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    ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है चंबा की उषा

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 04 Feb 2017 05:01 AM (IST)

    चंबा प्रखंड के कुड़ियाल गांव निवासी 45 वर्षीय उषा नकोटी उन महिलाओं को आईना दिखा रही हैं, जो समस्याओं का रोना रोती हैं। वह ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं।

    ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है चंबा की उषा

    चंबा, टिहरी [जेएनएन]: जीवन में कुछ नया कर गुजरने का जज्बा हो तो मुश्किलों व अभावों से जूझकर भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ उद्यमी उषा नकोटी ने कर दिखाया है। खुद के बूते स्वरोजगार की राह पर आगे बढ़ते हुए वह कई ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आत्मनिर्भरता की ज्योति का संचार कर रही हैं। इससे ग्रामीण महिलाओं की आर्थिकी के स्तर में काफी इजाफा हो रहा है।

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    चंबा प्रखंड के कुड़ियाल गांव निवासी 45 वर्षीय उषा नकोटी उन महिलाओं को आईना दिखा रही हैं, जो समस्याओं का रोना रोती हैं। उषा की गृहस्थी के प्रारंभिक हालात ठीक नहीं थे। बेरोजगार पति का 35 वर्ष की उम्र में निधन हो गया तो मुश्किलों के बढ़ने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी।

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    कताई-बुनाई की जानकार उषा तब इस काम को मशीनों से करने से वाकिफ नहीं थी। सो, गृहस्थी चलाने के लिए इसी में रोजगार को तलाशा। शुरुआती दौर में भेड़ पालकों से खरीदी ऊन से स्वेटर आदि बना उसकी बिक्री से घर का खर्चा चलाती थी।

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    जिम्मेदारी बढ़ी तो एक साल तक कताई-बुनाई व कढ़ाई का तकनीकी प्रशिक्षण लिया। उसके बाद 2002 में कुटीर उद्योग कल्याण समिति का गठन कर चम्बा में कताई-बुनाई का काम शुरू कर दिया। शुरुआती दौर में कई तरह की दिक्कतें सामने आने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने बूते कारोबार शुरू किया।

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    थोड़ी-थोड़ी करके पूंजी जुटाई, मशीनें व अन्य उपकरण खरीदे। साथ ही आस-पास के गांव की महिलाओं को भी इससे जोड़ा और उन्हें भी काम सिखाया।

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    ये हैं नकोटी की उपलब्धि

    आज वह अपने केंद्र में पंखी, शॉल, मफलर, मौजे, टोपी, दास्ताने, स्वेटर, अंगोरा शॉल, पर्स, चटाई, सोफे कवर, जैकेट, सदरी आदि उत्पाद महिलाओं के सहयोग से तैयार करा रही हैं। आज तीस महिलाएं उनके साथ फुल टाइम काम कर दस से पंद्रह हजार व 70 महिलाएं पार्ट टाइम काम से आठ से दस हजार रुपये महीना कमा लेती हैं।

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    वे जो उत्पाद तैयार करती हैं, उनकी कुछ बिक्री तो केंद्र में ही हो जाती है। कुछ की दूसरी जगहों पर स्टाल लगाकर बिक्री होती है। उन्होंने इस काम के साथ ही अपने एक मात्र पुत्र 22 वर्षीय रजत की पढ़ाई में भी कोई कमी नहीं की, जो इस समय देहरादून से बीएड कर रहा है। उषा का कहना है कि उत्पाद सही होने चाहिए बाजार की चिंता नहीं है। लोग दूर-दूर से यहां सामान खरीदने आते हैं।

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