मध्य प्रदेश के हरदा में एक पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट से दस से अधिक लोगों की मौत के साथ 50 से ज्यादा लोग घायल तो हुए ही, आसपास के घरों को भी अच्छी-खासी क्षति हुई। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि फैक्ट्री घरों के आसपास ही थी और किसी ने इसकी चिंता नहीं की कि हादसे की स्थिति में जान-माल की क्षति कहीं अधिक हो सकती है।

इस पर भी हैरानी नहीं कि यह सामने आ रहा है कि फैक्ट्री में मनमाने तरीके से बारूद का भंडारण किया जा रहा था। यह भंडारण कितने बड़े पैमाने पर किया गया था, इसका पता इससे चलता है कि उसमें विस्फोट के कारण आधे घंटे तक धमाके होते रहे और इलाके में अफरातफरी फैल गई। हादसे की गंभीरता का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि आसपास के कई शहरों से अग्निशमन गाड़ियों को बुलाना पड़ा।

इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि भीषण हादसे का शिकार बनी पटाखा फैक्ट्री सुरक्षा मानकों की अनदेखी करके चलाई जा रही थी। यह अनदेखी इसके बाद भी हो रही थी कि कथित तौर पर फैक्ट्री का समय-समय पर निरीक्षण किया जाता था।

कोई भी समझ सकता है कि फैक्ट्री के निरीक्षण के नाम पर खानापूरी की जा रही होगी। संबंधित विभाग के अधिकारी कागजों में यह दर्ज करके कर्तव्य की इतिश्री कर लेते होंगे कि फैक्ट्री तय मानकों के हिसाब से चलाई जा रही है। फैक्ट्रियों, होटलों आदि के साथ सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा के मामले में अपने देश में ऐसा ही होता है। निरीक्षण के नाम पर सुरक्षा मानकों की अनदेखी ही की जाती है। इसी कारण अपने देश में वैसे हादसे लगातार होते ही रहते हैं, जैसा हरदा में हुआ।

इन हादसों में तमाम लोग मारे जाते हैं और शासन-प्रशासन के साथ देश की भी बदनामी होती है, लेकिन कोई जरूरी सबक सीखने से इन्कार किया जाता है। स्थिति यह है कि जांच और कार्रवाई के नाम पर भी लीपापोती होती है और जिम्मेदार लोग मुश्किल से ही जवाबदेह बनाए जाते हैं। एक ऐसे समय जब देश को विकसित बनाने की कोशिश हो रही है, तब यह देखना दयनीय है कि इस पर निगाह नहीं जा रही है कि कार्यस्थलों, सड़कों, सार्वजनिक आयोजनों आदि में सुरक्षा के सामान्य नियमों की उपेक्षा ही अधिक होती है।

जब देश के बड़े शहरों तक में ऐसा होता है, तब यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि हरदा जैसे शहरों में क्या होता होगा? आखिर कब चेतेंगे हम और यह देखेंगे कि भारत से कहीं कम विकासशील देशों में सार्वजनिक सुरक्षा के नियमों का पालन कहीं अधिक संतोषजनक है? कम से कम अब तो यह समझा ही जाना चाहिए कि सार्वजनिक सुरक्षा के नियमों की अनदेखी देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है। ध्यान रहे कि अपने यहां जैसे सुरक्षा मानकों की उपेक्षा की जाती है, वैसे ही निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की भी परवाह नहीं की जाती।