[ हृदयनारायण दीक्षित ]: संविधान भारत का राजधर्म है। संविधान का निर्माण 1946 में गठित संविधान सभा ने किया था। सभा ने विभिन्न विषयों पर 17 समितियां गठित की थीं। सभाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद प्रक्रिया, संचालन सहित चार समितियों के सभापति थे। इसी तरह संघीय विधान सहित तीन समितियों के सभापति पं. नेहरू थे। सरदार पटेल मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक आदि मामलों की समिति के सभापति थे। प्रारूप समिति के सभापति डॉ. बीआर आंबेडकर का काम विशिष्ट था। डॉ. आंबेडकर ने ही संविधान पारण का प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार हुआ।

26 नवंबर संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा

इस प्रकार 26 नवंबर, 1949 की तिथि भारतीय गणतंत्र के लिए ऐतिहासिक महत्व की है। इस ओर सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही ध्यान गया। मुंबई में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा का शिलान्यास करते हुए मोदी ने 11 अक्टूबर, 2015 को एलान किया कि 26 नवंबर संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस अवसर पर मंगलवार को वह संसद के दोनों सदनों को संबोधित करेंगे। उत्तर प्रदेश विधानमंडल का भी इसी प्रयोजन के लिए 26 नवंबर को विशेष सत्र आयोजित होगा।

संविधान की उद्देशिका कहती है ‘हम भारत के लोग’

संविधान सर्वोच्च विधि है, लेकिन कई अर्थों में यह विश्व के अन्य संविधानों से भिन्न है। इसकी उद्देशिका विशिष्ट है। इसके अनुसार संविधान की सर्वोपरिता का मुख्य शक्ति स्नोत ‘हम भारत के लोग’ हैं। ‘हम भारत के लोगों’ ने संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए इस संविधान को अधिनियमित व अंगीकृत किया है। उद्देशिका में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, समता व बंधुता के राष्ट्रीय स्वप्न हैं। संविधान निर्माताओं ने दुनिया के कई संविधानों से अनुभव लिए। आयरलैंड से राज्य के नीति निदेशक तत्वों की प्रेरणा ली। संसदीय प्रणाली ब्रिटिश परंपरा का अनुभव है। मूल अधिकार अमेरिकी संविधान के अनुभव हैं। वैसे प्राचीन भारत में लोकतंत्र व नीति निदेशक तत्वों जैसी धारणा पहले भी थी। यह बात संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर ने ही कही थी। अन्य देशों से अलग भारत के संविधान में प्रशासनिक उपबंध भी हैं। नीति निदेशक तत्व खूबसूरत निर्देश हैं। संविधान में मूल कर्तव्य हैं। मूल अधिकारों का दायरा बड़ा है, वैसे ही मूल कर्तव्यों की व्यापकता भी है।

विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है

राजनीतिक तंत्र में मूल अधिकारों के प्रति सजगता जरूरत से ज्यादा है। विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है। यह हमारे संविधान का मूलरस है, लेकिन प्राय: इसका दुरुपयोग होता है। विधायी सदनों में असीम वाक् स्वातंत्र्य है, लेकिन संसदीय सदनों का शोर आहतकारी है। अधिकार भोग के साथ कर्तव्य पालन भी प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

मूल कर्तव्यों की सूची में पहला कर्तव्य है-‘संविधान का पालन करें

संविधान (अनुच्छेद 51ए) में मूल कर्तव्यों की सूची है। पहला कर्तव्य है-‘संविधान का पालन करें। उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगान का आदर करें।’ मगर तमाम राजनीतिक सामंत संविधान का आदर नहीं करते। दूसरा कर्तव्य सांस्कृतिक है, ‘स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले आदर्शों का पालन करें।’ लेकिन यहां वंदे मातरम पर भी विवाद हैं। तीसरे कर्तव्य में देश की एकता, संप्रभुता व अखंडता की रक्षा है, लेकिन विश्वविद्यालयों में भी भारत के टुकड़े करने की धौंस है। सार्वजनिक संपदा की सुरक्षा भी मूल कर्तव्य है। यहां तमाम आंदोलनकारी बसों व दफ्तरों में आग लगाते हैं। पर्यावरण, संरक्षण वाले मूल कर्तव्य की घोर उपेक्षा है। सामासिक संस्कृति की परंपरा का संवर्धन भी एक कर्तव्य है। ‘सामासिक संस्कृति’ शब्द के भ्रम को सर्वोच्च न्यायालय ने दूर किया था ‘कि सामासिक संस्कृति का आधार संस्कृत भाषा और साहित्य है। यही भिन्न जनों को एक सूत्र में बांधती है।’ न्यायालय की इस व्याख्या की भी उपेक्षा है।

