मुख्तार अब्बास नकवी : वर्ष 2014 के बाद का दौर देश के लोकतांत्रिक इतिहास का वह समय है जब दो बार लोकसभा और तमाम विधानसभा चुनावों में ‘मोदी मैजिक’ देश के सिर चढ़कर बोला। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों से एक बार फिर इसकी पुष्टि हुई है। वास्तव में पिछले नौ वर्षों के राष्ट्रीय राजनीतिक मंथन ने साबित किया है कि ‘कुनबे की अकड़, कुशासन की जकड़’ को पछाड़ कर ‘परिश्रम की पकड़’ ने अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं। वंशवादी राजनीति पर ‘सुशासन की शक्ति’ से विश्व में भारत की धाक और नरेन्द्र मोदी की धमक ने अमृतकाल में प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा ‘शासन की स्वाभाविक पार्टी और मोदी सुशासन के पर्याय’ बन गए हैं। पीएम मोदी ने कांग्रेस के ‘छद्म पंथनिरपेक्षता वाले चोले का खेला’ ही खत्म कर दिया है। ‘सांप्रदायिक वोटों की ठेकेदारी’ को उन्होंने ‘समावेशी विकास की हिस्सेदारी’ से ध्वस्त कर दिया। देश अब हिंसा से मुक्त माहौल में समृद्धि की राह पर अग्रसर है। इसी परिवर्तन से ‘सांप्रदायिक सियासत, खानदानी विरासत’ परेशान है।

कांग्रेस के बारे में सर्वविदित है कि ‘परिवार को पावर’ न मिले तो वह दूसरों के लिए परेशानी खड़ी करती है। यह किसी से छिपा नहीं कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल तो छोड़िए, खुद अपनी पार्टी के नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के साथ कांग्रेस ने कैसा व्यवहार किया। इसी का नतीजा है कि विपक्ष में ‘आइ लव यू’ से ज्यादा ‘आइ हेट यू’ के सुर सुनाई पड़ रहे हैं। ‘गठबंधन की गठरी’ में जितने छेद हैं, उससे ज्यादा उनके नेताओं में मतभेद हैं। पहले इस छेद को रफू करें और फिर मतभेद को रफूचक्कर, तब देखें ‘सत्ता का मुंगेरीलाल सपना।’

देश की जनता ने 2014 के बाद वह करिश्मा कर दिखाया जिससे ‘परिवार की पुश्तैनी पालिटिक्स’ का परेशान होना स्वाभाविक है। पहली बार हुआ कि कोई एक पार्टी और नेता 303 सीटें जीतकर गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन कर सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के रूप में सफलता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इससे पहले 1977 में विभिन्न पार्टियों के गठबंधन में जनता पार्टी और सहयोगी दलों ने 295 सीटें जीतीं थीं, लेकिन वह सरकार दो वर्षों में धराशायी हो गई थी। इससे कांग्रेस यह संदेश देने में सफल रही कि स्थिर सरकार और राजनीतिक स्थायित्व सिर्फ वही दे सकती है। कांग्रेस का अगले चुनाव का नारा भी यही था कि ‘चुनें उसे जो सरकार चला सकें’ और 1980 के चुनाव में कांग्रेस एवं सहयोगी 373 सीटें जीतकर पुनः सत्ता पर काबिज हो गए। उसके बाद हुए लगभग सभी चुनावों में किसी एक गैर-कांग्रेस पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया। या तो सरकारें कांग्रेस की कृपा पर चलीं या वे विभिन्न विपरीत विचारधारा वाले दलों के साथ विरोधाभास और खींचतान के बीच रेंगती रहीं।

वर्ष 2014 भारतीय लोकतंत्र का वह स्वर्णिम काल कहलाएगा, जो विरासत की सियासत का सूपड़ा साफ करता हुआ एक गरीब-पिछड़े नेता के नेतृत्व में भारत की बागडोर देने वाला रहा। दूसरी ओर जनादेश से पिटे परिवार एवं पार्टियों की मोदी के परिश्रम पर पलीता लगाने के प्रयासों की पराकाष्ठा तब हो गई जब ‘विदेशी संगीत पर विपक्षी गीत’ की जुगलबंदी होने लगी। किसी विदेशी एजेंसी से रिपोर्ट आई कि भारत में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई और यहां ‘अवार्ड वापसी प्रोग्राम’ शुरू हो गया। कभी लिंचिंग के ‘मनगढ़ंत किस्से’ तो कभी अल्पसंख्यकों पर जुल्म की ‘कपटी कहानी’ विश्व को परोसी गई। ऐसे सभी षड्यंत्रों को दरकिनार करते हुए मोदी समावेशी विकास-सर्वस्पर्शी सशक्तीकरण के रास्ते पर अविचल भारत की विकास यात्रा को आगे बढ़ाते रहे। ‘हिट एंड रन’ की ‘पिलपिली पटकथा’ के पात्र बखूबी जानते हुए कि मोदी पर नाकामी-बेईमानी की बात न चिपकेगी और न टिकेगी, फिर भी कभी राफेल, कभी चीन, कभी नोटबंदी, कभी किसान, कभी सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल, कभी कोरोना पर बवाल तो कभी फौज की भर्ती पर दुष्प्रचार करते रहे। वैचारिक कंगाली से भरे सवाल दागे जाते रहे।

यह पहली बार है कि किसी गैर-कांग्रेसी सरकार के मुखिया के रूप में मोदी ‘स्थिरता और विश्वसनीयता’ के साथ देश के सम्मान, समृद्धि और सशक्तीकरण की इबारत लिख रहे हैं। मोदी सरकार का काम सर्वस्पर्शी सशक्तीकरण और सुशासन को समर्पित रहा है। जन धन योजना, श्रमेव जयते योजना, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया, उज्ज्वला, जीएसटी, आयुष्मान भारत, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, श्रीराम मंदिर मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान, भव्य राम मंदिर का निर्माण आरंभ, किसान सम्मान निधि, जल जीवन मिशन, नई शिक्षा नीति, आत्मनिर्भर भारत अभियान और विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान जैसे कदम आज भारत को विश्व गुरु बनाने की राह पर ले जा रहे हैं। मेड इन इंडिया कोविड रोधी वैक्सीन ने करोड़ों भारतीयों के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के लोगों की भी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहां तमाम देशों में लोग भुखमरी और महंगाई से जूझ रहे हैं, वहीं भारत में 80 करोड़ जरूरतमंदों को प्रतिमाह नि:शुल्क अनाज मुहैया कराया जा रहा है। अमृतकाल के दौरान ही भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना। वैश्विक स्तर पर तमाम संकटों-कंटकों के बावजूद भारत आज विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।

(लेखक वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)