जैसे आसार थे, वैसा ही हुआ, उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रियों के मार्ग की दुकानों पर उनके मालिक का नाम लिखने के निर्देश का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्देश पर रोक लगा दी और चूंकि ऐसे ही निर्देश उत्तराखंड सरकार ने भी जारी किए थे और मध्य प्रदेश सरकार की ओर से भी जारी किए जाने की चर्चा हो रही थी, इसलिए उसने तीनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए।

दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम लिखने संबंधी निर्देश इसलिए प्रश्नों के घेरे में था, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि आखिर इसका उद्देश्य क्या है? उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर प्रशासन की ओर से कांवड़ मार्ग के दुकानदारों को अपनी दुकानों पर अपना नाम लिखने का निर्देश जारी करते हुए यह कहा गया था कि ऐसा भ्रम को दूर करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि आखिर किस तरह का भ्रम?

मुजफ्फरनगर प्रशासन का उद्देश्य कुछ भी हो, उसके निर्देश से यह संदेश निकला कि कांवड़ियों को परोक्ष रूप से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही थी कि उन्हें मुस्लिम नाम वाली दुकानों से खाने-पीने की सामग्री न खरीदने का विकल्प दिया जा रहा है। चूंकि अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुकानदारों को केवल यह बताना होगा कि वे किस तरह का भोजन परोस रहे हैं, इसलिए कांवड़ियों और अन्य लोगों को अपनी पसंद का भोजन खरीदने-खाने की सुविधा और स्वतंत्रता होगी। वास्तव में यही होना चाहिए।

हर किसी को अपनी पसंद का भोजन खरीदने का अधिकार है और लोगों को यह पता होना ही चाहिए कि वे किस तरह की आहार सामग्री खरीद रहे हैं? कांवड़ यात्री ही नहीं, अन्य अनेक लोग भी शाकाहार पसंद करते हैं और कई बार वे उस दुकान से भी शाकाहार लेने से बचते हैं, जहां मांसाहार भी बनता-बिकता है। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कांवड़ यात्रियों और अन्य को यह चयन करने में आसानी होगी कि वे अपनी पसंद का भोजन कहां से खरीदें और कहां से नहीं?

फिलहाल यह कहना कठिन है कि आगे इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचेगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि कई धार्मिक यात्राओं में हर समुदाय के लोग अपनी दुकानें लगाते हैं। इनमें खाने-पीने की दुकानें भी होती हैं। इसके अतिरिक्त यात्रियों को किस्म-किस्म की सुविधाएं प्रदान करने वाले भी होते हैं।

उनके सामने यह बाध्यता नहीं होती कि वे अपना नाम लिखें। यह एक तथ्य है कि अमरनाथ यात्रा में खाने-पीने की सामग्री बेचने वालों के अलावा खच्चर-टेंट वाले भी मुस्लिम होते हैं। इस मामले की आगे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से यह भी अपेक्षा है कि वह यह देखे कि हलाल प्रमाणन के नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह कितना सही है?