रमेश कुमार दुबे। भारतीय खेती के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण यह रहा है कि यहां जितना ध्यान उत्पादन पर दिया गया, उतना कृषि उपज के विपणन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ग्रेडिंग और निर्यात पर नहीं। यही कारण है कि विश्व के कुल कृषि उपज निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2.4 प्रतिशत तक सिमटी है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी खेती को फायदे का सौदा बनाने में जुट गए।

इसके लिए सरकार ने दीर्घकालिक उपायों की शुरुआत की, ताकि खेती की लागत में कमी आए। इसके बाद सरकार ने फसल विविधीकरण पर जोर दिया, ताकि किसान गेहूं-धान-गन्ना जैसी चुनिंदा फसलों की खेती से आगे बढ़कर बागवानी, मछली पालन, दुग्ध उत्पादन जैसी आयपरक गतिविधियों में संलग्न हों। उपज की वाजिब कीमत न मिलना भारतीय किसानों की एक और बड़ी समस्या रही है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार सबसे ज्यादा जोर विपणन सुधारों पर दे रही है।

राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) के साथ-साथ सरकार ने मंडी व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया। इससे किसान बिना किसी बिचौलियों के अपनी उपज बेच रहे हैं। छोटे किसानों को बाजार व्यवस्था से जोड़ने के लिए सरकार 22,000 ग्रामीण हाटों के बुनियादी ढांचे में सुधार कर उन्हें आधुनिक बना रही है।

फल-सब्जी, दूध, मछली जैसे जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के शीघ्र एवं सस्ती ढुलाई के लिए किसान रेल और किसान उड़ान की शुरुआत की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उपज के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने राज्यों से खाद्यान्न कारोबार पर मंडी शुल्क में एकरूपता लाने की सलाह दी है। इससे जिंस बाजार एकीकृत होगा, जिससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।

कृषि क्षेत्र में कारोबारी गतिविधियों के धीमेपन और निर्यात न बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि देश में 12 करोड़ से अधिक छोटे और सीमांत किसान हैं, जो कुल किसानों का 86 प्रतिशत हैं और इनकी जोत का औसत आकार 1.1 हेक्टेयर से कम है। इन किसानों को उत्पादन से जुड़े कार्यों जैसे तकनीक, बीज, मशीनरी, ऋण, प्रसंस्करण और सबसे बढ़कर बाजार तक पहुंच में हर कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

लघु और सीमांत किसानों के समक्ष मौजूद चुनौतियों को दूर करने, खेती-किसानी में कारोबारी गतिविधियों को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने फरवरी 2020 को चित्रकूट से किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) योजना की शुरुआत की। इसके तहत किसानों से फल-फूल, सब्जी, मछली आदि से संबंधित उपजों को खरीदकर सीधे कंपनियों को बेचा जाता है। सरकार ने 2024 के अंत तक 10,000 एफपीओ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिससे 30 लाख किसान लाभान्वित होंगे। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। एफपीओ अपने सदस्य किसानों को आपसी सहयोग से बैंक लोन, फसल की बिक्री, पैकेजिंग, मार्केटिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, ताकि किसानों को इधर-उधर न भटकना पड़े।

एफपीओ पूरी तरह किसानों का एक संगठन होता है, जिसमें सदस्य किसान ही एक-दूसरे की मदद का जिम्मा उठाते हैं। इसमें किसान व्यक्तिगत के बजाय सामूहिक दृष्टिकोण से काम करते हैं, जिससे उनकी मोलभाव की ताकत बढ़ जाती है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार किसानों के हित में काम करने वाले एफपीओ को 15 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इसके लिए कम से कम 11 किसानों को मिलकर एक कंपनी बनानी पड़ती है। इस कंपनी को तभी वित्तीय सहायता मिलेगी, जब उससे पहाड़ी इलाकों में 100 किसान और मैदानी इलाकों में 300 किसान जुड़े हों।

हाल के एक आंकड़े के अनुसार नवंबर 2023 तक 7,600 किसान उत्पादक संगठन बन चुके हैं। इस प्रकार सरकार 75 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर चुकी है। खेती-किसानी पर एफपीओ के प्रभाव पर नाबार्ड ने अपने अध्ययन में पाया है कि 2020-21 और 2021-22 के दौरान एफपीओ से जुड़े किसानों की कृषि उत्पादकता में क्रमश: 18.7 प्रतिशत और 31.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान बीज और उर्वरक पर होने वाले खर्च में क्रमश: 50 रुपये और 100 रुपये की गिरावट दर्ज की गई।

एफपीओ के गठन और इससे किसानों एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को हो रहे लाभ को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी सहकारिता क्षेत्र में 1,100 एफपीओ के गठन करने का निर्णय लिया है। देश भर की प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों से 13 करोड़ किसान जुड़े हैं। इससे इन समितियों को उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन आदि गतिविधियों में अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का मौका मिलेगा। मोदी सरकार एफपीओ के माध्यम से ऐसे क्षेत्रों को कृषि निर्यात हब के रूप में विकसित कर रही है, जहां इसकी भरपूर संभावनाएं हैं।

बतौर उदाहरण पिछले तीन-चार वर्षों में वाराणसी कृषि उपज के निर्यात का हब बनकर उभरा है। 2022 में वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट से 541 मीट्रिक टन कृषि उपज का निर्यात किया था, जो 2023 के 11 महीनों में बढ़कर 655 मीट्रिक टन तक पहुंच गया। आज पूर्वांचल के 20,000 किसान 50 एफपीओ से जुड़कर निर्यात कर रहे हैं जिसका सीधा लाभ किसानों को मिल रहा है। स्पष्ट है सरकार बिचौलियों को हटाकर सीधे किसानों को निर्यातक बना रही है। कृषि निर्यात में हो रही अप्रत्याशित बढ़ोतरी को देखते हुए किसानों को अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप मोटे अनाजों, फल-फूल एवं सब्जी उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। स्पष्ट है आने वाले समय में एफपीओ किसानों को सशक्त बनाने के कारगर हथियार बनकर उभरेंगे।

(लेखक एमएसएमई मंत्रालय में निर्यात संवर्द्धन और विश्व व्यापार संगठन प्रभाग में अधिकारी हैं)