पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक, आर्थिक और कूटनीतिक तीनों मोर्चों पर कार्रवाई की जरूरत

सैन्य मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए सबसे अच्छा तरीका होगा कि वह दोनों रास्तों का सही संतुलन बनाए। फिलहाल भारत को संयम रखते हुए दूसरे देश...और पढ़ें
जागरण न्यू मीडिया में एग्जीक्यूटिव एडिटर के पद पर कार्यरत। दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार ...और जानिए
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।
आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान की हालत मौजूदा समय में हर मोर्चे पर चरमराई हुई है। वह आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक अशांति का सामना कर रहा है। आईएमएफ के बेलआउट पैकेज के भरोसे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रोज हिचकोले खा रही है। सेना-राजनीति के बीच टकराव अपने चरम पर है तो लगातार बढ़ती चरमपंथी हिंसा उसकी हालत और कमजोर कर रही है। ऐसे में बर्बादी के कगार पर खड़े पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए भारत पुरजोर कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान पर लगाए भारत के प्रतिबंध ने पहले ही उसकी पेशानी पर बल ला दिए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या इस कमजोरी का रणनीतिक फायदा उठाया जाए- जैसे सीमित सैन्य कार्रवाई करना या वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग कर दबाव बनाना? या फिर संयम बरतते हुए पाकिस्तान के और कमजोर होने का इंतजार करना?
सैन्य और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए सबसे अच्छा तरीका होगा कि वह दोनों रास्तों का सही संतुलन बनाए। फिलहाल भारत को संयम रखते हुए दूसरे देशों के साथ अपनी दोस्ती मजबूत करने, अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और दुनिया भर में पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन साथ ही भारत को इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए कि अगर पाकिस्तान कोई बड़ा उकसावा करे तो उसे जवाब दिया जा सके। यह संतुलित तरीका भारत को अपने लक्ष्य पाने में मदद करेगा और बिना बड़ी लड़ाई के क्षेत्र में शांति बनी रहेगी।
इस समय पाकिस्तान की गड़बड़ी फैलाने वाली गतिविधियों का जवाब कूटनीति और गुप्त तरीकों से देना चाहिए और सेना को केवल अंतिम विकल्प के रूप में तैयार रखना चाहिए। पहलगाम हमले के बाद काबुल में भारत के संयुक्त सचिव और तालिबान के विदेश मंत्री के बीच हुई बैठक से भारत ने अफगानिस्तान में अपनी वापसी का मजबूत संकेत दिया है। भारत अब अफगानिस्तान के साथ व्यापार और सहायता के जरिए अपने संबंध मजबूत कर रहा है, खासकर ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिए। तालिबान भी भारत को अहम साथी मानने लगा है। इससे पाकिस्तान की "स्ट्रेटेजिक डेप्थ" नीति को झटका लगा है, जो वह अफगानिस्तान पर पकड़ बनाए रखने के लिए अपनाता रहा है।
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