भारत सदियों से महान है, क्योंकि इसकी संस्कृति महान है। समय-समय पर सत्य को पुन: स्थापित करने लिए स्वयं ब्रह्म को अवतार लेना पड़ा। कारण स्पष्ट रहा है कि जैसे-जैसे युग बदला, यहां भी मर्यादाएं गिरी, तप गिरा। मनुष्य का नैतिक पतन तेजी से हुआ। तमाम आक्रांताओं के आक्रमण के बावजूद हमारी संस्कृति कायम रही। उत्थान-पतन के घटनाक्रम में भी हमारा प्रेम, हमारी मर्यादा और हमारा गौरव हमेशा बना रहा है। हमारे देश का सुख-चैन कुछ विदेशियों ने लूटा, लेकिन हमारे शाश्वत मूल्य टूटे नहीं।

अपनी महान संस्कृति और परंपराओं के कारण हम आज भी जीवित हैं। वही ढोल की थाप, होली का रंग, दीवाली के दीपक। सब कुछ ठीक वैसा ही। यदि कुछ कमी आई है तो वह है इंसान का इंसान से आपसी प्रेम और भाईचारा। इसे मजबूत बनाए रखना होगा, क्योंकि आपसी भेदभाव और द्वेष से हमारी एकता और अखंडता को खतरा पैदा हो रहा है। जिन्होंने हमारी समृद्धि को लूटा वे अपनी विरासत छोड़ गए। जिसका प्रभाव समाज पर कहीं न कहीं दिखता जरूर है। आखिर ऐसा क्यों? व्यक्ति राष्ट्र से ज्यादा स्वयं को महत्व देने लगा है। उसका निजी स्वार्थ कई बार आड़े आता है।

ज्ञान और विज्ञान का समन्वय नहीं होने के कारण हम अपने मूल अस्तित्व से कट रहे हैं। अपनी जड़ों से कटने का ही परिणाम है कि आज लोग अधिक तनावग्रस्त और परेशान दिखते हैं। इससे न केवल सुख-चैन खत्म हुआ है, बल्कि अपनापन भी खो गया है। आखिर हमारे ऋषि-मुनियों की वह परंपरा कहां गई, जिसने इंसान को स्वर्ग का प्रतिनिधि बनने के लिए प्रेरित किया। उत्तरदायित्व का सही निर्वहन न हो पाने के कारण मनुष्य नरक का गड्ढा यहीं खोद रहा है। कहां थे हम, आज क्या हो गए? प्रेम के बंधन में बांधने वाली परंपरा, बड़ों का आदर करने वाली आदतें और विशेष रूप से राष्ट्र भक्ति की भावना भरने वाली परंपरा तो दिनोंदिन लुप्त ही होती जा रही है। हमें इसे हर हाल में जगाना होगा और हर मनुष्य को उसके कर्तव्य का बोध कराना होगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने एक भयमुक्त समाज की स्थापना की थी। अपने शाश्वत मूल्यों को बचाने और पहचानने के लिए हमें एक महाभियान चलाना ही होगा। (शंभूनाथ पांडेय)