13 साल की उम्र में तोड़ी वर्जनाएं, परिश्रम के बल पर ताइक्वांडो में पाई सफलता
झंझावात से जूझ कठिन परिश्रम के बल पर एक युवती ने वुशु (ताइक्वांडो) में सफलता के झंडे गाड़े और अब औरों को भी इस ट्रैक पर चलने की राह दिखा समाज में मिसाल बनी हैं।
हरिद्वार, [राहुल गिरि]: समाज में जब लड़कियों को खेल से दूर रखने की रवायत थी, तब महज 13 साल की उम्र में आरती सैनी ने धारा के उलट चलते हुए इन वर्जनाओं को तोड़ने का संकल्प लिया। झंझावात से जूझ कठिन परिश्रम के बल पर वुशु (ताइक्वांडो) में सफलता के झंडे गाड़े और अब औरों को भी इस ट्रैक पर चलने की राह दिखा समाज में मिसाल बनी हैं। खुद की एकेडमी में अब वह अपने जैसे बहुतेरे खिलाड़ियों की फौज भी वह तैयार कर रही हैं।
23 नवंबर 1984 को मुजफ्फरनगर के अलीपुर अटेरना गांव के रणधीर सिंह सैनी और संतोष देवी के घर जन्मी उनकी तीसरे नंबर की बेटी आरती सैनी अब हरिद्वार शहर की आन-बान व शान हैं। आरती जब चौथी कक्षा में थी तो स्कूल में दिल्ली से आए एक ताइक्वांडो प्रशिक्षण से वह इतना प्रेरित हुई कि उन्होंने इसी खेल में अपना भविष्य तलाशने की ठान ली।
यह भी पढ़ें: घर छोड़कर बच्चों का जीवन संवारने में जुटीं ये संन्यासिनी
हरिद्वार के मिस्सरपुर में आरती ने ताइक्वांडो एकेडमी वर्ष 2011 में खोली थी, जहां कई महिला खिलाड़ी मार्शल आर्ट के गुर सीख रही हैं। लेकिन, यहां तक पहुंचने के लिए आरती ने जो सफर तय किया, वह आसान नहीं था। आरती ने 13 साल की उम्र से ताइक्वांडो सीखना शुरू कर दिया था। तब उनके गांव से 15 किलोमीटर दूर बुढ़ाना में एक छोटी सी ताइक्वांडो एकेडमी थी, जहां उन्होंने आत्मरक्षा के गुर सीखे। इस दौरान गांव के कई लोगों ने आरती के खेल को लेकर अंगलियां उठाई, लेकिन, बड़ी बहनों अंजू, आरजू व पिता के सहयोग से उसने अपनी साधना जारी रखी।
यह भी पढ़ें: यहां गरीब बच्चों को शिक्षा से अलंकृत कर रही अलंकृता
उसके बाद आरती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदकों की झड़ी लगा दी। वर्ष 2003 में पंजाब में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। 2004 में दिल्ली में हुई इंटरनेशनल चैंपियनशिप में रजत और 2007 में नेपाल में आयोजित चैंपियनशिप में स्वर्ण जीत सनसनी मचा दी।
यह भी पढ़ें: एक ऐसा स्कूल जो बच्चों से नहीं लेता फीस, स्वयं वहन करता पढ़ाई खर्च
उपलब्धि की बात करें तो अब तक आरती पदकों का शतक पूरा कर चुकी हैं। 2007 में शादी के बाद वह हरिद्वार के मिस्सरपुर गांव आ गई, लेकिन मार्शल आर्ट के प्रति अपने समर्पण को जारी रखा। आरती ने ताइक्वांडो एकेडमी खोलकर अपने जैसे शतकवीर खिलाड़ियों को तलाशना शुरू कर दिया, जहां बहुतेरे खिलाड़ी इस विधा के गुर सीख रहे हैं।
यह भी पढ़ें: महिलाओं को स्वावलंबन का पाठ पढ़ा रहीं पौड़ी की ये महिलाएं
पति का भी मिला भरपूर साथ
शादी के बाद पति अमित सैनी ने आरती का भरपूर साथ दिया। आज भी अमित कदम-कदम पर पत्नी के साथ हैं। अमित सैनी के मुताबिक आरती युवतियों को आत्मरक्षा के लिए तैयार करने में संकल्पबद्ध हैं। आज भी वह अपनी जैसी तमाम युवतियों को यह गुर सिखा रही हैं।
यह भी पढ़ें: 91 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी में देशभक्ति का जज्बा कायम
ऐसे खेला जाता है वुशु
अंतर्राष्ट्रीय वुशु खिलाड़ी आरती सैनी ने बताया कि वुशु मार्शल आर्ट की ही एक विधा है। इसमें कीकिंग, पंचिंग व बैकिंग के तहत खिलाड़ी अंक प्राप्त करते हैं। वुशु में युवतियों को बिना किसी शस्त्र के इस्तेमाल किए सेल्फ डिफेंस के गुर सिखने को मिलते हैं। वुशु में फ्री हैंड के साथ ही लाठी, छोटी-बड़ी तलवार आदि का भी प्रयोग किया जाता है।
यह भी पढ़ें: मां बनकर गरीब बेटियों का भविष्य संवार रही तारा
काफी संघर्षों के बाद मैंने मुकाम किया हासिल
अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो खिलाड़ी आरती सैनी का कहना है कि काफी संघर्षों के बाद मैंने मुकाम हासिल किया है। मैं नहीं चाहती कि किसी को मेरी तरह संघर्ष करना पड़े। ऐसे में एकेडमी में खिलाड़ियों की पूरी मदद करती हूं। युवतियों को स्वयं आत्म रक्षा करने के लिए काबिल बनना चाहिए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।