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    यहां बंजर भूमि पर बसा रहे हैं जलीय जीवों का संसार

    By BhanuEdited By:
    Updated: Mon, 13 Mar 2017 11:00 AM (IST)

    डीएफओ हल्द्वानी डॉ. चंद्रशेखर सनवाल बंजर पड़ी वन भूमि में जलीय जीवों का संसार बसाने जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कार्य भी शुरू कर दिया है।

    यहां बंजर भूमि पर बसा रहे हैं जलीय जीवों का संसार

    हल्द्वानी, [अंकुर शर्मा]: कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो संसाधनों की कमी आड़े कोई मायने नहीं रखती। ऐसी ही मिसाल पेश की है कि एक वन अधिकारी ने। डीएफओ हल्द्वानी डॉ. चंद्रशेखर सनवाल डिग्रेड (अनुत्पादक) वन भूमि पर जलीय जैव विविधता संरक्षण जोन बनाने जा रहे हैं। उत्तराखंड में यह जलीय वनस्पतियों व जीवों के संरक्षण और भूमि के ईकोलॉजिकल रेस्टोरेशन में मददगार अपनी तरह का पहला जोन होगा।
    नेपाल सीमा से सटे शारदा बैराज के आसपास कई हेक्टेयर वन भूमि है। इसमें से छह हेक्टेयर से ज्यादा डिग्रेड हो चुकी है यानी इस जमीन की उत्पादकता घट चुकी है और वनीकरण नहीं हो सकता। इस निष्क्रिय भूमि को उपयोगी बनाने के लिए सनवाल ने अनूठा तरीका निकाला।
    उन्होंने चार हेक्टेयर भूमि पर कई वेट लैंड बनाए हैं, जो बिगड़ती जलीय जैव विविधता को संरक्षित करने में मददगार होंगे। इसको एक्विटिक बॉयो डायवर्सिटी कन्जर्वेशन जोन नाम दिया गया है। इसमें जलीय जैव विविधता की अहम घटक एल्गी (काई) से लेकर एंजियोस्पर्म जैसी वनस्पतियां होंगी।
    अलग-अलग वेट लैंड में किस्म-किस्म के कछुओं और मछलियों को संरक्षण प्रदान किया जाएगा। विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके अन्य जीव-जंतुओं को चिह्नित कर उन्हें भी संरक्षित किया जाएगा। इस जोन का दूसरा महत्वपूर्ण फायदा यह होगा कि जमीन की गुणवत्ता बढ़ेगी।
    इस तरह यह जोन पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगा। पर्यटन के लिहाज से बनाए गए इस जोन में पर्यटकों को जलीय जैव विविधता व जीव-वनस्पति का महत्व समझाया जाएगा। इस पर काम शुरू हो चुका है और यह जल्द ही तैयार भी हो जाएगा।
    डॉ. चंद्रशेखर सनवाल के अनुसार शारदा बैराज पर एक्विटिक बॉयो डायवर्सिटी जोन का काम शुरू कर दिया गया है। जल्द ही यह तैयार हो जाएगा। जलीय पौधों, जंतुओं व वानस्पतिक विविधता के संरक्षण में इसकी अहम भूमिका होगी।
    जोन के फायदे
    -भूमिगत जल स्रोत रीचार्ज करने में मदद।
    -बिगड़ती जलीय जैव विविधता में सुधार होगा।
    -कछुआ, मछली, केकड़े जैसे जलीय जीवों का संरक्षण।
    -बाढ़ व सूखा जैसी आपदाओं के प्रबंधन में मददगार।
    -डिग्रेड भूमि की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक।

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