबद्ध ध्वनियाँ मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित कर एकाग्रता बढ़ाती हैं।

    3. आहार-विहार – नियन्त्रित उपवास और सात्त्विक भोजन पाचन-क्रिया को नियंत्रित करते हैं।

    4. पर्यावरण संरक्षण – बायोडिग्रेडेबल मूर्तियों और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग प्रदूषण घटाता है।

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    व्यावहारिक सुझाव : सुरक्षित और संतुलित आयोजन हेतु

    • उपवास शुरू करने से पहले चिकित्सकीय परामर्श लें।

    • पण्डालों में अग्नि-सुरक्षा और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था अनिवार्य हो।

    • मूर्तियों का निर्माण मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से करें।

    • विसर्जन से पूर्व जल-शुद्धिकरण की व्यवस्था हो।

    • सामूहिक आयोजनों में स्वच्छता और स्वास्थ्य-प्रोटोकॉल का पालन करें।

    निष्कर्ष : नवरात्र की सार्थकता

    आश्विन नवरात्र केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना, सामाजिक एकता, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और वैज्ञानिक अनुशासन का विराट संगम है।

    यह पर्व हमें सिखाता है कि:

    • भक्ति केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण है।

    • शक्ति केवल देवी का रूप नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के भीतर निहित चेतना है।

    • उत्सव केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के साथ संतुलन साधने का माध्यम है।

    “यदि नवरात्र की परम्पराओं को श्रद्धा, विज्ञान और पर्यावरणीय चेतना के साथ संयोजित किया जाए, तो यह पर्व आधुनिक जीवन और भारतीय संस्कृति के बीच सेतु बनकर स्थायी प्रेरणा देता रहेगा।”

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