संजय गुप्त। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के पहले चुनाव आयोग ने राज्य में मतदाता सूची के सत्यापन अर्थात पुनरीक्षण की जो पहल की, उस पर कांग्रेस, राजद समेत अनेक विपक्षी दलों ने आसमान सिर पर उठा लिया। इन दलों ने यह बताने की कोशिश की कि चुनाव आयोग कोई अनुचित, अनावश्यक और असंवैधानिक काम कर रहा है। उन्होंने चुनाव आयोग के साथ मोदी सरकार पर भी तमाम आरोप लगाए। उनके हिसाब से चुनाव आयोग मतदाता सूची का सत्यापन मोदी सरकार के कहने पर कर रहा है और उसका इरादा किसी न किसी प्रकार भाजपा को चुनावी लाभ पहुंचाना है।

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की इस पहल को महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में हुई तथाकथित हेराफेरी से भी जोड़ा। वह बार-बार यह घिसा-पिटा आरोप दोहरा रहे हैं कि महाराष्ट्र में चुनाव आयोग ने भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए धांधली करवाई। इन आरोपों का चुनाव आयोग ने विस्तार से जवाब दिया है, लेकिन राहुल गांधी और उनके साथ कई विपक्षी नेता सच का सामना करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। साफ है कि उनके साथ कांग्रेस यह समझने को तैयार नहीं कि उनकी राजनीतिक जमीन कमजोर हो रही है और इसके लिए वे चुनाव आय़ोग पर दोष मढ़कर कुछ हासिल नहीं कर सकते।

मतदाता सूची का सत्यापन कोई नई बात नहीं है। बिहार में ही इसके पहले 2003 में मतदाता सूची का सत्यापन हुआ था। अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी मतदाता बढ़े हैं। बिहार के लाखों लोग रोजगार के सिलसिले में बाहर जाते हैं और कुछ तो वहीं स्थाई रूप से बस जाते हैं। इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बांग्लादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ से पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ झारखंड और बिहार भी प्रभावित हैं। मतदाता सूची के सत्यापन से न केवल बिहार के वैध-वास्तविक मतदाताओं का पता चलेगा, बल्कि इसकी भी जानकारी हो सकेगी कि कहीं अवैध बांग्लादेशी बिहार में मतदाता तो नहीं बन गए हैं? आखिर जब वे बंगाल में बन सकते हैं तो बिहार में भी इसकी आशंका है।

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची का सत्यापन निष्पक्ष चुनाव की बुनियादी शर्त है। यदि समय-समय पर इसकी पड़ताल की जाती रहे कि वास्तविक मतदाता कौन हैं और वे कहां रह रहे हैं तो इसमें क्या हर्ज है? शायद ऐसे ही जायज सवालों के कारण चुनाव आय़ोग की पहल के खिलाफ जिन राजनीतिक दलों और लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, उन्हें निराशा ही हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की पहल पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। इतना अवश्य रहा कि उसने चुनाव आयोग को मतदाताओं के सत्यापन के लिए आधार, राशन कार्ड, वोटर आइडी को भी इस्तेमाल करने का सुझाव दिया।

यह ठीक ही है कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अमल करने को तैयार है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग का काम नागरिकता तय करना नहीं है। हालांकि चुनाव आयोग का इस संदर्भ में यह कहना था कि हर मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नागरिकता तय करने का काम गृह मंत्रालय का है। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है। यह फैसला चुनाव आयोग की अनावश्यक आलोचना करने वालों को आईना दिखाने वाला है। उसने व्यर्थ की राजनीति करने वालों को सबक सिखाने का ही काम किया। चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग पर सवाल पहले भी उठाए जाते रहे हैं।

हाल के समय में सबसे ज्यादा सवाल ईवीएम पर उठे हैं। सवाल उठाने वाले दलों में कांग्रेस सबसे आगे है, जबकि उसके समय में ही ईवीएम पर अमल शुरू हुआ। केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस लगातार यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि भाजपा ईवीएम में कुछ गड़बड़ी कराकर चुनाव जीत रही है। वह और उसके सहयोगी राजनीतिक दल जब ऐसे आरोप लगाते हैं तो यह भूल जाते हैं कि वे भी तो चुनाव जीतते रहते हैं। उन्होंने झारखंड में चुनावी जीत हासिल की थी। कांग्रेस यह देखने को तैयार नहीं कि उसके और सहयोगी दलों के प्रत्याशी जितने अंतर से चुनाव हारते हैं, उतनी संख्या में अवैध वोट नहीं डलवाए जा सकते।

कोई भी प्रक्रिया अपने आप में संपूर्ण नहीं हो सकती। चुनाव प्रक्रिया में भी कुछ कमियों या विसंगतियों का उल्लेख किया जा सकता है, लेकिन यह हर कोई मानेगा कि समय के साथ भारत की चुनाव प्रक्रिया में सुधार हुआ है और इसी कारण चुनाव आयोग की दुनिया भर में प्रतिष्ठा बढ़ी है। बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन के चुनाव आयोग के फैसले पर विपक्षी दलों ने जो भी सवाल उठाए, वे कुल मिलाकर लोगों को गुमराह करने वाले ही हैं।

कांग्रेस और अन्य दलों ने मतदाता सूची के सत्यापन को लेकर चुनाव आयोग पर जो तमाम आरोप लगाए, उनसे यही अधिक साफ हुआ कि वे पुरानी मतदाता सूचियों के सहारे चुनाव कराना चाह रहे हैं और यह मानकर चल रहे कि मतदाता सूची के सत्यापन से कुछ ऐसे लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कट सकते हैं, जो अब मतदाता नहीं हैं और इससे उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है। आखिर वे इस नतीजे पर कैसे पहुंच सकते हैं कि ऐसे लोग उन्हें ही वोट देते?

यह अच्छा है कि चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय के सामने साफ किया कि मतदाता सूची के सत्यापन की 60 प्रतिशत प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और विधानसभा चुनावों के पहले शेष काम को पूरा कर लिया जाएगा। बेहतर होगा कि सभी राजनीतिक दलों के साथ बिहार के लोग भी यह समझें कि चुनाव आयोग की पहल से फर्जी मतदाताओं के नाम काटेंगे। यह ठीक है कि इस पहल से बिहार के कुछ उन लोगों को परेशानी हो सकती है, जो बाहर रहते हैं और अब भी इस राज्य के वोटर हैं, लेकिन इसके आधार पर चुनाव प्रक्रिया और लोकतंत्र को सशक्त बनाने के काम को रोका नहीं जा सकता। लोकतंत्र और अधिक सशक्त हो, इसकी चिंता देश के नागरिकों को भी करनी होगी।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]