जागरण संपादकीय: कारगिल विजय का स्मरण, सैनिकों के अद्वितीय पराक्रम को नमन
भारत के प्रति पाकिस्तान की शत्रुता में इसके बावजूद भी कोई कमी नहीं आई कि वाजपेयी से लेकर मोदी तक ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने की हरसंभव कोशिश की। पाकिस्तान पहले भी भारत को धोखा देने के लिए साजिश करता रहता था। वह अब भी ऐसा ही कर रहा है।
कारगिल विजय दिवस के अवसर पर देश में जो विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए, उनकी महत्ता इसलिए और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर की चर्चा अब भी जारी है। कारगिल संघर्ष में अप्रतिम साहस का परिचय और सर्वोच्च बलिदान देने वाले रणबांकुरों का स्मरण राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह अच्छा हुआ कि यह कार्य बड़े पैमाने पर किया गया।
कारगिल विजय दिवस हमारे सैनिकों के अद्वितीय पराक्रम की याद दिलाने के साथ पाकिस्तान की धोखेबाजी को भी रेखांकित करता है। राष्ट्र ने कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ मनाई। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि पाकिस्तान की हरकतें वैसी की वैसी ही हैं। कारगिल में उसके सैनिकों ने चरवाहों के भेष में घुसपैठ की थी। माना जाता है कि पहलगाम में बर्बर हमले को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकी वहां के सैनिक ही थे। जैसे कारगिल में घुसपैठ पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ के इशारे पर की गई, वैसे ही पहलगाम में आतंकी हमले के पीछे मौजूदा सेना प्रमुख आसिम मुनीर को जिम्मेदार माना जा रहा है।
भारत के प्रति पाकिस्तान की शत्रुता में इसके बावजूद कोई कमी नहीं आई कि वाजपेयी से लेकर मोदी तक ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने की हरसंभव कोशिश की। पाकिस्तान पहले भी भारत को धोखा देने के लिए साजिश करता रहता था। वह अब भी ऐसा ही कर रहा है।
कारगिल संघर्ष में पाकिस्तान ने केवल शर्मनाक पराजय का सामना किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी फजीहत भी कराई। प्रमुख देशों को यह साफ संदेश गया था कि पाकिस्तान की सेना बिल्कुल भी पेशेवर नहीं है और वह भारत के खिलाफ आतंकियों का इस्तेमाल करती है। चूंकि ऐसा अब भी हो रहा है, इसलिए भारत को सावधान रहना चाहिए। इसलिए और अधिक, क्योंकि चीन उसकी पीठ पर हाथ रखे हुए है और अमेरिका का रवैया भी ढुलमुल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने स्वार्थों के लिए पाकिस्तान को गले लगाने से भी बाज नहीं आने वाले। भले ही पाकिस्तान आर्थिक समस्याओं से घिरा हो, लेकिन वह भारत से बदला लेने की अपनी सनक छोड़ने के लिए तैयार नहीं। वह हिंदुओं से घृणा पर पल रहा है। इसी घृणा के चलते पहलगाम में लोगों को उनका मजहब पूछकर मारा गया। कारगिल विजय दिवस के स्मरण के साथ ही इस आवश्यकता को भी महसूस किया जाना चाहिए कि अभी पाकिस्तान को सही राह पर लाना शेष है। इसमें संदेह है कि वह सुधरेगा। इसे देखते हुए पाकिस्तान के प्रति किसी तरह की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए। ध्यान रहे कि कारगिल संघर्ष के समय भारत ने अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के पालन पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया। इसके चलते हमारे बलिदानी सैनिकों की संख्या बढ़ी।
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