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    शाही क्रूज की सवारी कर चुनार पहुंचे सैलानियों ने सुनी चुनार की ऐतिहासिक दास्तान

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 05:13 PM (IST)

    मीरजापुर ज‍िले में शन‍िवार को चुनार दुर्ग में विदेशी मेहमानों ने इन्क्रीडिबल जस्ट वाव कहा। शाही क्रूज से चुनार पहुंचे सैलानियों ने चुनार के ऐतिहासिक किले का दौरा किया और यहाँ की संस्कृति और आध्यात्मिक शांति का अनुभव किया। गाइड ने हर पत्थर दीवार और कलाकृति के पीछे की कहानी बताई।

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    सैलानियों ने दरी बुनकरों से मिलकर भारतीय शिल्प की आत्मा को महसूस किया।

    जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर)। चुनार तट पर जब राजमहल क्रूज आकर थमा, तो गंगा की लहरों की गोद से उतरकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन से आए 18 विदेशी मेहमान योगीराज भर्तृहरि की तपोभूमि पर कदम रखते ही चुनार के इतिहास और तिलिस्मी धरोहर को निहारने के लिए उत्साहित दिखे।

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    क्रूज से मोटरबोट पर उतरते ही, इन विदेशी मेहमानों की उत्सुक आँखें एक अनछुए इतिहास की तलाश में थीं। उनके चेहरों पर एक अनकही चमक थी, मानो कोई दशकों पुराना वादा पूरा होने वाला हो। उनकी इस यात्रा का पहला पड़ाव था, चुनार का गौरवशाली किला। जिसे देखने के बाद सैलानियों ने मुंह से निकला जस्ट वाव...।

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    चुनार दुर्ग समेत यह छोटा सा शहर सदैव हमारी यादों में हमेशा ताज़ा रहेगा। दुभाषिये व गाइड अखिलेश कुमार और शुभांकर सेन गुप्त ने हर कदम पर इस यात्रा को और भी रोचक बना दिया। उन्होंने सिर्फ़ अनुवादक की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि वे अतीत के किस्सों को वर्तमान से जोड़ने वाले सेतु बन गए। उन्होंने हर पत्थर, हर दीवार और हर कलाकृति के पीछे छिपी कहानी को विदेशी सैलानियों के सामने जीवंत कर दिया। ऊंची प्राचीरों और पत्थरों पर उकेरी गई कहानियों ने उन्हें समय के पहियों में पीछे धकेल दिया।

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    रानी सोनवा मंडप की बारीक नक्काशी ने शिल्प का जादू बिखेरा, जबकि योगीराज भर्तृहरि नाथ की समाधि पर आध्यात्मिक शांति उनके चेहरों पर सुकून देती नजर आई। पास ही मौजूद बावली ने जैसे फुसफुसाकर किले के अनसुलझे रहस्यों को सुनाया। ब्रिटिश दौर के कब्रिस्तान में अपने पूर्वजों की यादों से टकराकर कुछ यात्रियों की आँखें नम हो गईं।

    इसके बाद, बाबा हज़रत कासिम सुलेमानी की दरगाह पर हरियाली के बीच, एक गहरी शांति महसूस हुई। वहां से दरी बुनकरों की बस्ती तक पहुंचे सैलानियों को हथकरघों की थाप और रंगीन धागों ने मंत्रमुग्ध कर दिया। मिट्टी की सौंधी खुशबू में रचे चुनार के मूर्ति उद्योग में भारतीय शिल्प की आत्मा को करीब से देखा। लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं को देखते हुए एक विदेशी यात्री ने कहा, यह सिर्फ मिट्टी नहीं, यह भारतीय संस्कृति का जीवंत रूप है। हर पड़ाव पर कैमरे क्लिक होते रहे और गाइड इतिहास और परंपरा की परतें खोलते रहे।

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    दो दिन पहले चुनार आया एक विदेशी पर्यटकों का दल बावली और डाक बंगला परिसर देखने से वंचित रह गया था। जिससे वह निराश भी दिखाई दिए थे। विदेशी सैलानियों की इस निराशा को दैनिक जागरण ने अपनी खबर में प्रकाशित किया था। जिसका संज्ञान लेते हुए चुनार फोर्ट प्रा.लि. के प्रबंधक प्रवीण कुमार सिंह ने शनिवार को इन मेहमानों को पूरे आदर के साथ दुर्ग का भ्रमण कराया।

    क्या बोले सैलानी

    चुनार दुर्ग की विशालता और रानी सोनवा मंडप की प्रस्तर कलाकारी के साथ इतिहास को इतने सजीव रूप में देखना अद्भुत अनुभव रहा। यह स्थान भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अनमोल खजाना है।

    -एडवर्ड स्मिथ यूके।

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    गंगा किनारे स्थित संरक्षित ब्रिटिशकालीन कब्रिस्तान अतीत का अनुभवन कराने के साथ गर्व और भावुकता दोनों को जगाता है। चुनार की धरती इतिहास का जीता जागता संग्रहालय है।

    - एन्ना ब्लैकमोर, यूके।

    चुनार का किला और उसकी बनावट हिंदू राजाओं समेत मुगल बादशाह व ब्रिटिश काल के स्थापत्य कला को एक साथ दर्शाता है। यहां की विशाल बावली को देखना भी अपने आप में रोमांचकारी अनुभव है।

    - सू, आस्ट्रेलिया

    दरी बुनाई का अनुभव अद्भुत रहा। कला और परंपरा की ऐसी बारीकी पहले कहीं नहीं देखी। यहां के बुनकरों की मेहनत और हुनर प्रभावित करने वाला है। इसके साथ ही किले का भ्रमण कभी न भूलने वाला अनुभव है।

    - डा. डोबी, आस्ट्रेलिया।

    बाबा कासिम सुलेमानी की दरगाह पर गहरी शांति और अपनापन मिला। पत्थरों पर की गई नक्काशी उन्हें बेहद खूबसूरत लगी। उन्होंने कहा कि इस पवित्र स्थल ने उनके दिल को सुकून दिया।

    - स्टेफन यूके।

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