निरंकार सिंह। काशी प्राचीन काल से ही भारतीय धर्म और संस्कृति का केंद्र रही है। आज भी दुनिया भर के लोग यहां काशी विश्वनाथ का दर्शन करने और गंगा तट के घाट के साथ बौद्ध केंद्र सारनाथ को देखने आते हैं। लेकिन लगभग यहां 18 वर्षों से बन रहे स्वर्वेद महामंदिर के प्रांगण में विहंगम योग संत समाज के वार्षिक उत्सव के अवसर पर बीते दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे तो उसके बाद यह केंद्र भी दुनिया भर में विख्यात हो गया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर पर कहा था, 'इस दैवीय भूमि पर ईश्वर अपनी अनेक इच्छाओं की पूर्ति के लिए संतों को निमित्त बनाता है। सद्गुरु सदाफल जी महाराज ने समाज के जागरण के लिए विहंगम योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए यज्ञ किया था। आज वह संकल्प एक विशाल वट वृक्ष बन गया है। आज 5,101 यज्ञ कुंडों के वैदिक यज्ञ, इतने बड़े सह योगासन प्रशिक्षण शिविर, इतने सेवा प्रकल्पों एवं लाखों साधकों के परिवार के रूप में हम उस संत के संकल्प की सिद्धि को अनुभव करते हैं।Ó सद्गुरु सदाफल जी को नमन करते हुए उन्होंने इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने और विस्तार देने के लिए सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज एवं संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आज एक भव्य आध्यात्मिक भूमि का निर्माण हो रहा है। जब यह पूर्ण हो जाएगा, तो काशी सहित पूरे देश के लिए एक उपहार होगा।

यह मंदिर शिल्प और अत्याधुनिक तकनीक के अद्भुत सामंजस्य का प्रतीक है। इस भव्य मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर किसी भी भगवान की पूजा नहीं की जाती, बल्कि केवल मेडिटेशन किया जाता है। यह मंदिर अपनी भव्यता के कारण पूरे देश में काफी प्रसिद्ध हो गया है। यह महामंदिर इतना बड़ा है कि इसमें एक साथ 20 हजार से ज्यादा लोग बैठकर ध्यान लगा सकते हैं। इसलिए इसे विश्व का सबसे बड़ा मेडिटेशन सेंटर भी कहा जाता है। इस मंदिर का नाम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। इसमें स्व का एक अर्थ है आत्मा और वेद का अर्थ है ज्ञान। यानी जिसके द्वारा आत्मा का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसे स्वर्वेद कहते हैं।

वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों को पुराणों में धर्म-क्षेत्र भी कहा गया है। आज जहां 'स्वर्वेद महामंदिरÓ बन रहा है, उसके समीप ही कैथी गांव के पास गंगा-गोमती का संगम है। कहा जाता है कि यह संपूर्ण क्षेत्र महर्षि उद्बालक की तपोभूमि रही है। यह भूमि नचिकेता की भी जिज्ञासा भूमि है, जहां कठोपनिषद में यमाचार्य द्वारा उन्हें ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया गया है। इस तरह काशी और इसके आसपास के क्षेत्र में अनेक ऋषि, महर्षि और संत-महात्मा हुए हैं जो पूरे देश में पूज्य माने गए हैं। इस तरह काशी को भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है।

क्या है विहंगम योग : विहंगम योग भारतीय ऋषियों की प्राचीनतम योग विद्या है जिसे सद्गुरु सदाफल देव महाराज ने अपनी 17वर्षों की साधना द्वारा जनसामान्य के लिए सुलभ कराया है। वर्ष 1924 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित वृत्तिकूट आश्रम सेे आरंभ हुआ विहंगम योग संस्थान आज लाखों परिवारों का जीवन संवार चुका है। यह संस्थान समाज के कल्याण के लिए अन्य कई कार्यक्रमों का भी संचालन कर रहा है। सद्गुरु सदाफल देव महाराज रचित 'स्वर्वेदÓ के अनुसार, 'परब्रह्म प्रकृति के पार है और कर्मकांड के सर्वसाधन प्रकृति के अंतर्गत हैं। प्रकृति के पार साधन वेद में एकमात्र विंहगम योग है। उसी विहंगम योगाभ्यास द्वारा परब्रह्म की प्राप्ति एवं परमानंद की उपलब्धि होती है, अन्य मार्ग से नहीं। भाव यह है कि ब्रह्म प्रकृति के पार चेतन है और विहंगम योग प्रकृति के पार चेतन के विकास से होता है। अत: परमात्मा से मिलने का सत्य मार्ग विहंगम योग है।

स्वर्वेद महामंदिर की दीवारों पर लिखे गए दोहों के बारे में कहा गया है कि इसके दिव्य दोहों के श्रवण मात्र से ही हमारे शुभ संस्कारों का उदय होने लगता है, विवेक जागृत रहता है और साधना के अभ्यास में हमारा मन स्थिर होने लगता है। मन के संयम के लिए ये दोहे अत्यंत कारगर हैं। सद्गुरुदेव का स्वर्वेद, विहंगम योग का यह ज्ञान न केवल लोक को सुधारता है, बल्कि परलोक को भी सुधार देता है। जो लोक और परलोक को सुधार दे, वही सद्गुरु का स्वर्वेद है। यह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों विकास है, जीवन का समन्वय है। इस पथ के साथ जीना और इस पथ से जीवन को सदैव अनुप्रमाणित किए रहना, हम सबों का यही परम कर्तव्य है एवं दायित्व है।

स्वर्वेद विहंगम योग का प्राण है, विहंगम योग का सिद्धांत है। यह आध्यात्मिक वाणी है। यह आत्मा के कल्याण की वाणी है। समाधि के अनुभव की वाणी है और जितना हम इन वाणियों का श्रवण कर लें उतना ही हमारे लिए अच्छा है।

स्वर्वेद हमारी इंद्रियों की शुद्धि का साधन है। इससे हमारी इंद्रियां पवित्र रहती हैं, अंतकरण शुद्ध होने लगता है। अनेक ऐसे साधक हैं, जो स्वर्वेद के दोहों का श्रवण करते हैं, उसका पाठ करते हैं तो उनकी आध्यात्मिक चेतना का विकास होने लगता है। आत्मा के कल्याण की ही ये वाणियां हैं।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )