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    उत्तराखंड चुनाव 2017: सियासी जमीन पर महिलाएं साइड लाइन

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sun, 29 Jan 2017 04:50 AM (IST)

    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में किसी राजनीतिक दल ने उत्तरकाशी में किसी महिला को टिकट नहीं दिया और न ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किसी महिला ने नामांकन किया।

    उत्तराखंड चुनाव 2017: सियासी जमीन पर महिलाएं साइड लाइन

    उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: प्रसिद्ध पर्वतारोही बछेंद्री पाल और डॉ. हर्षवंती बिष्ट की कर्मभूमि उत्तरकाशी जनपद में महिलाएं आज भले ही विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल कर रही हों, लेकिन सियासी जमीन उन्हें रास नहीं आ रही।

    उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अब तक के विधानसभा चुनाव का परिदृश्य से यही बयां कर रहा है। इस सीमांत जिले की तीन विधानसभा सीटों पर 2002 से 2012 तक सिर्फ पांच महिलाएं ही मैदान में उतरीं, लेकिन सफलता किसी के हाथ नहीं लगी।

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    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में किसी राजनीतिक दल ने उत्तरकाशी में किसी महिला को टिकट नहीं दिया और न ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किसी महिला ने नामांकन किया। जबकि, जनपद में महिला मतदाताओं की संख्या एक लाख से अधिक है।

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    पंचायतों में 50 फीसद आरक्षण के चलते महिलाएं पंचायतों की राजनीति में तो सक्रिय हैं, लेकिन ये भी सच है कि राज्य बनने के बाद सीमांत उत्तरकाशी जिले से किसी भी महिला को विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है।

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    इस लिहाज से महिलाएं कितने पीछे हैं, इसका आकलन उनकी उम्मीदवारी से लगाया जा सकता है। सियासी दलों ने भी यहां की तीन सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारने के मामले में खास दिलचस्पी अब तक नहीं ली है।

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    थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो 2002 के पहले विस चुनाव में जिले की पुरोला सीट शांति जुवांठा कांग्रेस के टिकट से मैदान में उतरी। तब वह दूसरे स्थान पर रही थीं। यमुनोत्री सीट पर भाजपा ने सुलोचना गौड़ को प्रत्याशी बनाया, मगर वह तीसरे स्थान पर रहीं। 2007 में भाजपा ने यमुनोत्री सीट पर विमला नौटियाल को टिकट दिया, वह तीसरे स्थान पर रहीं।

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    2007 में ही गंगोत्री सीट पर नारायणी देवी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। 2012 के चुनाव में गंगोत्री सीट से नारायणी देवी फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरीं, मगर वह उपस्थिति दर्ज कराने तक ही सीमित रहीं।

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    इस बार तो एक भी महिला ने नामांकन पत्र तक नहीं खरीदा, दाखिल करना तो दूर की बात है। सियासत से महिलाओं की दूरी पर हर्षिल गांव की प्रधान 72 वर्षीय बसंती नेगी कहती हैं कि पंचायतों की तरह विधानसभा में भी महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए।

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    उन्होंने कहा कि अब महिलाएं जागरूक हो रही हैं तथा पढ़ी लिखी हैं। इसलिए राष्ट्रीय दलों को भी अधिक से अधिक संख्या में महिलाओं को मौका देना चाहिए। वे कहती हैं कि इस सीमांत जनपद की महिलाएं यदि विस में पहुंचेंगी तो पहाड़ की महिलाओं को पीड़ा को समझेंगी और इसे दूर करने का प्रयास करेंगी।

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    जिले में महिला मतदाता

    विस सीट---------- संख्या

    पुरोला---------------32326

    यमुनोत्री-------------33812

    गंगोत्री---------------39168

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    महिला प्रत्याशी

    वर्ष----------------------संख्या

    2002-------02

    2007-------02

    2012-------01

    2017------ 00

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