जागरण संपादकीय: अमेरिका की पाबंदी, टीआरएफ आतंकी संगठन घोषित
अमेरिकी प्रशासन ने पहलगाम में आतंकी हमले के जिम्मेदार संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को आतंकी संगठन घोषित किया है। यह भारत के लिए एक सकारात्मक कदम है। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है क्योंकि अतीत में उनका रवैया नरम था। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान ने टीआरएफ का बचाव किया था।
आखिरकार अमेरिकी प्रशासन ने पहलगाम में मजहब पूछकर लोगों को मारने वाले पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट-टीआरएफ को आतंकी संगठन करार दिया। यह भारत के लिए अच्छी खबर है, लेकिन ट्रंप प्रशासन का यह फैसला इसलिए चकित भी कर रहा है, क्योंकि पहलगाम में आतंकी हमले के जवाब में भारत ने जब आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की थी तो राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया अजीब सा था।
उन्होंने पहले तो दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हो जाने का श्रेय लिया और फिर पाकिस्तान के प्रति नरमी भरे बयान देने लगे। उन्होंने पाकिस्तानी सेना प्रमुख और एक तरह से वहां के असली शासक को अमेरिका आमंत्रित कर लिया। पहले पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाने और अब वहां पल रहे आतंकी गुट लश्कर के मुखौटा संगठन टीआरएफ पर प्रतिबंध लगाकर उसे शर्मिंदा करने के ट्रंप के फैसले के पीछे चाहे जो कारण हो, इसकी अनदेखी न की जाए कि आतंकी संगठनों पर जब अमेरिका जैसा बड़ा देश पाबंदी लगाता है तो उसका असर पड़ता है। इस बार भी पड़ना चाहिए, लेकिन प्रश्न यह है कि समय रहते ऐसे प्रतिबंध संयुक्त राष्ट्र क्यों नहीं लगाता? भारत इसे भूल नहीं सकता कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान टीआरएफ का बचाव करने में सफल रहा था।
अतीत में संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान के साथ दुनिया के कई देशों के आतंकी संगठनों और उनके सरगनाओं पर पाबंदी लगाई है, पर कई बार संबंधित देश की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। पाकिस्तान ऐसा ही है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से प्रतिबंधित लश्कर, जैश जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन देने से बाज नहीं आ रहा है। इसका कारण चीन तो है ही, अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी देश भी हैं। ये देश अच्छे से जानते हैं कि पाकिस्तान क्या कर रहा है? पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने को तब विवश होता है, जब फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स-एफएटीएफ जैसी संस्था उसके खिलाफ कदम उठाती है। समस्या यह है कि इस संस्था में भी अमेरिका जैसे देशों की चलती है।
अच्छा होगा कि भारत नए सिरे से यह कोशिश करे कि एफएटीएफ पाकिस्तान के खिलाफ निगाह टेढ़ी करे और अमेरिका इसमें मददगार बने। यह ध्यान रहे कि राष्ट्रपति ट्रंप हर मामले और यहां तक कि आतंकवाद को भी राजनीतिक चश्मे से देखते हैं। आतंकवाद के मामले में जो भूमिका संयुक्त राष्ट्र की होनी चाहिए, उसका निर्वाह अमेरिका करे, यह वैश्विक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं। अमेरिका शक्तिशाली देश है, पर उसे वैश्विक व्यवस्था के संचालन का अधिकार नहीं। आतंकवाद के मामले में एक बड़ी समस्या यह है कि संयुक्त राष्ट्र उसे परिभाषित नहीं कर सका है।
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