'जो वैध मतदाता नहीं, उनका वोटर लिस्ट में क्या काम', बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण पर चुनाव आयोग के सही सवाल
चुनाव आयोग ने पूछा है कि क्या संविधान के विरुद्ध जाकर फर्जी वोट डालने का मार्ग प्रशस्त करना सही है? मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी जानना चाहा कि क्या निराधार बातों से डरकर मृत और विदेश में बसे लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाना गलत है। विपक्षी दल बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर हंगामा कर रहे हैं जो अनुचित है।
चुनाव आयोग को इन साहसिक और सर्वथा उचित सवालों के लिए धन्यवाद कि क्या संविधान के विरुद्ध जाकर फर्जी वोट डालने का मार्ग प्रशस्त कर दिया जाए? मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने यह भी पूछा कि क्या निराधार बातों से डरकर मृत लोगों, दूसरी जगह पर स्थायी रूप से बस गए व्यक्तियों और विदेशी मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाना गलत है?
ये वे सवाल हैं जिनके जवाब ईमानदारी से दिए जाने चाहिए। ये जवाब उन राजनीतिक दलों और नेताओं को विशेष रूप से देने चाहिए जो बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर आसमान सिर पर उठाए हुए हैं और संसद के भीतर एवं बाहर संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए हंगामा कर रहे हैं। इस हंगामे से न तो लोकतंत्र का भला होने वाला है और न भारतीय राजनीति का और न ही चुनाव प्रक्रिया का।
वस्तुत: यह हंगामा आम मतदाताओं के हितों की अनदेखी के साथ ही अनुचित, अवैध तरीके से मतदाता बने लोगों की पक्षधरता भी है। आखिर विपक्षी दल यह बेकार की जिद क्यों पकड़े हुए हैं कि जो लोग वैध मतदाता नहीं हैं, उनके नाम वोटर लिस्ट में बने रहने दिए जाएं? वे इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि ऐसे सारे लोग उनके वोटर हैं और अनिवार्य रूप से उन्हें ही वोट देंगे।
हैरानी की बात यह है कि विपक्षी दल बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन के चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट की ओर से सही बताए जाने के बाद भी लोगों को गुमराह करने के साथ ही यह समझाने में लगे हुए हैं कि आयोग मोदी सरकार और भाजपा के अनुचित हितों की पूर्ति के लिए बड़ा ही गैर-संवैधानिक काम कर रहा है। एक सही पहल पर लोगों को गुमराह करना तो राजनीतिक पाप है।
यह पाप वे लोग कर रहे हैं जो संविधान की दुहाई देते हैं और उसकी प्रतियां लहराते हुए घूम रहे हैं। अच्छा हो कि वे संविधान को फिर से पढ़ें और यह भी देखें कि चुनाव आयोग को क्या अधिकार प्रदान किए गए हैं। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। जो राजनीतिक दल एक संवैधानिक संस्था का अनादर करने में लगे हुए हैं, उनके बारे में यह कहना कठिन है कि उन्हें संविधान में कोई श्रद्धा है।
संविधान बचाने के नाम पर उससे ही खिलवाड़ करने की जो घटिया राजनीति हो रही है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि भारत में ऐसे भी राजनीतिक दल होंगे जो इतनी क्षुद्र राजनीति करेंगे।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि क्षुद्र राजनीति करने में वह कांग्रेस सबसे आगे है जिसने लंबे समय तक देश पर शासन किया है और समय-समय पर चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने की पहल भी की। साफ है कि आज की कांग्रेस अपने ही कई नेताओं के खिलाफ खड़ी होने का काम कर रही है।
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