जागरण संपादकीय: नागपुर का सबक, गड़े मुर्दे उखाड़ने के दुष्परिणाम
नागपुर में हिंसा इसलिए भड़की क्योंकि औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग कर रहे लोगों ने उसकी प्रतीकात्मक कब्र वाली फोटो को जलाया। इसे लेकर ही यह अफवाह फैला दी गई कि उसमें मजहबी नारे लिखे थे। यह नितांत झूठी और शरारत भरी अफवाह थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इसे जानबूझकर फैलाया गया और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया।
नागपुर में हिंसा के बाद कई क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाने की जो नौबत आई, उससे यही पता चलता है कि गड़े मुर्दे उखाड़ने के क्या दुष्परिणाम होते हैं। जैसे औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग उठाकर गड़े मुर्दे उखाड़ने का अनावश्यक काम किया गया, वैसे ही उसे दयालु शासक बताकर भी माहौल बिगाड़ने में ही योगदान दिया गया।
इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि औरंगजेब एक क्रूर, कट्टर और मतांध शासक था, लेकिन उसकी कब्र हटाने की मांग का भी कोई औचित्य नहीं बनता। आखिर ऐसा तो है नहीं कि उसकी कब्र हट जाने से उसके काले कारनामों पर पर्दा पड़ जाएगा अथवा उन अत्याचारों का प्रतिकार हो जाएगा, जो उसने किए।
औरंगजेब की कब्र इसी की तो निशानी है कि वहां एक ऐसा शासक दफन है, जो बेहद अत्याचारी था। तथ्य यह भी है कि औरंगजेब अकेला ऐसा मुगल शासक नहीं, जिसने अत्याचार किए हों। आखिर किन-किन मुगल शासकों या अन्य बाहरी आक्रमणकारियों की निशानियों को मिटाने की मांग की जाएगी?
क्या ऐसा करने से उनसे जुड़ी कटु स्मृतियां ओझल हो जाने वाली हैं? यह समझ आता है कि औरंगजेब का महिमामंडन न होने दिया जाए और जो लोग उसकी सराहना करते रहते हैं, उनका विरोध किया जाए, लेकिन इसका भी अपना एक तरीका होना चाहिए।
इसी के साथ यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संभाजीनगर में औरंगजेब की कब्र एक उपेक्षित स्थल ही है। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर सभी उसे हिकारत की नजर से ही देखते हैं।
नागपुर में हिंसा इसलिए भड़की, क्योंकि औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग कर रहे लोगों ने उसकी प्रतीकात्मक कब्र वाली फोटो को जलाया। इसे लेकर ही यह अफवाह फैला दी गई कि उसमें मजहबी नारे लिखे थे। यह नितांत झूठी और शरारत भरी अफवाह थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इसे जानबूझकर फैलाया गया और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया।
यह भी लगता है कि इस अफवाह के सहारे उपद्रव करने की तैयारी की गई थी। यदि ऐसा नहीं होता दो घंटे तक आगजनी और तोड़फोड़ नहीं होती रहती। इस उपद्रव में अनेक लोग घायल हुए, जिनमें 30 से अधिक पुलिसकर्मी भी हैं।
यह ठीक है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यह कह रहे हैं कि पुलिसकर्मियों पर हमला करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन इसी के साथ उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई किसी भी मामले पर अपनी पसंद-नापसंद प्रकट करते समय बेलगाम न होने पाए।
इसी के साथ यह भी समझा जाना चाहिए कि अपने देश में कई ऐसे शासक रहे हैं, जिनका दामन दागदार है अथवा जो विवादित हैं। उनके कार्य-व्यवहार पर बहस के नाम पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे सामाजिक सद्भाव अथवा कानून एवं व्यवस्था के लिए संकट पैदा हो जाए।














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