विचार: आनलाइन अश्लीलता पर प्रहार, सरकार के साथ समाज का जागरूक होना जरूरी
इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि अश्लील फिल्में और रील्स अस्वस्थ माहौल बना रही हैं और एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं जहां नग्नता को आधुनिकता माना जा रहा है। यौन स्वछंदता की यह प्रवृत्ति घातक है। यह पैसे कमाने का जरिया बन गई है। यह पारिवारिक संबंधों और सामाजिक मर्यादा को गंभीर क्षति पहुंचा रही है।
डा. ऋतु सारस्वत। केंद्र सरकार ने हाल में आपत्तिजनक एवं अश्लील कंटेंट प्रसारित करने वाले एप्स पर लगाम कसते हुए 25 एप्स पर प्रतिबंध लगाया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अश्लील कंटेंट और आपत्तिजनक एड दिखाने वाले एप्स की पहचान करते हुए यह कदम उठाया। आस्ट्रेलिया भी इस दिशा में कुछ बड़ी पहल कर रहा है। इसमें संदेह नहीं कि ओवर-द-टाप (ओटीटी) प्लेटफार्म्स के उदय ने युवा मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला है।
एक शोध के अनुसार औसत भारतीय युवा प्रतिदिन घंटों स्ट्रीमिंग मीडिया देखता है। उसका यह समय वैश्विक औसत से अधिक है। ओटीटी प्लेटफार्म टेलीविजन स्क्रीन से लेकर छोटे मोबाइल तक अपना कब्जा जमाए हुए हैं और युवा पीढ़ी के साथ हर आयु वर्ग को ऐसा नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसकी भरपाई संभव नहीं। अश्लील सामग्री परोसते ये प्लेटफार्म बालकों, किशोरों, प्रौढ़ों और यहां तक कि गृहिणियों तक अपनी सहज पहुंच बना रहे हैं। इसमें डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म भी सहायक बन रहे हैं। एक्स, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म्स पर भी अश्लील सामग्री की भरमार है। अपने व्यावसायिक हितों के लिए ये प्लेटफार्म बच्चों को अपरिपक्व आयु में व्यस्कता की ओर धकेल रहे हैं। सोफी बिस्नोनेट की डाक्यूमेंट्री ‘सेक्सी इंक. अवर चिल्ड्रन अंडर इन्फ्लुएंस-यूथ वर्जन’ अति-कामुकता और युवाओं पर इसके हानिकारक प्रभावों का विश्लेषण करती है।
अश्लील कंटेंट लड़कियों-महिलाओं को यौन वस्तुओं के रूप में पेश करता है। जर्नल आफ पीडियाट्रिक हेल्थकेयर के एक अध्ययन के अनुसार, सात-आठ साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन और वास्तविक जीवन में क्या हो रहा है, इसके बीच अंतर करने में कठिनाई होती है। इससे समस्याग्रस्त यौन व्यवहार (पीबीएस) हो सकता है। यह दूसरों से बातचीत करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। पीबीएस किसी के जीवन को देखने के तरीके को बहुत प्रभावित कर सकता है, जिससे किसी के लिए यह समझना बहुत मुश्किल हो जाता है कि क्या वास्तविक है और क्या नहीं? अश्लील कंटेंट बच्चों और युवाओं के भीतर विषाक्तता को जन्म देता है और वे हिंसा तथा अश्लीलता को अपने जीवन में सहजता से स्वीकार कर लेते हैं।
जो बच्चे-किशोर अश्लीलता, यातना, दुष्कर्म की हिंसक छवियां देख रहे हैं, उनका मनोवैज्ञानिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में है। बच्चों द्वारा बच्चों पर यौन हमलों में खतरनाक वृद्धि विषाक्त आनलाइन सामग्री तक पहुंच के कारण हो रही है। 2024 में एक अध्ययन में पाया गया कि इंग्लैंड और वेल्स में बच्चों द्वारा किए गए दुष्कर्म, यौन हमलों और दुर्व्यवहार की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। एक साक्षात्कार में ब्रिटेन की राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख परिषद के बाल संरक्षण प्रमुख इयान क्रिचले ने कहा कि स्मार्टफोन के माध्यम से हिंसक अश्लील और स्त्री-द्वेषी सामग्री तक पहुंच बेहद चिंताजनक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है। अमेरिका के 16 राज्यों ने अश्लील फिल्मों-दृश्यों को समाज के लिए विषाक्त माना। अमेरिकी राज्य यूटा की सीनेट ने अश्लील को जनस्वास्थ्य खतरा बताया है।
यह गंभीरता से विचार करने का विषय है कि क्या हम एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं, जो हमारे ही द्वारा अंधेरे में धकेली जा रही है? अपने व्यावसायिक हित साधने वाले जो कुछ भी ओटीटी प्लेटफार्म्स और डिजिटल साइट्स पर परोस रहे हैं, उसे प्रतिबंधित करने के साथ यह विचार करना भी आवश्यक है कि बच्चों की इन माध्यमों तक पहुंच क्या सहज रूप से हमने स्वयं नहीं बनाई? 2024 में प्रकाशित जोनाथन हैडट की पुस्तक ‘द एन्क्सियस जेनरेशन: हाउ द ग्रेट रिवायरिंग आफ चाइल्डहुड इज काजिंग एन एपिडेमिक आफ मेंटल इलनेस’ अनिवार्य रूप से माता-पिता से आग्रह करती है कि वे अपने किशोरों-बच्चों के स्मार्टफोन और डिजिटल मीडिया के उपयोग करने के तरीके में बदलाव लाएं। उनका दृष्टिकोण वर्षों के शोध पर आधारित है।
हैडट लिखते हैं कि बच्चों को 16 वर्ष की आयु तक स्मार्टफोन और डिजिटल मीडिया तक पहुंच नहीं होनी चाहिए। अमेरिकन साइकोलाजिकल एसोसिएशन ने एक रिपोर्ट में उनकी चिंता को दोहराया है। इसमें कहा गया है कि बच्चों के पास डिजिटल प्लेटफार्म्स पर खुद को प्रबंधित करने के लिए ‘अनुभव, निर्णय और आत्म-नियंत्रण’ नहीं है। यह रिपोर्ट यह स्वीकार करती है की माता-पिता के लिए बच्चों पर नियंत्रण बनाए रखना सहज नहीं है और इसके लिए कठोर नियमावली की आवश्यकता है।
इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि अश्लील फिल्में और रील्स अस्वस्थ माहौल बना रही हैं और एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं, जहां नग्नता को आधुनिकता माना जा रहा है। यौन स्वछंदता की यह प्रवृत्ति घातक है। यह पैसे कमाने का जरिया बन गई है। यह पारिवारिक संबंधों और सामाजिक मर्यादा को गंभीर क्षति पहुंचा रही है। अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो अश्लीलता और कामुकता के दूषित वातावरण में स्थितियां और विकट होती जाएंगी। इस वातावरण के खिलाफ शासन-प्रशासन सब कुछ नहीं कर सकता। लोगों और खासकर अभिभावकों को भी कुछ करना होगा और सभी को शिक्षा एवं संस्कारों की महत्ता समझनी होगी। यह ध्यान रहे कि नैतिक शिक्षा का महत्व सदा रहा है। आधुनिकता का मतलब नैतिक शिक्षा से दूरी बनाना नहीं हो सकता और न होना चाहिए।
(लेखिका समाजशास्त्री हैं)
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