[प्रमोद दीक्षित ‘मलय’]। वैश्विक स्तर पर जन जागरूकता के लिए दिवस मनाने की परंपरा रही है, जिस पर लक्ष्य और विषय निर्धारित कर आयोजन किए जाते हैं, पर रेडियो के पास अपना कोई दिवस न था। तो इस कमी को पूरा करने की दृष्टि से 20 अक्टूबर, 2010 को स्पेनिश रेडियो अकादमी के अनुरोध पर स्पेन ने संयुक्त राष्ट्र में रेडियो को समर्पित विश्व दिवस मनाने के लिए सदस्य देशों का ध्यानाकर्षण किया। जिसे स्वीकार कर संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने पेरिस में आयोजित 36वीं आमसभा में 3 नवंबर, 2011 को घोषित किया कि प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि 13 फरवरी को ही संयुक्त राष्ट्र की ‘रेडियो यूएनओ’ की वर्षगांठ भी होती है, क्योंकि 1946 को इसी दिन वहां रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ था। और तब पहली बार 13 फरवरी, 2012 को यह विश्व रेडियो दिवस उमंग-उत्साह पूर्वक पूरी दुनिया में मनाते हुए रेडियो के सफरनामे को याद किया गया। इस आयोजन में विश्व की प्रमुख प्रसारक कंपनियों को बुलाया गया था जिसमें 44 भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी एवं पुरानी कंपनी रेडियो रूस भी शामिल हुई थी।

वर्ष 2012 और 2013 में कार्यक्रम की कोई थीम नहीं रही, पर उसके बाद प्रत्येक वर्ष कोई एक मुख्य विषय तय कर उसी थीम पर विश्व में कार्यक्रम संपन्न किए जाते रहे हैं। लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण (2014), युवा और रेडियो (2015), संघर्ष और आपातकाल के समय रेडियो (2016), रेडियो इज यू (2017), रेडियो और खेल (2018) के वैश्विक आयोजन के चर्चा- विषय निश्चित थे। वर्तमान वर्ष का विषय है ‘संवाद, सहिष्णुता और शांति’ जो सामयिक है और आवश्यक भी। विश्व के सभी देशों के रेडियो प्रसारकों और श्रोताओं को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से शुरू की गई यह पहल अपने उद्देश्यों में सफल रही है।

भारत में रेडियो प्रसारण के शुरुआती प्रयास बहुत सफल नहीं रहे। कुछ उत्साही ऑपरेटरों ने 20 अगस्त, 1921 को अनधिकृत रूप से बंबई, कलकत्ता, मद्रास और लाहौर से रेडियो का प्रसारण किया, पर वे उसे आगे न ले जा सके। निजी ट्रांसमीटरों द्वारा 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब ने प्रसारण आरंभ किया गया, पर उसने तीन वर्ष में ही दम तोड़ दिया। 1927 में स्थापित रेडियो क्लब बॉम्बे भी 1930 में आखिरी सांस ले कर मौन हो गया। 1936 में ‘इंपीरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आजादी के बाद ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के नाम से विख्यात हुआ।

1957 को ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर ‘आकाशवाणी’ कर दिया गया। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के अपने ध्येय वाक्य के साथ आकाशवाणी 27 भाषाओं में शैक्षिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, खेलकूद, युवा, बाल एवं महिला तथा कृषि एवं पर्यावरण संबंधी प्रस्तुतियों से संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में पिरोते हुए सुवासित परिवेश निर्मित कर रही है। साथ ही शेष विश्व को भारतीय संस्कृति और साहित्य से परिचित भी करा रही है। 2 अक्टूबर, 1957 को स्थापित ‘विविध भारती’ ने 1967 से व्यावसायिक रेडियो प्रसारण शुरू कर नए युग में प्रवेश किया। आजादी के समय भारत में केवल 6 रेडियो स्टेशन थे जिनके कार्यक्रमों की पहुच केवल 11 प्रतिशत आबादी तक ही थी, पर आज भारत में 250 से अधिक रेडियो स्टेशन 99 प्रतिशत आबादी से आत्मीय रिश्ता जोड़े हुए हैं।

रेडियो स्टेशन विभिन्न तरंग आवृत्तियों पर अपने कार्यक्रम का प्रसारण करते हैं जिसे श्रोता मीडियम वेव, शॉर्ट वेव के रूप में जानते हैं। बड़ी इमारतों, पहाड़ों के अवरोधों से मुक्त मीडियम वेव देसी प्रसारण है जो पूरे भारत के अलावा पड़ोसी देशों में भी सुना जा सकता है, पर शॉर्ट वेव पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक क्षेत्रफल पर ध्वनि की उच्च गुणवत्ता के साथ भारतीय प्रस्तुतियों को सुनकर आनंद लिया जा सकता है। सत्तर के दशक में टेलीविजन के आने से लगा कि रेडियो की असमय मौत हो जाएगी, पर सभी आशंकाएं निर्मूल सिद्ध हुईं और रेडियो कहीं अधिक प्रखर एवं प्रभावी होकर प्रकट हुआ।

रेडियो का श्रोता वर्ग बजाय छिटकने के और अधिक जुड़ा। इसी बीच एएम चैनल आया, पर प्रभावित नहीं कर पाया और काल के गाल में समा गया। फिर 23 जुलाई, 1977 को चेन्नई में एफएम चैनल ने आते ही ध्वनि की उच्च गुणवत्ता एवं कार्यक्रमों की विविधता के बल पर धूम मचा दी और देश भर में छा गया। 1993 में निजी एफएम चैनल आने से श्रोताओं की पौ बारह हो गई। और अब तो जमाना है डिजिटल रेडियो का। मोबाइल पर सवार होकर रेडियो श्रोताओं की जेब में समा गया है। बड़े आकार और नॉब घुमाने वाले रेडियो तो अतीत के चित्र हो गए हैं। रेडियो ने उद्घोषकों एवं समाचार वाचकों मैल्वेल डिमैलो, देवकीनंदन पांडे, अमीन सयानी, सुरेश सरैया और जसदेव सिंह को नायक बना दिया। उनकी आवाज ही पहचान बन गई।

रेडियो ने अपनी यात्रा के प्रारंभ से ही समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार, जन- जागरूकता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक बहस को अपनी सोच के केंद्र में रखा था। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून का कथन आज भी प्रासंगिक है, ‘रेडियो हमारा मनोरंजन करता है, हमें शिक्षित करता है, हमें सूचनाओं और जानकारियों से लैस करता है और सारी दुनिया में लोकतांत्रिक बदलावों को प्रोत्साहित करता है।’ रेडियो और आदमी का यह प्रेम पगा रिश्ता नित नवल आयाम स्थापित करते हुए सरस यात्रा पर सतत गतिमान रहेगा, ऐसा ही विश्वास है।

[सामाजिक मामलों के जानकार]