प्रणाम का महत्व
भारतीय धर्म-ग्रंथों में प्रणाम की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके तहत जब भी कोई व्यक्ति बड़ों के पास जाता है तो वह प्रणत हो जाता है। प्रणत का अर्थ होता है विनीत होना।
भारतीय धर्म-ग्रंथों में प्रणाम की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके तहत जब भी कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है तो वह प्रणत हो जाता है। प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत से है, जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने शीश झुकाना। चूंकि व्यक्ति की कामनाएं अनंत होती हैं। इसलिए यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने से बड़ों के पास कैसी कामना लेकर गया है। प्रणत व्यक्ति अपने दोनों हाथ जोड़कर और अपनी छाती से लगाकर बड़ों को प्रणाम करता है। कहा जाता है कि प्रणाम करते समय दोनों हाथ की अंजलि छाती से सटी हुई होनी चाहिए। भारतीय परंपरा में इसी प्रकार प्रणाम करने की परंपरा रही है। इसके अलावा प्राचीन काल में गुरुकुलों में दंडवत प्रणाम का भी विधान रहा है, जिसका अर्थ है बड़ों के चरणों पर साष्टांग लेट जाना। उस काल में दंडवत प्रणाम का उद्देश्य था-गुरु के चरणों के अंगूठे से प्रवाहित हो रही ऊर्जा को अपने मस्तक पर धारण करना। ऐसा माना जाता है कि इस ऊर्जा के प्रभाव से शिष्य के जीवन में परिवर्तन होने लगता था। हालांकि भारतीय धर्मदर्शन में गुरु द्वारा हाथ उठाकर आशीर्वाद देने का विधान भी है। शास्त्रों के अनुसार इस मुद्रा का भी वही प्रभाव होता है। दरअसल जब गुरु हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हैं तब उनके हाथ की उंगलियों से निकला ऊर्जा का प्रवाह शिष्य के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाता है जिससे उसके जीवन में परिवर्तन होने लगता है।
आज के परिवेश में प्रणाम की जो परंपरा है वह हास्यास्पद है। दोनों तरफ से नकली अभिव्यक्ति होती रहती है। परिणाम यह होता है कि प्रणाम करने वाला आज जिस प्रकार प्रणाम करता है वह नाटक जैसा लगता है। प्रणाम हृदय से निकलने वाली कामनाएं हैं। किसी भक्त की आंखों को देखकर ही बताया जा सकता है कि प्रणाम असली है या नकली। प्रणाम हृदय से किया जाता है और जब उस प्रणाम को आशीर्वाद मिलता है तो उसका प्रत्यक्ष फल भी मिलता है, लेकिन शर्त यह है कि प्रणाम कितनी सच्चाई से किया गया है। प्रणाम बड़ों के समक्ष आत्म-निवेदन है और आत्म-निवेदन कभी भी नकली नहीं होगा। जिन लोगों को अपने से बड़ों का आशीर्वाद चाहिए तो निश्चित रूप से उन्हें बड़ों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना होगा, क्योंकि बड़ों के हृदय से निकला एक-एक शब्द उसके जीवन में परिवर्तन ला सकता है।
[ आचार्य सुदर्शन ]
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