जो लोग संविधान से असंतुष्ट हैं, उन्हें दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना है

संविधान निर्जीव शब्द संचय नहीं होता। प्रत्येक संविधान का उद्देश्य और दर्शन भी होता है। भारत के संविधान का उद्देश्य ‘हम भारत के लोग’ की ऋद्धि, सिद्धि और समृद्धि है। संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को संविधान का उद्देश्य संकल्प पारित किया था। उसमें कहा गया था कि ‘यह प्राचीन भूमि विश्व में अपना समुचित और गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करेगी और विश्व शांति व मानव कल्याण के लिए पूरा सहयोग देगी।’ यहां प्राचीन भूमि का अर्थ प्राचीन दर्शन व संस्कृति ही है। विश्व कल्याण के लिए भारत की तत्परता का संविधान में उल्लेख महत्वपूर्ण है। संविधान पूर्ण दस्तावेज है। उसमें संशोधन की जटिलता नहीं है। डॉ. आंबेडकर ने सभा में ठीक ही कहा था, ‘जो लोग संविधान से असंतुष्ट हैं, उन्हें केवल दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना है। यदि वे निर्वाचित संसद में दो-तिहाई बहुमत भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं तो यह नहीं समझा जा सकता कि जनसाधारण असंतोष में उनके साथ है।’

संविधान चाहे जितना अच्छा हो यदि उसे संचालित करने वाले बुरे हैं तो वह बुरा हो जाता

संविधान स्वयं शक्ति संपन्न नहीं होता। डॉ. आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के अंतिम भाषण में ठीक कहा था, ‘संविधान चाहे जितना अच्छा हो यदि उसे संचालित करने वाले लोग बुरे हैं तो वह निश्चित ही बुरा हो जाता है।’ डॉ. प्रसाद ने कहा था, ‘संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे, देश का कल्याण उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा जो देश पर शासन करेंगे।’ इसका दुरुपयोग भी हुआ है।

अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग

राज्य विधानसभाओं को भंग करने वाले अनुच्छेद 356 का लगभग सवा सौ बार दुरुपयोग हुआ। 1975 में की गई आपातकाल की उद्घोषणा अनुच्छेद 353 का घोर उल्लंघन थी। न्यायालयों की शक्ति घटाई गई। न्यायायिक पुनरावलोकन को कमतर किया गया। 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की पवित्रता नष्ट की गई।

संविधान प्रवर्तन के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं

संविधान प्रवर्तन के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। संविधान में अनेक संस्थाएं हैं। उसमें सभी समस्याओं के समाधान हैं। संविधान के प्रवाह में भारतीय लोकतंत्र ने विश्व प्रतिष्ठा अर्जित की है, लेकिन देश का बहुमत संविधान से सुपरिचित नहीं है। बहुमत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री के संवैधानिक प्राधिकार से भी परिचित नहीं है। समान नागरिक संहिता का संवैधानिक नीति निर्देश भी अल्प ज्ञात है। विधायिका के कामकाज की छवि अच्छी नहीं है। संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 से भी कम लोग परिचित थे। उसके निरसन के बाद ही इस उपबंध की जानकारी राष्ट्रव्यापी हुई।

राजनीतिक दलों के तमाम लोग संविधान नहीं जानते

राजनीतिक दलों के तमाम लोग भी संविधान नहीं जानते। प्रधानमंत्री की पहल पर संविधान दिवस का आयोजन हो रहा है। इसे राष्ट्रीय उत्सव के रूप में व्यापक होना चाहिए। उच्च शिक्षा में संविधान का ज्ञान अनिवार्य करने की भी जरूरत है। डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने सभा में कहा था, ‘आखिरकार संविधान का क्या अर्थ है? यह राजनीति का व्याकरण है। राजनीतिक नाविक के लिए कुतुबनुमा। वह प्राणशून्य है। हम उसे और उपयोगी बना सकते हैं।’ संविधान मानने और जानने में ही भारतीय लोकतंत्र का भविष्य निहित है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )